Wednesday, January 28, 2009

पहेली 28

खिलते हैं फूल
बिखेरते हैं रंग
गाँव-गाँव
गली-गली
उड़ती है पतंग

इसके होते ही शुरू
होता है शरद का अंत
इस पर लिख कर गए
कवि निराला और पंत


मंदबुद्धि मैं
और आप अकलमंद
आप ही सुलझाए
मेरे मन का ये द्वंद

बस के पीछे तो होता है
बस काला धुआँ
फिर इसका नामकरण
क्यों ऐसा हुआ?

व और ब में कभी होता होगा फ़र्क
आज तो भाषा का पूरा बेड़ा है गर्क
गंगा को गङ्गा को लिखने वाले बचे हैं कम
ङ और ञ को कर गई बिंदी हजम

हिंदी और हिंदीभाषी का होगा शीघ्र ही अंत
ऐसी घोषणा कर रहे हैं ज्ञानी-ध्यानी-महंत
ब-नाम से हम-तुम आज पहचानते जिसे
बोलो क्या कहते थे ॠषि व संत उसे?

सिएटल,
28 जनवरी 2009
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इस पहेली का उत्तर इसकी अंतिम पंक्ति में छुपा हुआ है।
मदद के लिए यहाँ क्लिक करें -
http://mere--words.blogspot.com/2008/02/1.html

Sunday, January 25, 2009

ऐ मेरे वतन के लोगो

(http://www.youtube.com/watch?v=yjPo7FpxjYc)
ऐ मेरे वतन के लोगो, तुम खूब कमा लो दौलत
दिन रात करो तुम मेहनत, मिले खूब शान और शौकत
पर मत भूलो सीमा पार अपनो ने हैं दाम चुकाए
कुछ याद उन्हे भी कर लो जिन्हे साथ न तुम ला पाए

ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आँख मे भर लो पानी
जो करीब नहीं हैं उनकी जरा याद करो कुरबानी

कोई सिख कोई जाट मराठा, कोई गुरखा कोई मदरासी
सरहद पार करने वाला हर कोई है एक एन आर आई
जिस माँ ने तुम को पाला वो माँ है हिन्दुस्तानी
जो करीब नहीं हैं उनकी जरा याद करो कुरबानी

जब बीमार हुई थी बच्ची या खतरे में पड़ी कमाई
दर दर दुआएँ मांगी, घड़ी घड़ी की थी दुहाई
मन्दिरों में गाए भजन जो सुने थे उनकी जबानी
जो करीब नहीं हैं उनकी जरा याद करो कुरबानी

उस काली रात अमावस जब देश में थी दीवाली
वो देख रहे थे रस्ता लिए साथ दीए की थाली
बुझ गये हैं सारे सपने रह गया है खारा पानी
जो करीब नहीं हैं उनकी जरा याद करो कुरबानी

न तो मिला तुम्हे वनवास ना ही हो तुम श्री राम
मिली हैं सारी खुशियां मिले हैं ऐश-ओ-आराम
फ़िर भला क्यूं उनको दशरथ की गति है पानी
जो करीब नहीं हैं उनकी जरा याद करो कुरबानी

सींचा हमारा जीवन सब अपना खून बहा के
मजबूत किए ये कंधे सब अपना दाँव लगा के
जब विदा समय आया तो कह गए कि सब करते हैं
खुश रहना मेरे प्यारो अब हम तो दुआ करते हैं
क्या माँ है वो दीवानी क्या बाप है वो अभिमानी
जो करीब नहीं हैं उनकी जरा याद करो कुरबानी

तुम भूल न जाओ उनको इसलिए कही ये कहानी
जो करीब नहीं हैं उनकी जरा याद करो कुरबानी

सिएटल 425-445-०८२७

(प्रदीप से क्षमायाचना सहित)

Friday, January 23, 2009

प्रश्न कई हैं

(http://www.youtube.com/watch?v=ALdNmdp5ibg)

प्रश्न कई हैं
उत्तर यही
तू ढूंढता जिसे
है वो तेरे
अंदर कहीं

जो दिखता है जैसा
वैसा होता नहीं
जो बदलता है रंग
वो अम्बर नहीं

मंदिर में जा-जा के
रोता है क्यूँ
दीवारों में रहता
वो बंधकर नहीं

बार बार
घंटी
बजाता है क्यूँ
ये पोस्ट-आफ़िस
या सरकारी दफ़्तर नहीं

सुनता है वो
तेरी भी सुनेगा
उसे
कह कर तो देख
जो पत्थर नहीं

ऐसा नहीं
कि वो देता नहीं
तू लपकेगा कैसे
जो तू तत्पर नहीं

लम्बा सफ़र है
अभी से सम्हल
सम्हलने की उम्र
साठ-सत्तर नहीं

बहता है जीवन
रूकता नहीं
जीवन है
नदिया
समंदर नहीं

सूखती है, भरती है
भरती है, सूखती है
एक सा रहता
सदा मंजर नहीं

चलती है धरती
चलते हैं तारें
धड़कन भी रुकती
दम भर नहीं

बढ़ता चला चल
मंज़िल मिलेगी
जीवन का गूढ़
मंतर यही


सिएटल 425-445-0827
23 जनवरी 2009

Tuesday, January 20, 2009

पंचलाईन #3

जिसे माँ पिलाती हैं, उसे दूध कहते हैं
जिसे दोस्त पिलाते हैं, उसे चाय कहते हैं
जिसे नेता पिलाते हैं, उसे कूल-ऐड कहते हैं

जो दिल पर हाथ रख कर ली जाती है, उसे शपथ कहते हैं
जो आँख बंद कर के की जाती है, उसे मोहब्बत कहते हैं
जो दिमाग बंद कर के की जाती है, उसे चापलूसी कहते हैं

जो दिल खोल के पार्टी देता है, उसे दिलेर कहते हैं
जो जेब खोल के पार्टी देता है, उसे कुबेर कहते हैं
जो जनता को लूट के पार्टी करता है, उसे ख्मेर रुज कहते हैं

जो झांसी में रहता है, उसे झांसी वाला कहते हैं
जो झांसे में आ जाता है, उसे मामा कहते हैं
जो झांसा दे देता है, उसे ओबामा कहते हैं

सिएटल 425-445-0827
20 जनवरी 2009

Thursday, January 15, 2009

ओबामा का राज्याभिषेक

(http://www.youtube.com/watch?v=nlGymQhVbgU)

कैसा है अमरीका प्यारे

पढ़ के अखबार देखो

 

कार बनाने वाले

फ़िरते बेकार देखो

 

बैंक जो देती थी 'लोन'

लेती उधार देखो

 

सरकार जो टैक्स लूटे

बन गई उदार देखो

 

बंगलो वालों के यहाँ

टूटते घर-बार देखो

 

आशा और परिवर्तन का मसीहा

दिखलाता अंधकार देखो

 

बंदा था संत बनता

निकला साहूकार देखो

 

50 मिलियन का चूना कर के

करता श्रंगार देखो

 

बॉलरूम में नाचे नेता

जनता बेरोज़गार देखो

 

आप के पैसों से दे दी

मैक्केन को हार देखो

 

अपने पैसों से देता

बीवी को हार देखो

 

जनता से चंदा खींचा

कहलाता अवतार देखो

 

नेता से धन मांगा

कहलाया मक्कार देखो

 

जी-एम के सी-ई-ओ का प्लेन से आना-जाना

कहलाए दुराचार देखो

 

50 मिलियन जो फ़ूंक रहा है

वो पाता सत्कार देखो

 

देश की लुटिया डूब गई

हर कोई बीमार देखो

 

फिर भी राज्याभिषेक होगा

और होगा शानदार देखो

 

दिखावा है अमरीका प्यारे

इस के आर-पार देखो

 

सिएटल,

15 जनवरी 2009

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ओबामा = Obama;  अमरीका = America; बैंक = bank;

लोन = loan; टैक्स = tax; मिलियन = million; बालरुम =ballroom

मैक्केन =McCain; जी-एम =GM; सी-ई-ओ = CEO; प्लेन =plane, airplane

Friday, January 9, 2009

सत्यम् स्वयम् असत्यम्

"सत्यम् स्वयम् असत्यम्"

 

एतत् समाचार पठितम्

अहम् भवम् दुखितम्

 

हाय! गज़ब का हुआ जुलम

बिलख बिलख कर रोएँ हम

 

न कोई बम फ़टा, न कहीं आग लगी

बस मेरे पोर्टफ़ोलियो की वाट लगी

 

आतंकवादी होते तो देख लेते

कमांडों के सुपुर्द कर देते

पाकिस्तान के मत्थे हत्या मढ़ते

यू-एन में जा पर्चा पढ़ते

अमरीका-इंग्लैंड से मदद मांगते

पिछलग्गुओं की तरह तलवे चाटते

 

हाय! गज़ब का हुआ जुलम

बिलख बिलख कर रोएँ हम

 

न कोई पार्टी टूटी, न कोई सरकार गिरी

बस मेरी जमा पूंज़ी पे गाज गिरी

 

नेता की करतूत होती तो देख लेते

रातो-रात कुर्सी से खदेड़ देते

अगले चुनाव में मुख मोड़ लेते

लालू ललिता की फ़ेहरिश्त में जोड़ लेते

दो चार दिन दिल्ली-कलकत्ता बंद करते

और चाय की चुस्की के साथ निंदा करते

 

हाय! गज़ब का हुआ जुलम

बिलख बिलख कर रोएँ हम

 

न आंधी आई, न तूफ़ां बरसा

बस नौकरी गँवा बैठा बंदा

 

कुदरत का खेल होता तो देख लेते

मिलजुल के हम सब कुछ झेल लेते

मंदिर में जा पूजा करते

ईश्वर से दया की दुआ करते

कर्मों का फल इसे कहते

कुछ इस तरह इसे सहते

 

हाय! गज़ब का हुआ जुलम

बिलख बिलख कर रोएँ हम

 

न इसका दोष, न उसका दोष

किसपे निकालूँ मैं अपना रोष

 

ये काँटों भरा बाग मैंने सींचा था

भाई-बन्धुओं से हाथ जब खींचा था

परिजनों को नज़रअंदाज़ जब किया था

और स्टॉक्स को सारा पैसा सौंप दिया था

करोड़पति जो स्वयं को बनना था

सुखी सम्पन्न जो स्वयं को रहना था

 

जब तक हाथ खुद का जलता नहीं है

लाख कहो कोई समझता नहीं है

कि मेहनत-मजूरी से जो नहीं काम करेगा

वो त्राहि-त्राहि दिन-रात करेगा

बस वही सुख चैन से रह सकेगा

जो समाज परिवार का खयाल रखेगा

 

परिश्रम सदैव फलितम्

एतत् सर्वत्र सत्यम्

 

 

सिएटल | 425-445-0827

9 जनवरी 2008

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जुलम = ज़ुल्म; वाट लगना = भारी मुसीबत में फ़ंसना

पोर्टफ़ोलियो =portfolio; कमांडो = commando; यू-एन = United Nations

गाज = बिजली; रोष = ऐसा क्रोध जो मन में ही दबा या छिपा रहे। कुढ़न; स्टॉक्स = stocks

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Thursday, January 8, 2009

पहेली 27

कुछ इस हद तक उन पर मेरा ?? ?? था (2,2)
कि हज़ार बार रूठने पर भी मैंने उन्हें ??? था (3)

एक दिन एक ऐसा अपशकुन एक ?? ?? थी (2, 2)
कि वे बेवजह मुझ पर चीखी और ??? थी (35)

और बड़ी बेरहमी से उन्होंने छोड़ दी मेरी ??? थी (3)
एक लम्बे अरसे के बाद उनकी चिट्ठी ?? ?? थी (2, 2)

उदाहरण:
क -
जब तक देखा नहीं ??? (3)
अपनी खामियाँ नज़र ?? ?(2, 1)

उत्तर:
जब तक देखा नहीं आईना
अपनी खामियाँ नज़र आई ना

ख -
मफ़लर और टोपी में छुपा ?? ?? (2, 2)
जैसे ही गिरी बर्फ़ और आई ??? (3)

उत्तर:
मफ़लर और टोपी में छुपा सर दिया
जैसे ही गिरी बर्फ़ और आई सर्दियाँ

अधिक मदद के लिए अन्य पहेलियाँ यहाँ देखें:
http://mere--words.blogspot.com/search/label/riddles_solved

पहेली का उत्तर

पहेली - http://mere--words.blogspot.com/2008/09/3.html
उत्तर:
1 -
झूम-झूम के नाचे आज हमरो मन
पढ़ें यूनिकोड, नहीं पढ़ें हम रोमन

2 -
जब भी कोर्ट में मुझसे जज बात करें
कहे कि आप ज़ब्त अपने जज़बात करें

3 -
और हाँ, ये रही वो बेंचेस
जिन पे खेलता था बेन चेस

Tuesday, January 6, 2009

आग

मॉल में माल का

अम्बार लगा है

हर ज़रुरत का

बाज़ार लगा है

चारों ओर कमी

किसी बात की नहीं

है सब कुछ यहाँ

मगर शांति नहीं

 

मैं हूँ यहाँ

मेरा दिल है कहीं

मैं खुश रह सकूँ

ऐसी 'पिल' है कहीं?

शायद नहीं, मगर

आत्मा मानती नहीं

दर दर की खाक

वरना छानती नहीं

 

दिल हो कहीं

और दिमाग हो कहीं

जैसे सुर हो कहीं

और साज़ हो कहीं

ऐसी सरगम

किसी काम की नहीं

शाश्वत सत्य है ये

इसमें भ्रांति नहीं


जानवर और इंसां में है

आग का फ़र्क

सालों से सुना है

यही एक तर्क

कि आग न होती तो

खिचड़ी पकती नहीं

दुनिया में बसती

एक भी बस्ती नहीं

 

चाहे मानो सच इसे

चाहे मानो झूठ

आग और राख का है

रिश्ता अटूट

ऐसी कोई हस्ती नहीं

जिसपे ये हँसती नहीं

ऐसी कोई शह नहीं

जो राख बनती नहीं

 

सभ्यता जन्मी थी

जब आग थी मिली

या वैमनस्य की

नई राह थी मिली?

आग न होती तो

होती क्रांति नहीं

मन होता शांत

होती क्लांति नहीं

 

सिएटल,

6 जनवरी 2008

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मॉल = mall

पिल = pill

इंसां = इंसान

वैमनस्य = दुश्मनी

क्लांति = थकावट

Thursday, January 1, 2009

2009

दोस्तों का साथ हो

र दिन एक सौगात हो

जायके की चाय हो

तन टाटा की आय हो

नौजवानों की चाल हो

कुछ ऐसा ये साल हो

 

सिएटल,

1 जनवरी 2009