Saturday, June 27, 2015

सूरज

सूरज
न जाने क्या कुकर्म किए हैं इसने
कि दिन भर आग उगलता है
और शाम को डूबने के लिए
चुल्लू भर पानी भी
नसीब नहीं होता है

कोई बचाने भी नहीं आता है
उल्टा उसके अवसान से ख़ुश होते हैं
उसके अवसान में शांति पाते हैं
दूर-दूर से दौड़े चले आते हैं
फ़ोटो खींचने
ड्राइंग रूम की दीवार सजाने
फ़ेसबुक की वॉल पे चिपकाने
ताकि बड़े गर्व से कह सके
कि देखो 
एक कुकर्मी के अंत का दृश्य 
कितना मनोहारी होता है

27 जून 2015


Friday, June 26, 2015

मैं बचपन से ही कवि हूँ


मैं बचपन से ही कवि हूँ

कैलेण्डर के अलावा सूर्यास्त कहीं देखा नहीं था
तो कल्पना के घोड़े दौड़ाता था
कि सूरज जब डूबता होगा
तो समन्दर कितना उबल जाता होगा

और हाँ 
डूबने के लिए समन्दर ज़रूरी है

26 जून 2015
सिएटल | 425-445-0827

Wednesday, June 24, 2015

आपातकालीन स्वर्ण युग




बड़ों के लिए होगा आपातकाल
मेरे लिए तो स्वर्णिम युग था
शिमला में जो गुज़रा एक साल था
साल नहीं वह स्वर्ग था

घरों में घुसते बादल
देर से पकती दाल
साउथ इण्डियन कैफ़े का मसाला दोसा
बालाजी की साफ़्टी
गेटी थियेटर के जलवे
रिज के गाँधी
गुफ़ा की मूर्ति 
जतोग की पहाड़ी के पीछे डूबता सूरज
कालीबाड़ी का प्रसाद
राष्ट्रपति-निवास का ऐश्वर्य 
सिसिल होटल का गज़ीबो

बिना सेंसर की गई
चंदामामा
पराग
नंदन
लोटपोट

घर से
3 मील दूर स्कूल तक 
सहपाठियों का साथ चलना
सैलानियों का फ़ोटो खींचना-खिंचवाना 
पेड़ों से सेब-नाशपाती तोड़ना
ईद की सेवियाँ 
दीवाली की आधी चाकलेट-आधी खोए वाली बर्फ़ी 

पहाड़ो पर चढ़ना, उतरना, फिर चढ़ना 
जाते हुए कुलाँचे भरते जाना
और आते वक़्त ( कहीं लकड़बग्घा हँस न दे) के डर से
सहमे-सहमे घर आना

ठंड में 
बड़ी दूर से 
दादा के साथ चलकर घर आना
और घर आकर गरम-गरम गौर-राब पीना

वो ब्लेज़र
वो कार्डिगन
वो जुर्राबे
वो दस्ताने
कभी किसी डॉक्टर के पास न जाना
घर में ही मिक्स्ड-फ़्रूट के जाम बनाना

जब इतना सब एक साथ एक ही साल में हो 
तो वो स्वर्ग नहीं है तो और क्या है?

24 जून 2015
सिएटल । 425-445-0827




Tuesday, June 23, 2015

नाव थी सो छोड़ दी

नाव थी
सो छोड़ दी
बुद्ध की बात
ओढ़ ली

जब तक जिसका काम है
तब तक उसका साथ है
 
बाद में एक बोझ है
ढोना उसे सम्मोह है
 
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नाव
किनारे पे थी
क्षुब्ध सी
लहरों पे थी
उन्मुक्त सी
 
पतवार ने राह
तय की
किनारे पे
खूँटे से
बंध गई
 
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जो नाव है
वो साँस है
पेट में
जलती आग है
 
जो पतवार हैं
वे संस्कार हैं
कराते
भवसागर पार हैं
 
23 जून 2015
सिएटल । 425-445-0827
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Buddha’s Parable of the Boat.
http://www.victoriaprehn.com/2013/08/02/buddha-the-parable-of-the-boat/
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A man is trapped on one side of a river. On this side, there is great danger and uncertainty and on the far side of the river is safety. However there is no bridge spanning the river nor is there a ferry to cross over. What to do?
The man gathers together logs, leaves, and creepers and by his wit fashions a raft from these materials and manages to cross the river.
The Buddha then asks the listeners a question. What would you think if the man, having crossed over the river thought to himself – That raft has served me well I will carry it on my back over the land now?
The monks replied that it would not be a very sensible idea to cling to the raft in such a way.
The Buddha went on – What if he lay the raft down gratefully thinking that this raft has served him well but is no longer of use and can thus be laid down upon the shore?
The monks replied that this would be the proper attitude.
The Buddha concluded by saying – So it is with my teachings as well. They are like a raft and are for crossing over with not for seizing hold of.
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Buddha has been quoted as saying:
“Embrace nothing:  If you meet the Buddha, kill the Buddha. If you meet your father, kill your father. Only live your life as it is, Not bound to anything.”
This parable marks the attitude taken to the teachings given by the Buddha, that we must always bear in mind that the teachings, even the story of the Life of the Buddha are only descriptions, symbols pointing to something beyond the words. Their prime objective is to be of practical use and secondly to introduce the teaching of the Two Truths. The ultimate Truth or Reality cannot be described by words and concepts and must be seen for oneself. However the path that leads to that insight can be described and forms a map to show how to get there. This truth is relative because it only describes the way to this Truth.  It is not the Truth itself nor is it the path itself.  The practitioner must walk this path; it is not enough just to read about it or even to believe that it works!
Buddha notes:
“There are only two mistakes one can make along the road to truth;
 not going all the way, and not starting.”

Sunday, June 21, 2015

तुम्हीं हो माता, पिता तुम्हीं हो

तुम्हीं हो माता, पिता तुम्हीं हो
तुम्हीं हो बंधु, सखा तुम्हीं हो

तुम्हीं ने मुझको निर्बल बनाया
तुम्हीं ने मुझको सम्बल दिलाया

तुम्हीं ने मुझको हैं दु:ख-दर्द बाँटे
तुम्हीं ने मुझको हँसना सिखाया

कहने को हैं जग में रिश्ते-नाते
तुम्हीं ने मुझको गले लगाया

भले भला हो, भले बुरा हो
तेरा ही नाम मेरे होंठों पे आया

पितृ दिवस, 21 जून 2015
सिएटल । 425-445-0827

Thursday, June 11, 2015

तैरता हूँ रोज़

तैरता हूँ रोज़ 
पर किनारा नहीं छूटता
कुछ तो है बात 
कि धागा नहीं टूटता
 
कुछ तो थी बात
कुछ तो था रूतबा
वरना ऐसे ही नहीं कोई 
सोमनाथ लूटता
 
कुछ तो थी कमी
या कोई मजबूरी
वरना ऐसे कैसे कोई 
सोमनाथ लूटता
 
आए थे अकेले
अकेले ही चले जाएंगे
जुड़वों का जनाजा भी 
जुड़वा नहीं उठता
 
परिस्थितियाँ कैसी भी हो
डी-एन-ए स्थितप्रज्ञ है
बीज को है फूटना
तो पत्थरों में भी है फूटता
 
11 जून 2015
सिएटल । 513-341-6798