Tuesday, December 15, 2015

आजकल टाईम देखने का भी टाईम नहीं है

आजकल 
टाईम देखने का भी टाईम नहीं है
टाईम देखो तो टाईम ख़र्च होता है

पता चलता है कि
दो व्हाट्सैप मैसेजेस आए हैं
तीन फ़ेसबुक अपडेट्स
और पचासों फ़ीड्स
जिनको देखते-देखते
घंटा कब निकल जाता है
पता ही नहीं चलता है

फ़ोन है
पर फ़ोन आता नहीं 

घड़ी है
पर घड़ी पहनते नहीं

घर है
पर घर पर मिलते नहीं 
(स्टारबक्स पर मिलें?)

हम जबसे स्मार्ट हुए है
तबसे चीज़ों का सही 
इस्तेमाल करना
भूल गए हैं

ये न सोचो 
इसमें अपनी
कार है कि जीप है
उसे अपना लो
जो भी करती भीड़ है
ये ज़िद छोड़ो
मुँह न मोड़ो
हर घर का दर्शन है
ये गराज है
इस गराज का
यही है
यही है
सदुपयोग
थोड़ी कुर्सियाँ 
थोड़े डब्बे
पिंग-पांग टेबल
दो-चार पंखे
यही है
यही है
इनका सही स्थान
ये गराज है
इस गराज का
यही है
यही है
सदुपयोग

15 दिसम्बर 2015
सिएटल | 425-445-0827
(आनन्द बक्षी से क्षमायाचना सहित)





Friday, December 11, 2015

जब भी कोई फ़ैसला आता है


जब भी कोई फ़ैसला आता है
हम जज बन जाते हैं
और जब बात अपने पर आती है
तो वकालत करने लगते हैं

दो-चार
समाचार क्या पढ़ लिए
एक-दो
विडियो क्या देख लिए
पा जाते हैं
आधार
पर्याप्त 
किसी को भी
कोई भी
सज़ा
सुनाने के लिए

बस चले
तो
फाँसी पर लटका भी सकते हैं

अच्छा ही हुआ
हम
ज़्यादा 
पढ़े-लिखे नहीं
वरना
आज
किसी कोर्ट में होते
किसी न किसी पर
अपने पूर्वाग्रह
थोप रहे होते 

11 दिसम्बर 2015
सिएटल | 425-445-0827

Sunday, December 6, 2015

ये आँखें बोलती हैं


ये आँखें बोलती हैं
सब को तोलती हैं
ज़बाँ का, कान का काम
ख़ुद को सौंपती हैं

कहे इससे न मिलना
कहे उससे न मिलना
ये दुनिया है सयानी
दिलों को तोड़ती है

कहे इससे न मिलना
कहे उससे न मिलना
ये दुनिया की नादानी
दिलों को जोड़ती है

है कोई मीरा कहीं पे
है कोई राधा कहीं पे
तो कोई तुलसी के दल सी
प्रभु को ओढ़ती है

कभी हम थे बेगाने
तो थे हम भी सयाने
है आज दिल जो लगाया
आत्मा झकझोड़ती है

6 दिसम्बर 2015
सिएटल | 425-445-0827

Saturday, December 5, 2015

हर आदमी अपनी ज़िंदगी जीता है

हर आदमी अपनी ज़िंदगी जीता है
हर क्षण, हर पल, हर हाल में जीता है

हर आदमी अपनी ज़िंदगी जीता है
जो हार जाता है, वो जाता है
जो नहीं हारा, वो जीता है

जब तक न हो कोई हार
पूजा नहीं होती
सिर्फ़ नहलाने से
पूजा नहीं होती

जब तक न हो कोई हार
पूजा नहीं होती
जीत के नशे में 
पूजा नहीं होती

रोज़ा रोज़ा रखे
और फ़रीदा उपवास
ऐसी बातें 
रोज़ाना नहीं होतीं

चलो चलें 
किसी प्यासे को 
पानी पिला आएँ 
ऐसी बातें 
ए-सी में नहीं होतीं

सैलानी हो
और सैलाना से हो
ऐसी बातें 
तर्क संगत नहीं होतीं

अगर कोई बंदा
गाना न गाए
तो वो बेगाना नहीं होता
हर शास्त्र 
जो पाकिस्तान से आए
पाक-शास्त्र नहीं होता

कैसे कह दूँ कि 
तुम हो मेरी
जबकि तुम्हारा नाम सीता है
तुम वो उपवन हो
जिसे राम ने ही हर हर युग में सींचा है

कैसे कह दूँ कि 
तुम हो मेरी
जबकि तुम्हारा नाम कुछ और है
प्रेम है, प्यार है
पर मेरी कोई और है

न बुद्ध थे बुद्धू 
न राम ने सीया
यह है भाषा की सीमा
हर हस्ती परिभाषित नहीं होती

(सैलानी = जो सैलाना से हो; घुमक्कड़ी 
सैलाना = मध्य प्रदेश के रतलाम जिले की तहसील 
कहा जाता है कि सैलाना वाले सैलाना छोड़कर कहीं और नहीं जाते। 

यह रचना पढ़ते हुए पाठक ध्यान रखें कि मेरी पश्चिमी देशों में लोकप्रिय नाम भी है। )

5 दिसम्बर 2015
सिएटल | 425-445-0827