Friday, August 9, 2019

जितना मंजन किया

जितना मंजन किया
उतना वंदन किया

फिर भी दाँत झड़े
दु:  घटे
डॉक्टर ढूँढे 
पण्डित ढूँढे 
सबने घुटने
टेक दिए

कहने लगे
ढलती उम्र का इलाज नहीं
जीवन के चढ़ाव-उतार से निजात नहीं

फिर क्यूँ माँजूँ?
नाम भजूँ?
जिसका कोई स्थायी स्वभाव नहीं?

क्योंकि माँजे बिना मुस्कान नहीं
गुणगान बिना हर्ष--उल्लास नहीं

राहुल उपाध्याय  9 अगस्त 2019  सिएटल

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