Thursday, June 18, 2020

सूरज


जब चला था पूरब से पश्चिम की ओर 
न जाने किस के हाथ थी पतंग की डोर 
कि बीत जाने के बाद चौतीस साल 
आज मेरा अपना यहाँ कुछ भी नहीं
सूरज भी है तो किसी का इस्तेमाल किया हुआ
हवा भी है तो उसमें है छुपी बीमारी कहीं 
भूमि भी है पर उससे मिटती भूख नहीं 
साँसें भी हैं पर उनमें आग नहीं 
इन्सान तो हूँ पर इन सा नहीं 
रोबोट होता तो विवेक भी होता 
चाहे वो कृत्रिम ही होता
किसी आंदोलन से न विचलित होता
और इस पर न कोई विचलित होता

राहुल उपाध्याय । 18 जून 2020 । सिएटल

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