tag:blogger.com,1999:blog-2212278896517127466.post1313690023241210801..comments2024-02-28T02:15:53.623-08:00Comments on उधेड़-बुन: तिलमिलाना और दिल मिलानाRahul Upadhyayahttp://www.blogger.com/profile/17340568911596370905noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-2212278896517127466.post-76770653361726169392008-05-19T16:36:00.000-07:002008-05-19T16:36:00.000-07:00नीरज - आप आए। आपने समय निकाल कर मेरी रचनाएँ पढ़ी। ब...नीरज - आप आए। आपने समय निकाल कर मेरी रचनाएँ पढ़ी। बहुत अच्छा लगा। आप ऐसे ही आते रहिए और अपने विचार से मुझे अवगत कराए। आपकी कोई बात मुझे बुरी नहीं लगी। मैं आभारी हूँ कि आपने मुझसे सम्पर्क साधा।<BR/> <BR/>मेरी रचनाएँ मात्र रचनाएँ हैं। मैं इन्हें कोई नाम नहीं देना चाहता। नाम देने से बंधन हो जाते है। सीमाएँ बन जाती हैं। मैं उनसे बचना चाहता हूँ। मैंने कहीं भी घोष्णा नहीं की है कि यह ग़ज़ल है और यह नज़्म है और यह कुँडली है।<BR/> <BR/>मेरी कविताओं में विचार है, कल्पना नहीं। भाव है। बस। किसी शिल्प का जामा इन्हें न पहनाया है और न पहनाऊंगा। अगर समय हो तो इन रचनाओं को देखें:<BR/>http://mere--words.blogspot.com/search/label/world%20of%20poetry<BR/> <BR/>सद्भाव सहित,<BR/>राहुल<BR/>425-445-0827Rahul Upadhyayahttps://www.blogger.com/profile/17340568911596370905noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2212278896517127466.post-66169626878489880662008-05-19T16:25:00.000-07:002008-05-19T16:25:00.000-07:00आज पहली बार आपके चिट्ठे पर आया और आपके पुराने लेख ...आज पहली बार आपके चिट्ठे पर आया और आपके पुराने लेख भी पढे ।<BR/><BR/>आपकी रचनाओं में ख्याल अच्छे हैं लेकिन गजल के शिल्प के हिसाब से कई कमियाँ हैं । आशा है आप अन्यथा नहीं लेंगे ।<BR/><BR/>१) आपको गजल के मीटर (बहर) पर ध्यान देना होगा । पूरी गजल में सभी पंक्तियों की लम्बाई एक समान या लगभग एक जैसी ही हो ।<BR/><BR/>इसके लिये आप भर्ती के शब्द (गैर जरूरी) हटाकर और अपने ख्याल को दुरुस्त करके गजल को दुरुस्त कर सकते हैं । मुझे गजल की ज्यादा समझ नहीं है लेकिन आपकी रचना पर ही एक प्रयास किया है । आशा है आप अन्यथा नहीं लेंगे :-)<BR/><BR/><BR/><BR/><BR/>वफ़ा और जफ़ा में इतना फ़ासला नहीं होता,<BR/>तो खुल के बात करने का हौसला नहीं होता ।<BR/><BR/>जरा तिलमिलाया और मुझे बदनाम कर दिया,<BR/>तेरा और से दिल मिलाने का चर्चा नहीं होता ।<BR/><BR/>माफ़ कर देता तुझे तीर खा कर भी मैं<BR/>बशर्ते तेरी त्रिया का तीर तिरछा नहीं होता ।<BR/><BR/>विश्वासघाती होते नहीं हैं सिर्फ़ राजनीति तक,<BR/>बस प्यार के मारों का रोज धरना नहीं होता ।<BR/><BR/>मान भी जाता कि एक दिन पत्थर होगी तुम<BR/>गर कंधे पे तेरे फूल सा ये चेहरा नहीं होता ।<BR/><BR/>ईश्वर नहीं है सिलेबस में तो चलो न सही,<BR/>पर प्यार का भी कोई क्यों पर्चा नहीं होता ।Neeraj Rohillahttps://www.blogger.com/profile/09102995063546810043noreply@blogger.com