tag:blogger.com,1999:blog-2212278896517127466.post1797064862711596916..comments2024-02-28T02:15:53.623-08:00Comments on उधेड़-बुन: आए दिन हादसे होते ही रहते हैंRahul Upadhyayahttp://www.blogger.com/profile/17340568911596370905noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-2212278896517127466.post-8854006693667011942013-09-07T11:16:16.733-07:002013-09-07T11:16:16.733-07:00आपने सही कहा है कि हम दुःख-भरी ख़बरों के बारे में स...आपने सही कहा है कि हम दुःख-भरी ख़बरों के बारे में सोचना ही नहीं चाहते। अगर किसी खबर से दिल को दुःख महसूस होता है तो दिमाग तर्क देने लगता है - "सबको अपने-अपने कर्मों का फल मिलता ही है", "अपना भी तो एक जीवन है", आंसू बहाए तो लोग बात नहीं करेंगे, जब हम कुछ कर ही नहीं सकते तो दुखी होने से क्या फायदा - और इस तर्क में दिल की आवाज़ दब जाती है, दिमाग फिर से दिल पर हावी हो जाता है...Anonymousnoreply@blogger.com