tag:blogger.com,1999:blog-2212278896517127466.post183010112999640630..comments2024-02-28T02:15:53.623-08:00Comments on उधेड़-बुन: अभिषेकRahul Upadhyayahttp://www.blogger.com/profile/17340568911596370905noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-2212278896517127466.post-83359440244357905632014-08-24T23:06:18.956-07:002014-08-24T23:06:18.956-07:00Title पढ़कर लगा Abhishek Bachchan की कोई news होगी ...Title पढ़कर लगा Abhishek Bachchan की कोई news होगी शायद! :)<br /><br />यह पत्थर हैं या ईश्वर? मुझे लगता है बात मन की भावना की है। जब मन में ईश्वर का ध्यान जगा होता है तो मूर्ती में भगवान की presence लगती है, तस्वीर में इश्वर का रूप दिखता है। जब मन कहीं दूसरी जगह चला जाता है, किसी और चीज़ में व्यस्त हो जाता है, तो सामने सिर्फ एक पत्थर रह जाता है। <br /><br />घर की बहू-बेटियाँ घर में बच्चों को प्यार से नहलाती हैं। अगर मन में motherliness जागे और भगवान को बाल रूप में सोचें, तो हम उन्हें स्नेह से नहला सकते हैं। अगर उन्हें किसी और रूप में सोचें तो यह possible नहीं है। <br /><br />बात यही है कि हम ईश्वर को किस भाव से देखते हैं और उस समय मन उन पर focussed है या नहीं। Anonymousnoreply@blogger.com