tag:blogger.com,1999:blog-2212278896517127466.post5184164891635109328..comments2024-02-28T02:15:53.623-08:00Comments on उधेड़-बुन: किनारे दूर ही रहे तो अच्छा लगता हैRahul Upadhyayahttp://www.blogger.com/profile/17340568911596370905noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-2212278896517127466.post-50120960889836081732013-09-28T10:41:57.962-07:002013-09-28T10:41:57.962-07:00"किनारे दूर ही रहें तो अच्छा लगता है
बहता दरि..."किनारे दूर ही रहें तो अच्छा लगता है<br />बहता दरिया वरना इक नाला लगता है"<br /><br />कविता की यह दो lines अच्छी हैं। दरिया और नाले का contrast थोड़ा extreme लगा। शायद आपकी कविताओं में "नाला" शब्द पहले कभी आया नहीं है। <br /><br />"कुंजियों को जबसे तालों में कैद किया है<br />हर मुश्किल का हल अब आसां लगता है"<br /><br />Ready-made solutions को ताले में रखने की बात बहुत बढ़िया लगी। खुद निकाला हुआ हल चाहे perfect न भी हो, फिर भी satisfying लगता है। इस बात से कुछ similar lines मन में आयीं:<br /><br />कुंजियों को जबसे तालों में कैद किया है<br />हर मुश्किल का हल अब अपना लगता है<br /><br />और <br /><br />कुंजियों को जबसे तालों में कैद किया है<br />दिमाग का ताला तबसे खुलता लगता है<br /><br />Last में घोंटाले वाली बात बहुत funny हैं! :)<br />Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2212278896517127466.post-54788208033277805612013-09-25T22:45:09.064-07:002013-09-25T22:45:09.064-07:00हर दो lines कुछ बढ़िया कहती हैं! कश्तियों को बंधने ...हर दो lines कुछ बढ़िया कहती हैं! कश्तियों को बंधने की बात अच्छी और सही लगी। कविता की ending में प्रकृति के नियमों में घोटाला होने की बात मज़े की है! Anonymousnoreply@blogger.com