tag:blogger.com,1999:blog-2212278896517127466.post5859371576483494013..comments2024-02-28T02:15:53.623-08:00Comments on उधेड़-बुन: खुशीRahul Upadhyayahttp://www.blogger.com/profile/17340568911596370905noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-2212278896517127466.post-29140531029865621122013-05-09T22:29:17.409-07:002013-05-09T22:29:17.409-07:00आज इस कविता को पढ़ते हुए, specially कैद में भी आज़ाद...आज इस कविता को पढ़ते हुए, specially कैद में भी आज़ादी का अनुभव करने की बात से, मुझे Viktor E. Frankl की लिखी कुछ lines याद आयीं। वह एक concentration camp में रहे थे। उन्होंने लिखा कि concentration camp की life बहुत ही tough थी। वहां किसी बंधी के लिए ख़ुशी का तो कोई कारण हो ही नहीं सकता था। लेकिन इतने मुश्किल हालत में भी कभी-कभी, कुछ क्षणों के लिए, किसी बंधी के चेहरे पर ख़ुशी दिखती थी। उन्होंने कहा कि: “I understood how a man who has nothing left in this world still may know bliss, be it only for a brief moment, in the contemplation of his beloved.”<br /><br /><br />ख़ुशी पर यह आपकी एक सुन्दर कविता है, राहुलजी। <br />Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2212278896517127466.post-26217807133303260912013-05-04T17:45:09.842-07:002013-05-04T17:45:09.842-07:00"खुशी
एक खुशबू है
खुशबू की याद है
जो क़ैद ..."खुशी <br /> एक खुशबू है<br /> खुशबू की याद है<br /> जो क़ैद में भी किसी को<br /> कर देती आज़ाद है"<br /><br />सुन्दर और सच कविता! ख़ुशी बाहर से भी मिल जाती है और अपने अन्दर से भी आ जाती है। आपने ठीक कहा की उसका कोई रंग, कोई रूप, कोई निश्चित वक़्त नहीं होता। उसका कब और कहाँ हमें एहसास हो जाये, कुछ पता नहीं। पर उसके आते ही सब कुछ अच्छा लगने लगता है, जीवन सुन्दर लगता है, मन संतुष्ट लगता है, रंग अच्छे लगते हैं... तब हम जान जाते हैं की हम खुश हैं। <br /><br /><br />Anonymousnoreply@blogger.com