tag:blogger.com,1999:blog-2212278896517127466.post6072739424634903697..comments2024-02-28T02:15:53.623-08:00Comments on उधेड़-बुन: साक्षात्कारRahul Upadhyayahttp://www.blogger.com/profile/17340568911596370905noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-2212278896517127466.post-13443882423276679472014-03-02T19:32:32.715-08:002014-03-02T19:32:32.715-08:00मुझे कविता में "चुके" से "सके"...मुझे कविता में "चुके" से "सके" का transition बहुत ही अच्छा लगा! मंत्र पढ़े जा चुके हैं, देवताि पूजे जा चुके हैं लेकिन क्या प्रश्न सब पूछे जा सके हैं, समझे जा सके हैं? <br /><br />मुझे लगता है दोनों बातें सोचने वाली हैं - क्या जितने भी प्रश्न possible हैं, सब उठाए जा चुके हैं और क्या वो सब प्रश्न जो हमारे अंदर उठे हैं, हम खुलकर पूछ सके हैं?<br /><br />क्या हम सच में परमपिता से मिलने के लिए पूजा करते हैं? कई बार हम भटकते मन को शान्त करने के लिए पूजा करते हैं; कई बार भगवान से मन चाही चीज़ पाने के लिए, किसमत बदलने के लिए, कर्मों से बचने के लिए, और कई बार सिर्फ इसलिए कि सब कर रहे हैं।<br /><br />पूजा से भगवान मिलेंगे कि नहीं, पता नहीं, लेकिन पूजा अगर मन को शान्त करे, हमें नर्म बनाए, मन में प्रेम की भावना जगाए, दूसरों को माफ करने की और उनसे माफी मांगने की हिम्मत दे, तो जीवन का सफर थोड़ा आसान हो जाता है।<br /><br />जीवन शांति से गुज़र जाए, अभी यही बहुत है; बाकि जैसे आप कहते हो, जब साँस बैठेगी तब पुनर्जन्म में या जन्म-मरण से छूटने में विश्वास उठ ही जाएगा। :)Anonymousnoreply@blogger.com