tag:blogger.com,1999:blog-2212278896517127466.post8425707431345703514..comments2024-02-28T02:15:53.623-08:00Comments on उधेड़-बुन: कागज़ी दुनियाRahul Upadhyayahttp://www.blogger.com/profile/17340568911596370905noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-2212278896517127466.post-56936346794132695842014-11-03T06:21:35.152-08:002014-11-03T06:21:35.152-08:00कविता पढ़ने के बाद ध्यान से सोचा कि सच में एक कागज़ ...कविता पढ़ने के बाद ध्यान से सोचा कि सच में एक कागज़ का टुकड़ा कितनी important चीज़ें define करता है - वही official proof है कि हम कब और कहाँ पैदा हुए थे, उसी को जमा करने से हम धन के मालिक बनते हैं, उसी से अपने सुख की चीज़ें खरीदते हैं, उसी से हमारे जीवन का formal रिश्ता किसी से जुड़ता है (और कभी टूटता है), वही car या home ownership का proof है - कितना important है कागज़! <br /><br />आपने सही कहा कि सारा ज्ञान भी कागज़ पर लिखे शब्दों से transmit किया जाता है - ज़ुबानी ज्ञान तो पीढ़ियाँ भूल जाती हैं या distorted form में याद रखती हैं। अगर कागज़ और उस पर लिखे शब्द न हों तो दुनिया में knowedge sustain न करे, यहाँ अपनी existence ही proove करना मुश्किल हो जाये। <br /><br />इस कागज़ की दौड़ में हमारे जीवन का सफर भी कागज़ी होने लगता है, रिश्ते भी कागज़ी बनते हैं और आस-पास की दुनिया कागज़ी ही लगने लगती है... Anonymousnoreply@blogger.com