tag:blogger.com,1999:blog-2212278896517127466.post8496234386242776423..comments2024-02-28T02:15:53.623-08:00Comments on उधेड़-बुन: हम हैं तो ख़ुशियाँ हैंRahul Upadhyayahttp://www.blogger.com/profile/17340568911596370905noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-2212278896517127466.post-61336311357926502342016-05-26T06:41:57.348-07:002016-05-26T06:41:57.348-07:00यह thought-provoking बात है कि सागर इतना विशाल और ...यह thought-provoking बात है कि सागर इतना विशाल और गहरा होने पर भी किसी की प्यास directly नहीं बुझा सकता। उसके पानी को रूप बदलना पड़ता है, एक transformation cycle से निकलना पड़ता है, पवित्र होना पड़ता है, फिर उसका जल बरसकर सबकी प्यास बुझा पाता है। हमें भी जन्म-मरण के cycle को हँसकर स्वीकार करना चाहिए, और जब भी जन्म लें तो पहले से अधिक पवित्र, अधिक खुशहाली लाने वाले रूप में आने की प्रार्थना करनी चाहिए, ताकि हम जहाँ भी हों, वहाँ खुशियाँ बिखरा सकें।<br /><br />"वृहद", "बाध्य", "वाष्नीकरण", "सराबोर", "अभिशप्त" - शब्द अच्छे लगे।<br /><br />अंत की lines बहुत अच्छी लगीं : <br />"मेघ हैं तो बगिया है, हम हैं तो ख़ुशियाँ हैं"।Anonymousnoreply@blogger.com