tag:blogger.com,1999:blog-2212278896517127466.post8785716316589355060..comments2024-02-28T02:15:53.623-08:00Comments on उधेड़-बुन: कब किसने किसको घर जाते देखा Rahul Upadhyayahttp://www.blogger.com/profile/17340568911596370905noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-2212278896517127466.post-86410266770732430522014-11-08T09:11:16.225-08:002014-11-08T09:11:16.225-08:00दस lines की कविता में कितनी touching बातें हैं! &q...दस lines की कविता में कितनी touching बातें हैं! "कोई होता घर पर तो घर भी होता" - जब घर के लोग सारा दिन घर से बाहर रहते हों , या साथ रहकर भी एक दुसरे से दिल खोलकर बात न करते हों, तो घर सिर्फ ईंट-पत्थर का बेजान मकान ही रह जाता है, उसमें soul missing रहती है। Last की दो lines - "बड़ा सा घर है और कोई बड़ा नहीं है, बच्चे बढ़े, तो उन्हें भी कदम बढ़ाते देखा" - wordplay में बढ़िया हैं और बात भी गहरी कहती हैं। इन सब बातों को एक साथ, कविता के रूप में पढ़ना बहुत अच्छा लगा! कविता में शब्दों का खेल - "कब किसने किसको," "सबने सबको," "सुनते सुनाते,"बड़ा, बढ़े, बढ़ाते" - भी अच्छा लगा! Anonymousnoreply@blogger.com