Sunday, January 19, 2025

इतवारी पहेली: 2025/01/19


इतवारी पहेली:


लिखो सही, ## ##

जन्नत न दूर, है ### #


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya


आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 

सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 26 जनवरी 2025 को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 19 जनवरी 2025 । सिएटल 




आँखों में मेरी कोई नहीं है

आँखों में मेरी कोई नहीं है

साँसों में मेरी बसती है राधा


मिलती है तो जैसे हूर है वो

जाने पे उसके बचता हूँ आधा


न बंधन कोई, न अनुबंध कोई 

सीधा-सच्चा रिश्ता है सादा


वो गाहे-बगाहे मुझे याद करे

न चाहिए कुछ इससे ज़्यादा 


बेवफ़ाई का हक़ है सबको लेकिन 

मुझसे न करे वो फिर दोबारा 


राहुल उपाध्याय । 19 जनवरी 2025 । सिएटल 



Saturday, January 18, 2025

तेरा-मेरी रिश्ता है ऐसा

तेरा-मेरा रिश्ता है ऐसा

जैसे सूरज-चाँद का फेरा


तू न हो तो मैं भी नहीं 

तुझसे ही तो है नूर मेरा


मिल के भी हम मिलते कहाँ है

व्यास हमारा जैसे का तैसा


कटते-कटते ही कटेगी ज़िन्दगी 

चार दिनों का न ये रैन बसेरा 


कोई पूछे हमसे तो न समझे

के दर्द ने हमें कितना है घेरा


राहुल उपाध्याय । 18 जनवरी 2025 । सिएटल 







वह रात-बेरात

वह रात-बेरात 

जग जाती है 

उठ जाती है

पढ़ लेती है मेरी कविता

कहने को कह देती है कि

भूख लगी थी

सो उठ गई

रात खाना नहीं खाया था

थक गई थी 


पहले वह मेरी कविताएँ पसंद करती थी

फिर मुझे पसंद करने लगी

अब शायद प्यार करती है 


राहुल उपाध्याय । 18 जनवरी 2025 । सिएटल 


बेवफ़ा को तूने हुस्न दिया है

बेवफ़ा को तूने हुस्न दिया है 

बता तुझे क्या-क्या मिला है 


जन्नत और आँसू, ग़म और ख़ुशी 

इनके सिवा और क्या मिला है


दोज़ख़ में है तू, मैं हिज्र का मारा

बता तुझे और क्या मिला है 


न कविता ये मेरी, न ग़ज़ल है कोई

जो भी जोड़ा, बिखरा मिला है 


बेवफ़ा तू क़ातिल शातिर है इतनी 

के जो भी मरा, ज़िन्दा मिला है 


राहुल उपाध्याय । 18 जनवरी 2025 । सिएटल 



Friday, January 17, 2025

जबसे 🤦‍♀️का मतलब

जबसे 🤦‍♀️ का 

मतलब समझ में आया

ज़िन्दगी गुलज़ार है

बागों में बहार है 


मैं अनाड़ी न होता

वह क़ायल न होती

उसकी हँसी पे मैं

घायल न होता 


राहुल उपाध्याय । 17 जनवरी 2025 । सिएटल 


Thursday, January 16, 2025

भूल गए हम भूलना क्या था

भूल गए हम भूलना क्या था

याद रहा बस याद दिलाना


चलते-फिरते मौसम हो तुम

रंग बदलता कौन है इतना


हाथों में जब हाथ नहीं हैं

कौन कहेगा है मेल हमारा


सात हैं दिन और सातों नामी

रातों का तुम नाम बताना


सागर गहरा, खारा पानी

बादल चंचल, प्यास बुझाता


राहुल उपाध्याय । 16 जनवरी 2025 । सिएटल