Thursday, October 31, 2013

बड़े पत्ते गिर गए

बड़े पत्ते गिर गए
छोटे-छोटे रह गए
सूरज भी चला गया
तारे सारे रह गए

रोशनी न खास है
छाँव भी घनी न है
फिर भी रोशनी और छाँव का
आभास तो दे रहे

हर किसी के अवसान में
किसी न किसी का उत्थान है

इक ढल गया
इक उग गया
इक मिट गया
इक बन गया
इक डूब गया
इक उठ गया
इक छुप गया
इक खिल गया
इक खो गया
इक मिल गया
इक सो गया
इक जग गया

हर किसी के अवसान में
किसी न किसी का उत्थान है

काल के कगार पे
न शून्यता
न अभाव है
जो भी जैसा चाहिए
पा रहा संसार है

राजेद्र यादव और के. पी. सक्सेना की याद में
31 अक्टूबर 2013
सिएटल । 513-341-6798

Tuesday, October 29, 2013

रैली में बम कैसे फट गया?

दुनिया करे सवाल तो हम क्या जवाब दें?
मुश्किल हो अर्ज़-ए-हाल तो हम क्या जवाब दें?

पूछे कोई कि रैली में बम कैसे फट गया?
लाखों की भीड़ में कोई कैसे घुस गया?
कहने से हो बवाल तो हम क्या जवाब दें?

किस-किस का किस्सा-ए-खोट आप सुनाएंगे?
देखेंगे आईना तो दोष खुद में पाएंगे
नीयत ही हो छिनाल तो हम क्या जवाब दें?

वोटों को बीनने का समां फिर से बंध गया
आरोपों-प्रत्यारोपों का युद्ध फिर से छिड़ गया
धोती का हो रूमाल तो हम क्या जवाब दें?

(साहिर से क्षमायाचना सहित)
29 अक्टूबर 2013
सिएटल । 513-341-6798

Saturday, October 26, 2013

दाना दाना चुगता नहीं

दाना दाना चुगता  नहीं
बिन बीन साँप झूमता नहीं

बिना बिना कुछ होता नहीं
वीणा बिना सुर लगता नहीं

बीन बीन के मैं हार गया
दाल में काला दिखता नहीं

ज़िंदाँ है तो ज़िंदा है बंदा
छूट के तो बंदी बचता नहीं

ज़माने पे जमा ना रौब हमारा
रोब से ही रौब पड़ता नहीं

राहुल उपाध्याय | 26 अक्टूबर 2013 | सिएटल 
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दाना = ज्ञानी; बीज
बिना = बगैर; आधार
ज़िंदाँ = जाईल 
रोब = robe


Sunday, October 20, 2013

करवा चौथ

भोली बहू से कहती है सास
तुम से बंधी है बेटे की सांस
व्रत करो सुबह से शाम तक
पानी का भी न लो नाम तक

जो नहीं हैं इससे सहमत
कहती हैं और इसे सह मत

करवा चौथ का जो गुणगान करे
कुछ इसकी महिमा तो बखान करे
कुछ हमारे सवालात हैं
उनका तो समाधान करे

डाँक्टर कहें
डाँयटिशियन कहें
तरह तरह के
सलाहकार कहें
स्वस्थ जीवन के लिए
तंदरुस्त तन के लिए
पानी पियो, पानी पियो
रोज दस ग्लास पानी पियो

ये कैसा अत्याचार है?
पानी पीने से इंकार है!
किया जो अगर जल ग्रहण
लग जाएगा पति को ग्रहण?
पानी अगर जो पी लिया
पति को होगा पीलिया?
गलती से अगर पानी पिया
खतरे से घिर जाएंगा पिया?
गले के नीचे उतर गया जो जल
पति का कारोबार जाएंगा जल?

ये वक्त नया
ज़माना नया
वो ज़माना
गुज़र गया
जब हम-तुम अनजान थे
और चाँद-सूरज भगवान थे

ये व्यर्थ के चौंचले
हैं रुढ़ियों के घोंसले
एक दिन ढह जाएंगे
वक्त के साथ बह जाएंगे
सिंदूर-मंगलसूत्र के साथ
ये भी कहीं खो जाएंगे

आधी समस्या तब हल हुई
जब पर्दा प्रथा खत्म हुई
अब प्रथाओ से पर्दा उठाएंगे
मिलकर हम आवाज उठाएंगे

करवा चौथ का जो गुणगान करे
कुछ इसकी महिमा तो बखान करे
कुछ हमारे सवालात हैं
उनका तो समाधान करे

Wednesday, October 9, 2013

इसके सिवा जहाँ है कहाँ

जीना यहाँ, मरना यहाँ
इसके सिवा जाना कहाँ

जी चाहे जब मुझको जल-खाद दो
जी चाहे जब सर काट दो
फलूँगा वहीं, गिरूँगा जहाँ
इसके सिवा जाना कहाँ

योनियाँ कई बदलूँगा मैं
फिर भी यहीं जन्मूँगा मैं
स्वर्ग यहीं, नर्क भी यहाँ
इसके सिवा जाना कहाँ

कभी आम के पेड़ पे फलता हूँ मैं
कभी बन के बंसी बजता हूँ मैं
आम भी यहीं, श्याम भी यहाँ
इसके सिवा जहाँ है कहाँ

(शैली शैलेन्द्र से क्षमायाचना सहित)
9 अक्टूबर 2013
सिएटल । 513-341-6798

Tuesday, October 8, 2013

मंगल आए, मंगल आए

मंगल आए, मंगल आए
इसी बात की रट लगाए
मैं शनि, रवि, सोम पे कुढ़ता रहा
लेकिन जो आता है
वो जाता है

ये सच मुझे लूटता रहा

अब बुध, गुरू का भी मैं शुक्र अदा करूँ
और हर हाल में मैं खुश रहूँ


मंगलवार, 8 अक्टूबर 2013
सिएटल ।
513-341-6798

Thursday, October 3, 2013

मैं मर रहा हूँ, झर रहा हूँ

मैं
मर रहा हूँ
झर रहा हूँ
और
तुम हो कि
मैं तुम्हें सुंदर लग रहा हूँ


ये तुम्हारे सर से
रंगों से प्रेम का भूत
'गर नहीं उतरा
तो एक न एक दिन
ये तुम्हें ज़रूर ले डूबेगा


इतने पतझड़ बीत गए
लेकिन फिर भी
इस बार फिर
तुम कैमरा लटकाए
दाँत फाड़े खड़े हो
जैसे मुझपे फूल खिले हो


अजी 'फ़ूल' तो तुम हो
जो अब तक नहीं समझ सके
कि हरे का लाल होना कभी शुभ नहीं रहा
चाहे चौराहे के ट्रैफ़िक की लाईट हो
या प्लेटफ़ार्म पे लहराती झण्डी


हरा हरा ही रहे तो बेहतर है
खाली-पीली लाल-पीला होना किसे अच्छा लगता है?


3 अक्टूबर 2013
सिएटल । 513-341-6798