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Sunday, April 16, 2023

हर पहर धुन यही हम गाते हैं

हर पहर धुन यही हम गाते हैं 

हम तेरे चरणों में सुख पाते हैं 


ज़िन्दगी तुझसे ही हमने पाई है 

सब सुख-चैन मिला तुझसे है

मैं कहीं जाऊँ अकेला न रहा

तेरा हाथ रहा सदा मुझपे हैं

आग लग जाए, दीं बरसातें हैं 


जब कभी सूझे न कोई रस्ता

राह रोशन मिली तुझसे है

मैं कभी भूल भी जाऊँ तुझको

तू भला मुझको कहाँ भूले हैं 

रात ढल जाए, पौ फट जाते हैं 


जितनी हरियाली है इन बागों में

सब की सब तूने उपजाई है

कब कहाँ कौन फल पाएगा

सब की सब तूने लिखवाई है 

खेल सब तेरा, हम प्यादे हैं


राहुल उपाध्याय । 16 अप्रैल 2023 । सिएटल 


Thursday, May 13, 2021

हमें डर हो गया है

https://youtu.be/hh3qd9QYagA


मिलो न तुम तो हम घबराएँ

मिलो तो मास्क लगाएँ

हमें डर हो गया है

मिलो न तुम तो हम मर जाएँ

मिलो तो निपट न जाएँ

हमें डर हो गया है


ओ भोले साथिया

रोग ज़माने में न एक हैं

तारें गगन में जितने

उससे भी ज़्यादा अनेक हैं

ले के दवा भी न मिट पाए

ऐसे रोग हैं हाय

हमें डर हो गया है


जीते कभी, कभी हार गएँ

हदें हमारी हम जान गएँ

ऐसी बलाएँ, क़ुरबान गएँ

इसे मिटाए वो बढ़ जाए

क्या-क्या नाज़ उठाएँ

हमें डर हो गया है


ओ सोहने जोगिया

हम हैं अभी भी इंसान रे

कर लें फ़तह क़िले कितने

फिर भी हैं अनजान रे

कौन हमें जो यहाँ पे लाया

कौन हमें ले जाए

हमें डर हो गया है


राहुल उपाध्याय । 13 मई 2021 । सिएटल 

Saturday, December 12, 2020

ये दवाई ये वैक्सीन मेरे काम की नहीं

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ये दवाई ये वैक्सीन मेरे काम की नहीं


कैसे कराऊँ क़त्ल किसी बेगुनाह का

हँसता हुआ चराग है अपने समाज का

ऐ काश भूल जाऊँ मगर भूलता नहीं

किस धूम से कटेगा सर बेक़रार का


अपना पता मिले न खबर यार की मिले

दुश्मन को भी ना ऐसी सज़ा आज सी मिले

उनको ख़ुदा मिले है ख़ुदा की जिन्हें तलाश

मुझको बस इक झलक किसी इंसान की मिले


वैक्सीन लगाके भी मुझको ठिकाना न मिलेगा 

ग़म को भूलाने का कोई बहाना न मिलेगा 

हाथ तरसे जिसमें काम को क्या समझूँ उस संसार को

इक जीती बाज़ी हारके मैं ढूँढूँ बिछड़े काम को


दूर निगाहों से आँसू बहाता हूँ यूँही 

कहाँ को जाऊँ मैं मुझे न बुलाता है कोई

ये झूठे वादे छोड़ दो, सारे हथकंडे छोड़ दो

वैक्सीन कोई इलाज नहीं, मुझसे नाता जोड़ लो


(कैफ़ी आज़मी से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 12 दिसम्बर 2020 । सिएटल 

https://youtu.be/LP1D_F1ERQI


Tuesday, September 1, 2020

हैं कमल हरे-भरे

हैं कमल हरे-भरे

हैं क़लाम डरे-डरे

ज़रा देखो तो

किस को किस की ख़बर 

इक रात होके निडर

ज़रा सोचो तो


बात कही

गुपचुप ही कही

जब भी कही

कही दबकर 

और इससे बड़ा नहीं 

कोई अपराध 

तू जाने ना


विरोध में है 

जीवन की खुशी

देती है खुशी 

कई ग़म भी

तू मान भी लें 

कभी हार

मैं मानूँ ना


(कैफ़ी आज़मी से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 22 अगस्त 2020 । सिएटल

https://www.youtube.com/watch?v=fWt9Dzv2Qo0 


Wednesday, December 7, 2016

तुम इतने जो 😊लगा रहे हो


तुम इतने जो 😊लगा रहे हो
क्या ग़म है जिसको छुपा रहे हो
आँखों में नमी, 😂 text में
क्या हाल है क्या दिखा रहे हो

खुल जाएँगे भेद धीरे-धीरे
नाहक हमें समझा रहे हो

जिन गीतों का सच मर चुका है
तुम क्यूँ उन्हें गाए जा रहे हो

भावनाओं का मेल है ये जीवन
भावनाओं से भागे जा रहे हो

(कैफी आज़मी से क्षमायाचना सहित)
7 दिसम्बर 2016
सिएटल | 425-445-0827
tinyurl.com/rahulpoems 

Monday, February 18, 2008

स्वामी के दीवाने


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

हर तरफ़ अब यहीं अफ़साने हैं
सब किसी न किसी स्वामी के दीवाने हैं

इतनी बेवकूफ़ी भरी हैं इंसानों में
कि पढ़े-लिखे भी गधे हो जाए
स्वामीजी जो नज़र आ जाए चैनल पर
तो पांच बजे भी उठ के खड़े हो जाए
छोटे-बड़े सब लगते दुम हिलाने हैं
हर तरफ़ अब यहीं अफ़साने हैं
सब किसी न किसी स्वामी के दीवाने हैं

इक हल्का सा इशारा इनका
किसी भी रोगी को चंगा कर दे
इस तरह की आस के बदले में
जो जान और माल फ़िदा कर दे
ऐसे भक्त इन्हे और फ़ंसाने हैं
हर तरफ़ अब यहीं अफ़साने हैं
सब किसी न किसी स्वामी के दीवाने हैं

कभी लंदन तो कभी अमरीका
नहीं ढाका या फिर अफ़्रीका
सिर्फ़ रईसो को भक्त बनाते हैं
आलिशान होटलों में शिविर लगाते हैं
और दावा ये कि गीता के श्लोक समझाने हैं
हर तरफ़ अब यहीं अफ़साने हैं
सब किसी न किसी स्वामी के दीवाने हैं

(कैफ़ी आज़मी से क्षमायाचना सहित)