मिलो न तुम तो हम घबराएँ
मिलो तो मास्क लगाएँ
हमें डर हो गया है
मिलो न तुम तो हम मर जाएँ
मिलो तो निपट न जाएँ
हमें डर हो गया है
ओ भोले साथिया
रोग ज़माने में न एक हैं
तारें गगन में जितने
उससे भी ज़्यादा अनेक हैं
ले के दवा भी न मिट पाए
ऐसे रोग हैं हाय
हमें डर हो गया है
जीते कभी, कभी हार गएँ
हदें हमारी हम जान गएँ
ऐसी बलाएँ, क़ुरबान गएँ
इसे मिटाए वो बढ़ जाए
क्या-क्या नाज़ उठाएँ
हमें डर हो गया है
ओ सोहने जोगिया
हम हैं अभी भी इंसान रे
कर लें फ़तह क़िले कितने
फिर भी हैं अनजान रे
कौन हमें जो यहाँ पे लाया
कौन हमें ले जाए
हमें डर हो गया है
राहुल उपाध्याय । 13 मई 2021 । सिएटल
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