इस कोविड ने
बड़ा ग़ज़ब ढाया
पहले लोग
इमेल में
आटो सिग्नेचर से
प्रणाम करते थे
अब
व्हाट्सेप पर
ब्राडकास्ट से
कुशल क्षेम पूछते हैं
एक लम्बा चौड़ा संदेश
जिसका तात्पर्य यह कि
आप ठीक हैं?
बड़े दिनों से
सम्पर्क नहीं हुआ
सो मन में विचार आया
जबकि पाँच मिनट पहले ही
उन तक मेरी कविता 'पहुँची' थी
और हद तो तब हो गई
जब हूबहू यही शब्द
औरों के स्टेटस पर भी
नज़र आए
सब फ़ॉरवर्ड होते देखा
लेकिन संवेदनाएँ
फ़ॉरवर्ड होतीं
अब नज़र आईं
हम इतने
अनपढ़
या आलसी हो गए हैं कि
ख़ुद से कुछ लिखना
किसी को ध्यान में रखकर लिखना
कष्टकर लगता है
ग़लती से यदि मैं
इन छद्म संवेदनाओं को
सच मान बैठता
और जवाब दे देता
तो जैसे मेरी कविता नहीं पढी गई
वैसे ही मेरा उत्तर भी
बिन पढ़े डीलिट हो जाता
यदि मैं ग़लती से
फ़ोन कर देता
(जैसा कि मैं अक्सर करता हूँ)
तो हैलो-हाय के बाद ही
वे मुझसे हाथ धो लेते कि
दो मिनट और बात की
तो कहीं धन से ही न
हाथ धो बैठें
राहुल उपाध्याय । 20 मई 2021 । सिएटल
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