Wednesday, January 23, 2019

किताबें

किताबें तब भी उपयोगी थीं
और आज भी उपयोगी हैं

पहले दरवाज़ा रोकने के काम आती थीं
आजकल मॉनिटर ऊँचा करने में

बहुत पहले
एक समय
वे कवर चढ़ाकर अलमारी में सजाई जाती थीं
ठोकर लग जाने पर सर से लगाई जाती थीं
विद्या मानी जाती थीं

विद्या कब शिक्षा बन गई, कब रोज़गार 
पता ही चला ...

23 जनवरी 2019
सिएटल

Saturday, January 12, 2019

बचपन के साथी हैं पचपन के पार

बचपन के साथी हैं पचपन के पार


मोटी है तोंद और ग़ायब हैं बाल

फिर भी थमी, और हुई तेज़ रफ़्तार 


जीते हैं सब, किसी ने मानी हार

अपनों को खोया, तो पाया ग़ैरों का प्यार


बंगलो के स्वामी, और दो-तीन हैं कार

पासपोर्ट है सबका, भरी सबने उड़ान


मिलते हैं तो लगता है जैसे मिले कल ही थे यार

बिछड़े तो लगता है जाने अब कब होगी मुलाक़ात 


बचपन के साथी है पचपन के पार


12 जनवरी 2019

सिएटल


Thursday, January 3, 2019

इसमें इतना भी क्या सोचना?

क्या हम सचमुच इतने भले हैं
कि सबका भला चाहते हैं?

क्या हम में से कोई भी
पुलिसवाला, डॉक्टर, या वकील नहीं 
जो कि दूसरे की आपदा में 
अपना भला देखता है?

कल यदि किसी सहकर्मी की 
पदोन्नति हो जाए
हमसे आगे निकल जाए
तो क्या हम ख़ुश होंगे कि
हमारी शुभकामनाएँ सफल हुईं?

या हम यूँही
इधर की शुभकामनाएँ 
उधर कर देते हैं
पूरी तरह जानते हुए कि
इन शुभकामनाओं में कोई दम नहीं हैं
मात्र खानापूर्ति है
सब करते हैं 
सो हमने भी कर दी
इसमें इतना भी क्या सोचना?

3 जनवरी 2019
सिएटल