Wednesday, September 30, 2015

खम्भे के इस पार है हरियाली

खम्भे के इस पार है हरियाली

उस पार न जाने क्या होगा?
रंगों से भरे इस गुलशन को
रंगों से डर लगे तो क्या होगा?

सब साथ चले
सब साथ बढ़े 
कुछ छूट गए
कुछ छोड़ गए
जो साथ हैं
वे भी साथी नहीं
अब कौन किसी का क्या होगा?

खिलती थी कलियाँ उमंगों सी
गूँजते थे भँवरे मतवाले
बहती थी कल-कल धाराएँ 
चहकते थे पक्षी चौबारे
अब सोज़ नहीं, कोई साज़ नहीं
कवि की कोरी कल्पनाओं से क्या होगा?

पत्तों की सरसराहट होती है 
टहनियाँ भी चटकती हैं कहीं-कहीं
धूप भी रस्म-अदाई करती है
जो रहती थी आठ पहर यहीं-यहीं
कर्मों का यह कोई दोष नहीं
कर्मयोगी गुल सा कोई क्या होगा?

सृष्टि का यही एक नियम है
सृष्टा का खेल सारा है
जो बनता है, वो मिटता है
जो जन्मता है, वो मरता है
इसके आगे हर कोई हारा है
पहेलियाँ बूझने से क्या होगा?

30 सितम्बर 2015
सिएटल | 425-445-0827

Wednesday, September 23, 2015

यह घड़ी अगर मैं बनाता और होता नाम अहमद


यह घड़ी अगर मैं बनाता और होता नाम अहमद    

घर बुलाते ओबामा मुझको और होते सारे गदगद        

 

होते सारे गदगद करती प्रेस ताता-थैया

जग में होता नाम मेरा और मिलते ऑफर बड़िया        

 

मिलते ऑफर बड़िया पर मेरा नाम रखा ऐसा छाँटकर

कि हिंदुस्तान से भी भागा डरकर, खा गया वहाँ आरक्षण

 

यहाँ आकर भी नाम बदला, बदला रहन-सहन भी

कब तक बाबा रामदेव की सुनता, जिम में उठाए वजन भी

 

धोबी के कुत्ते जैसी हालत, न रहा इधर का न उधर का

मेरा भी क्या दोष है इसमे, मैंने तो चाही मधुरता

 

मेल्टिंग पॉट में मेल्ट होकर मिटा डाली विविधता

बाकी जो कुछ बचे-खुचे हैं उन्हें हर कोई है पूजता

 

कवि महोदय, कथा-वाचक, ज्योतिष और वैद्य        

नाटकवाले, गायक, मेकअप मैडम सब के सब हैं सेट

 

यह घड़ी अगर मैं बनाता और होता नाम अहमद        

घर बुलाते ओबामा मुझको और सारे होते गदगद

 

23 सितम्बर 2015

सिएटल | 425-445-0827

Sunday, September 20, 2015

जीत गए तो डरना क्या

जीत गए तो डरना क्या
जब जीत गए तो डरना क्या
चुनाव जीता है कोई नौकरी नहीं ली
खट-खट के काम करना क्या

फ़र्ज़ हमारा वादे करना
जनता का काम उन्हें पूरा करना
जब जनता ही नहीं काम करेंगी
तो नेताओं को निलम्बित करना क्या

पाँच साल चलेगा हमारा शासन
पाँच साल बिछेगा हमारा आसन
उसके बाद का सोच-सोच के
मन को आशंका से भरना क्या

जब-जब मन होगा दौरा करेंगे
कभी यहाँ तो कभी वहाँ करेंगे
राजपाट में हैं सैंकड़ों सुविधा
बंगला-गाड़ी-झरना क्या

(शकील बदायूनी से क्षमायाचना सहित)

Thursday, September 3, 2015

अब कहाँ किसमे इतना सब्र है

अब कहाँ किसमे इतना सब्र है

कि दो दिन इंतज़ार करे

और गर्म राख में हाथ खराब करे

 

बस बटन दबाया

और एक ठंडा कलश हाथ आ जाता है

 

और आप अमेज़ॉन प्राईम के मेम्बर हैं 

तो फिर वो दिन दूर नहीं

जब डेश के बटन को दबाते ही

हज़ारों मील दूर पड़ा पार्थिव शरीर

मिनटों में राख हो जाएगा


न टिकट खरीदने की झंझट

न प्लेन में चढ़ने के लिए एक लम्बी उबाउ कतार

न एम्स्टर्डम के सुरक्षाकर्मी को रटे-रटाए सवालों के जवाब देना

न आधी रात घर पहुँचना

और बढ़ती गर्मी और घटते परिवार

के बीच मन ही मन यह समझ आना कि

अब तुम बड़े हो गए हो

घर आए छोटे बच्चे नहीं हो

कि मन-माफ़िक़ खाना बनेगा

पिकनिक की बातें होगी

गोलगप्पे खाए जाएगे

 

और हाँ

जल्दी ही एक ड्रोन सर्विस भी तैयार हो जाएगी

ताकि गंगा भी न जाना पड़े

स्मार्टफोन पर ही बटन दबाया

और उधर अस्थियाँ विसर्जित

 

पुनश्च:

 

जो पढ़े-लिखे लोग हैं

उन्हें पर्यावरण की बड़ी चिंता है

मुझ कम पढ़े व्यक्ति की बातों में आकर

आप उनका अनादर न करें

 

जितना भी वे कर सकते हैं

कर रहे हैं

एक लाश न जलाकर

 

वैसी ही उनपर

बी-एम-डबल्यू और मर्सीडीज़ चलाने का

बड़ा बोझ है

 

सितम्बर 2015

सिएटल । 425-445-0827

Wednesday, September 2, 2015

चमचों का भक्तों का, सबका कहना है


चमचों का, भक्तों का, सबका कहना है
नेक हज़ारों में मोदी अच्छा है
सॉरी, मगर, मुझे सच कहना है

ये न जाना मोदी ने मैं हूँ क्यूँ उदास
मेरी प्यासी आँखों में सुधार की है प्यास
कर ले कुछ काम ज़रा, कब तक बकना है?

सोनिया-मोदी दोनों हैं इक डाली के फूल
वो न लाई 'ब्लैक मनी', ये भी गए भूल
नीयतें हैं खोटी और किसको फँसना है?

किसी खूंखार शेर की तरह मुँह फुलाए आप
न्यू यार्क, सिडनी, टोरोंटो में गप्पें हांके आप
योगा की आड़ में कब तक ठगना है?

जबसे कुर्ते छोड़े और पहने सूट-बूट
तबसे विश्वास खोया और सपने गए टूट
पी-एम का काम क्या सजना-सँवरना है?

भारत के लोगों से यूँ डरते नहीं हैं
ऐसे बचके सच से गुज़रते नहीं हैं
कुर्सी की है चाह तो सच भी सुनना है

2 सितम्बर 2015
सिएटल । 425-445-0827
(आनन्द बक्षी से क्षमायाचना सहित)