Sunday, October 28, 2018

रोम-रोम में उसका अहसास है

थोड़ी हँसी, थोड़ा ख़याल 
यही इश्क़ का सामान है
इश्क़ का आसमान
सबका समान है

ईमोजी है
ईमोजी में गुलाब है
उससे और मैं क्या माँगू 
जो करती इतना प्यार है

चमन है, भोर है, पत्तियों पर ओस है
इससे ज़्यादा ख़ूबसूरत जन्नत क्या होगी
यह हक़ीक़त है
जन्नत तो फ़क़त एक बहलाव है

दुनिया की तमाम मुसीबतों में भी
चैन की नींद सोता हूँ मैं
दवा दारू दुआ
बस कारण उसका दुलार है

मोहब्बतों से लबालब भरे
समंदरों से ओतप्रोत हूँ मैं 
फिर हिज्र क्या, और वस्ल क्या
रोम-रोम में उसका अहसास है

28 अक्टूबर 2018
सैलाना
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हिज्र = बिछड़ना 
वस्ल = मिलना

Tuesday, October 23, 2018

हर प्रश्न का उत्तर यदि हाँ या ना में होता

हर प्रश्न का उत्तर यदि हाँ या ना में होता
तो कचहरी-कटघरे सा माहौल हो जाता

हर प्रश्न का उत्तर 'पता नहीं' या 'हो सकता है' होता
तो प्लेन ही उड़ता, आज स्मार्टफोन ही होता

इन दो के बीच जो मूक प्रश्नोत्तर हैं
उन्हीं से तो जीवन मधुकर है
बोले कहे होंठ हिले
बस पलकें झुके
आँचल उड़े
चूड़ी बजे
गाल पे लट गिरे
धम से दौड़ के खिलखिल हँसे
खेतों में इत-उत रंग भरे
गरबा करे
नयन जुड़ाए
चाँद को देख आप लजाए
हाथों में अपने मेहन्दी रचाए
बस चलते वक़्त हाथ हिलाए
ईमोजी भेजे
डी-पी बदले
स्टेटस लगाए

फिर कैसा सवाल, कैसा जवाब
जीवन जैसे खिलता गुलाब

23 अक्टूबर 2018
सैलाना

Saturday, October 20, 2018

कितना अजीब है

कितना अजीब है 
किसी के साथ
आठ दिन गुज़ारना 
सुबह-शाम रोशन करना
एल-पी पर वही-वही गाने बार-बार सुनना
रेडियो सीलोन पर सुई चिपकाए रखना
घंटों-घंटों बातें करना
बातों का कोई सार निकलना
चुप रहना
चुप्पी कोई बोझ लगना
दो काली - पतली ज़्यादा मोटी - इलिप्टिकल चोटियों का हिचकोले खाना
कस के काढ़े गए बालों की माँग का चमकना
देखना और देखकर भी नहीं देखना कि 
कान में कौन सी बाली है
गाल पे कैसी रंगत है
नहीं देखना और देख लेना कि 
वह मुस्कुरा रही है
पलकें झपका रही है
मंद बयार, मीठी धूप, पास का बग़ीचा, मोहल्ले का मन्दिर 
सब जन्नत लगना

कितना अजीब है
किसी के साथ
आठ दिन गुज़ारना 
और फिर कभी बात करना
किसी सगे-सम्बन्धी से भी पूछना कि वह कैसी है

कितना अजीब है
किसी के साथ
आठ दिन गुज़ारना 
जैसे एक पूरा जीवन जीना

कितना अजीब है
किसी के साथ 
आठ दिन गुज़ारना 
और उन्हें फिर एक पल में ही जी जाना
कभी भी 
कहीं भी
अड़तीस साल बाद भी
गाड़ी में पेट्रोल डालते वक़्त 
मीटिंग से निकलते वक़्त 
माउंट रैनियर को देखकर भी देखते वक़्त 

कितना अजीब है
किसी के साथ 
आठ दिन गुज़ारना 
और फिर सौ से कम शब्दों में उन्हें कविता मे उतार देना

(समय
कुछ चीज़ों को कितना बड़ा बना देता है
और कुछ को कितना छोटा)

कितना अजीब है
किसी के साथ 
आठ दिन गुज़ारना 
और आजीवन उसका ऋणी रहना
और उऋण होने का मन होना

कितना अजीब है
किसी के साथ 
आठ दिन गुज़ारना 
और उन आठ दिनों को 
साँसों में बसाए रखना
तरोताज़ा बनाए रखना
जैसे पतझड़ के पत्ते
बारिश की बूँदें
पूनम का चाँद 
चिड़िया की चहक
चीड़--चम्पा की महक

कितना अजीब है
किसी के साथ 
आठ दिन गुज़ारना 
और फिर उन आठ दिनों का सपनों में आना

(जब हक़ीक़त सपनों से हसीन हो तो
सपने शरमा ही जाते हैं)

कितना अजीब है
किसी के साथ 
आठ दिन गुज़ारना 
और उन आठ दिनों को
सहजता से बार-बार जीना

कितना अजीब है

20 अक्टूबर 2018
सैलाना