Wednesday, July 24, 2013

खिड़कियाँ बंद

खिड़कियाँ बंद करो
दरवाज़ें भिड़ाओ
पर्दे गिराओ
ट्यूबलाईट जलाओ
फ़ुल-स्पीड से पंखा चलाओ


ऐसे में
फिर क्या कोई सोचे
पुरवाई चली
या चिड़िया कहीं बोली?


पंखों के शोर में
परवाज़ सुनाई नहीं देती
चिड़िया की चहचहाट तो दूर
खुद को खुद की आहट सुनाई नहीं देती


ऐसे में
फिर क्या कोई सोचे
सूरज आया? गया किधर?
चाँद पूरा है? या कटा कहीं से?
मेघ आएं? गरजें-बरसें?


24 जुलाई 2013
दिल्ली । 98713-54745

 

Sunday, July 21, 2013

माँ के हाथ का खाना


माँ के हाथ का खाना
माँ के घर जा कर भी नहीं मिलता

 सारी की सारी रसोई
कामवाली के सुपुर्द कर दी गई है
वही छिलती है
वही काटती है
वही छौंकती है
वही पकाती है
वही गूँधती है
वही बेलती है
वही फुलाती है
वही चुपड़ती है
 
आर्थिक विकास का
यह मतलब तो नहीं
कि
बेटे के हाथ से
माँ की रोटी छिन जाए
घड़े की बजाय
आर- से पानी आए
पेड़ की बजाय
खिड़की से
कार नज़र आए

 21 जुलाई 2013
दिल्ली 98713-54745