Sunday, October 29, 2017

दायरे

हम सब 

अपने-अपने 

दायरों में क़ैद हैं


कोई उन्हें घर कहता है

तो कोई कटघरा


तो कोई यारी-दोस्ती की बंदिश

तो कोई धर्म को कोसता है


29 अक्टूबर 2017

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Friday, October 27, 2017

बिछड़ने का दर्द क्या होता है

बिछड़ने का दर्द क्या होता है

यह मैं नहीं जानता

लेकिन

सूरज को ढलते वक़्त 

पत्तों को गिरते वक़्त 

लहूलुहान होते देखा है


चढ़ते सूरज का

खिलते वसंत का

रंग

दूधिया होता है

पीला होता है

दूध में हल्दी जैसा

  • सुना है, दर्द कम होता है


27 अक्टूबर 2017

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Monday, October 23, 2017

बुझता दीपक बूझा के गया

बुझता दीपक

बूझा के गया

भेद सारे जग के

बता के गया


जला था हवा से

बुझा भी हवा से

प्रेमियों की ज़िद को

जता के गया


बनाता है जो भी

मिटाता है वो ही

जो दिखता नहीं वो

दिखा के गया


राख बची है

परछाई कहीं है

धुएँ में सब कुछ

उड़ा के गया


तेल भी है, बाती भी

साबुत सारी माटी भी

बिन ज्योति सूना-सूना

समझा के गया


23 अक्टूबर 2017

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Monday, October 9, 2017

उसे भूल जाऊँ ये मुमकिन नहीं है

उसे भूल जाऊँ 

ये मुमकिन नहीं है

उसे याद आऊँ 

ये मुमकिन नहीं है


सफ़र में मिलेंगे

चेहरे हज़ारों 

उसे देख पाऊँ 

ये मुमकिन नहीं है


सुनूँगा तराने

महफ़िलों में लाखों 

उसे सुन पाऊँ 

ये मुमकिन नहीं है


शब हो, सुबह हो

यहाँ हो, वहाँ हो

उसे दूर पाऊँ 

ये मुमकिन नहीं है


जाम है, साक़ी

सुराही कहीं है

होश में मैं आऊँ 

ये मुमकिन नहीं है


9 अक्टूबर 2017

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