Sunday, July 31, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #79

Saturday, July 30, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #78

Friday, July 29, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #77

अब भी हैं कुछ निष्पाप चराचर



मेघों के कंधों पर रख के 
सबने बंदूक़ चलाई है 
कभी प्रियतम को बाँह में बाँधा 
कभी स्कूल की छुट्टी कराई है

कोई पर्यावरण पर भाषण देता
कोई देता किसानों की दुहाई है
हर कोई अपना उल्लू सीधा करता
पल-पल करता चतुराई है

खेत-खलिहान, पर्वत-सरिता
सब पुलकित हो जाते हैं
काले ऊटपटाँग बादलों से
उनके सपने पूरे हो जाते हैं

और उधर श्वेत रूई के फोहों से जो
एक क़तार में सुव्यवस्थित हो जाते हैं
उनसे भी अटकलें लगा-लगाकर 
बाल-वृंद रोमांचित हो जाते हैं

किसी को घोड़े, किसी को हाथी
किसी को बकरी-मेमने दिखने लग जाते हैं
बादलों की बनती-बिगड़ती आकृतियों में 
सबको अपने-अपने मनवांछित रूप मिल जाते हैं

मेघों के कंधों पर रख के 
सबने बंदूक़ चलाई है 
पर अब भी हैं कुछ निष्पाप चराचर
जो सहज आह्लादित हो जाते हैं

29 जुलाई 2016
सिएटल | 425-445-0827
=======
निष्पाप = sinless
चराचर = movable and immovable






Thursday, July 28, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #76

Wednesday, July 27, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #75

Tuesday, July 26, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #74

Monday, July 25, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #73

Sunday, July 24, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #72

Saturday, July 23, 2016

जवानी में प्रियतम


जवानी में प्रियतम
बचपन में मामा
बहुरूपिया नहीं
कोई तुमसा प्यारा

घटते हो, बढ़ते हो
दिखते हो, छुपते हो
बहुरूपिया नहीं 
कोई तुमसे ज़्यादा 

सागर भी उछले
बादल भी चूमे
रक़ीबों ने भी चाहा
तो मिल के तुम्हें चाहा

होली हो, दीवाली हो
या हो राखी-भैया-दूज
हर तीज-त्योहार
हमने तुमसे बाँधा 

सुहागिन भी पूजे
लड़कपन भी ताके
कशिश तुममें कैसी
समझ मैं न पाया

दाग भी हैं
और बेनूर भी हो
फिर भी ख़ूबसूरती का
मापदण्ड तुम्हें माना

भूखा भी रखते हो
मिटाते भी भूख हो
हर मज़हब ने तुमको
हबीब अपना जाना

नाम भी तुम्हारे
अनगिनत कई हैं
मैं लिखूँ, न लिखूँ
समझ गया ज़माना

23 जुलाई 2016
सिएटल | 425-445-0827
Http://tinyurl.com/rahulpoems
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रक़ीब = rivals in love
ताके = to gaze
हबीब = friend




जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #71

Friday, July 22, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #70

Thursday, July 21, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #69

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #68

Tuesday, July 19, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #67

Monday, July 18, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #66

Sunday, July 17, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #65

Saturday, July 16, 2016

मेरे गीतों में अब भी सावन है


मेरे गीतों में अब भी सावन है
पर सावन नहीं मनभावन है

यह छत से चूता पानी है
यह सड़क पे घुटनों तक गंदला पानी है

भीग जाओ तो बीमारी हो जाती है
कपड़ों में मोल्ड हो जाती है

मेरे गीतों में अब भी सावन है
पर सावन नहीं मनभावन है

कभी हँसता था, अब रोता हूँ
तकिये का लिहाफ़ भिगोता हूँ

मेरे गीतों में अब भी सावन है
पर सावन नहीं मनभावन है

कब क्या हुआ और क्यूँ हुआ
इसका तो कोई जवाब नहीं
लिखने को लिख दूँ बात अनेक 
पर रिश्तों का होता हिसाब नहीं 

सब बदलता है, सब बदलेगा
वक़्त भी एक न एक दिन बदलेगा

फिर एक दिन ठहाके गूँजेंगे
दीवाली के पटाखे फूटेंगे

गोया आज मेरे कोई पास नहीं
करता मुझे कोई याद नहीं

मेरे गीतों में अब भी सावन है
पर सावन नहीं मनभावन है

16 जुलाई 2016
सिएटल | 425-445-0827

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #64

Friday, July 15, 2016

अमरीका में हम आए हैं तो सब सहना ही पड़ेगा


अमरीका में हम आए हैं तो सब सहना ही पड़ेगा
उम्मीदवार हैं अगर ट्रम्प तो उन्हें झेलना ही पड़ेगा

ट्विटर हो या फ़ेसबुक हो या चैनल हो कोई भी
अख़बार हो या ब्लॉग हो या स्टेशन हो कोई भी
हर जगह इनकी बकवास को सुनना ही पड़ेगा

भारत भी अगर जाएँ तो वहाँ चैन कहाँ है
यहाँ सेर हैं तो वहाँ भी सवा-सेर जमा हैं
आए दिन किसी न किसी से उलझना ही पड़ेगा

दो दिन की है हुकूमत, है अगर दो दिन की जवानी 
आनी है, और जानी है, जैसे पत्तों पे पानी
कोई कितना ही उछले आज, कल उतरना ही पड़ेगा

कर्मों का है ये खेल, है ये कर्मों की कहानी
जुग-जुग से सुनते आए हम संतों की ज़ुबानी
जो जैसा करेगा, उसे वैसा भुगतना ही पड़ेगा

करें सत्कर्म, सँवारें ये जीवन जितना भी बचा है
कौन हारेगा, कौन जीतेगा, ये किसको पता है
ये हारना, ये जीतना, एक दिन भूलना ही पड़ेगा

(शकील बदायूनी से क्षमायाचना सहित)
15 जुलाई 2016
सिएटल | 425-445-0827
Http://tinyurl.com/rahulpoems


जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #63

Thursday, July 14, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #62

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #61

Wednesday, July 13, 2016

न मैं ट्रम्पभक्तों में से एक हूँ


न मैं ट्रम्पभक्तों में से एक हूँ
न हिलेरी क्लिण्टन का समर्थक हूँ
जो अपने काम से काम रखे
मैं वो आठ से पाँच वाला क्लर्क हूँ

न मैं देशभक्ति से ओतप्रोत हूँ
न मैं देखता टी-वी रोज़ हूँ
न मैं लेता अख़बार सोख हूँ
मैं न करता कुछ निरर्थक हूँ

मैं चार क्लास क्या पढ़ गया
सारा ज्ञान मुझको मिल गया
नया पढ़ने-लिखने से क्या फ़ायदा 
बस करता परिश्रम अथक हूँ

कल देश कौन चलाएगा?
कब कौन किसे हराएगा?
इन अटकलों से मुझे क्या वास्ता 
नहीं करता नाहक तर्क-वितर्क हूँ

कुछ लताड़े कि कुछ तो कर्म कीजिए
बने हैं नागरिक तो मत दीजिए
उनसे कहना है कि आप मत खीजिए
मैं अपने कर्तव्य के प्रति सतर्क हूँ

करूँगा राईट-इन ये है फ़ैसला 
दोनों में से एक भी न मेरा वोट पाएगा
आगे जो भी होगा देखा जाएगा
संविधान के आगे नतमस्तक हूँ

(मुज़्तर ख़ैराबादी से क्षमायाचना सहित)
13 जुलाई 2016
सिएटल | 425-445-0827

ओतप्रोत = imbued 
सोख = soak up
राइट-इन = write-in = https://en.m.wikipedia.org/wiki/Write-in_candidate



तेरा साथ है तो


कोई कहता कुछ है
कोई सुनता कुछ है
कोई लिखता कुछ है
कोई पढ़ता कुछ है
कोई समझता कुछ है

और कुछ का कुछ हो जाता है
-------

उन्होंने कहा:
मैं नेपाली

किसी ने सुना:
मैंने पाली

किसी ने लिखा:
मैंने पा ली
-------

पिछले हफ़्ते तारीख़ थी:
सात-सात

लिखे गए अलग-अलग
पर सुनाई दिए साथ-साथ

थे दो ही
पर लगा जैसे हों सात सात

और 
आज के तो ठाठ ही निराले हैं:
तेरा साथ है
तो मुझे क्या कमी है
अंधेरों से भी मिल रही रोशनी है

13-7-2016
सिएटल | 425-445-0827
Http://tinyurl.com/rahulpoems

(तेरा साथ है तो - संतोष आनंद का लिखा यह प्यारा गीत सुनें एवं देखें यहाँ : http://youtu.be/Vw6Ttzj7ea8)

Tuesday, July 12, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #60

Monday, July 11, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #59

Sunday, July 10, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #58

Saturday, July 9, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #57

Friday, July 8, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला #56

जोड़-तोड़ श्रंखला #55

Wednesday, July 6, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला #54

Tuesday, July 5, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला #53

जो शत आह भर के भी न हताश हो


जो शत आह भर के भी न हताश हो
जिसके दिल में फिर भी न खटास हो
ऐसा इन्सान संत हो ज़रूरी नहीं
हो सकता है उसकी हीर न उसके पास हो

जो अपनी बात पर अडिग रहे
दुनिया-जहाँ से अनभिज्ञ रहे
चाहें लाख आएँ मुसीबतें 
अपने ध्येय पर केन्द्रित रहे
ऐसा इन्सान वीर हो ज़रूरी नहीं
हो सकता है हीर की उसे तलाश हो

जिसके हाथ में गुलाब हो
जिसके पाँव में थिरकाव हो
जो गली-गली झूमे मगन
जिसके राग में अनुराग हो
ऐसा इन्सान आशिक़ हो ज़रूरी नहीं
हो सकता है सच्चिदानंद का उसे आभास हो

5 जुलाई 2015
दिल्ली | +91-88004 20323

Monday, July 4, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला #52

Sunday, July 3, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला #51

Saturday, July 2, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला #50



Friday, July 1, 2016

पीपल का पेड़

पीपल का पेड़ 
जहाँ-तहाँ 
उग आता है

कहीं सनी लियोन के पोस्टर के नीचे
तो किसी दुकान की दहलीज़ पर
तो किसी आँगन की दीवार को फोड़कर

दिल्ली की धूल में 
महानगर के विराट पुल पर
अट्टालिकाओं के कगार पर

पीपल का पेड़ 
जहाँ-तहाँ 
उग आता है

*****

एक हम हैं
कि
न उगते हैं
न डूबते हैं
पर्यावरण पे
दोष मढ़ते हैं

****

प्रतीक्षा है निर्वाण की
कि कब लगे कुण्डी किवाड़ की
कोई वृहद सा वृक्ष हो
जिसमें न कोई नुक़्स हो
जिसके नीचे आँख मूँदें
दुनिया-जहाँ को हम भूलें

न संस्कार हों
न विकार हों
स्मृतिकोष
का रिक्त भण्डार हो

****

पीपल का पेड़ 
जहाँ-तहाँ 
उग आता है

कब, कौन, किसे, कहाँ
उगाता है?

2 जुलाई 2016
दिल्ली । 88004 20323







जोड़-तोड़ श्रंखला #49