Wednesday, October 31, 2007

Halloween

दुखी है दुनिया परेशान हैं लोग दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे हैं रोग डाँक्टर का फ़रमान है कहता हर विद्वान है मक्खन न खाओ चीनी न खाओ इस तरह अपनी सेहत बचाओ मोटापा भी बड़ता है डाँयबिटीज़ भी होती है डेंटिस्ट की कुर्सी में खिंचाई भी होती हैं इन सबके बावजूद हम अपने हाथ खुद हमारे-तुम्हारे पेट कर देते हैं भेंट करोड़ों की कैंडी करोड़ों की चाँकलेट हम जागरुक देश के निवासी जाग के भी सो रहे हैं बच्चों के लिए हम कैसा भविष्य बो रहे हैं? यहाँ कद्दू पर कद्दू कत्ल हो रहे हैं तो कहीं बिलखते बच्चे भूखे सो रहे हैं यहाँ डरावने मुखौटों में हम हास्य ढूंढ रहे हैं तो कहीं कूढ़े कचरे में वो खाना ढूंढ रहे हैं सिएटल 31 अक्टूबर 2007

Sunday, October 28, 2007

कैसी होगी दीवाली?

जलेंगे दीपक सजेगा मकां हँसी-खुशी का होगा समां मिलेंगे लोग भूलेंगे रोग खाएंगे मिठाई लगाएंगे भोग आंखों में चमक, अधरों पे मुस्कान मीठी-मीठी बातें बोलेंगी ज़ुबां जलेंगे दीपक सजेगा मकां हँसी-खुशी का होगा समां फटेंगे फ़टाखें गुंजेगे धमाके गली-गली होंगे दोस्तों के ठहाके ये सब कुछ होगा वहाँ और हम-तुम होंगे यहाँ जलेंगे दीपक सजेगा मकां हँसी-खुशी का होगा समां काली रात ठंडी बरसात यहाँ होंगी हमारे साथ शायद हो दिसम्बर में यहाँ जो होगा नवम्बर में वहाँ जलेंगे दीपक सजेगा मकां हँसी-खुशी का ा होगा समां उदास न हो निराश न हो इस तरह हताश न हो अभी से जलाओ शमां जो जनवरी तक रहे जवां जलाओ दीपक सजाओ मकां हँसी-खुशी का बनाओ समां सिएटल 27 अक्टूबर 2007

Friday, October 26, 2007

प्रतिभा पलायन


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

पिछड़ा हुआ कह के
देश को पीछे छोड़ दिया
सोने-चांदी के लोभ में
पराये से नाता जोड़ लिया

एक ने कहा
ये बहुत बुरा हुआ
इनके नागरिकता त्यागने से
देश हमारा अपमानित हुआ

दूसरे ने कहा
ये बहुत अच्छा हुआ
इनके नागरिकता त्यागने से
देश हमारा नाग-रिक्त हुआ

करवा चौथ

भोली बहू से कहती हैं सास तुम से बंधी है बेटे की सांस व्रत करो सुबह से शाम तक पानी का भी न लो नाम तक जो नहीं हैं इससे सहमत कहती हैं और इसे सह मत करवा चौथ का जो गुणगान करें कुछ इसकी महिमा तो बखान करें कुछ हमारे सवालात हैं उनका तो समाधान करें डाँक्टर कहे डाँयटिशियन कहे तरह-तरह के सलाहकार कहे स्वस्थ जीवन के लिए तंदरुस्त तन के लिए पानी पियो, पानी पियो रोज दस ग्लास पानी पियो ये कैसा अत्याचार है? पानी पीने से इंकार है! किया जो अगर जल ग्रहण लग जाएगा पति को ग्रहण? पानी अगर जो पी लिया पति को होगा पीलिया? गलती से अगर पानी पिया खतरे से घिर जाएंगा पिया? गले के नीचे उतर गया जो जल पति का कारोबार जाएंगा जल? ये वक्त नया ज़माना नया वो ज़माना गुज़र गया जब हम-तुम अनजान थे और चाँद-सूरज भगवान थे ये व्यर्थ के चौंचले हैं रुढ़ियों के घोंसले एक दिन ढह जाएंगे वक्त के साथ बह जाएंगे सिंदूर-मंगलसूत्र के साथ ये भी कहीं खो जाएंगे आधी समस्या तब हल हुई जब पर्दा प्रथा खत्म हुई अब प्रथाओं से पर्दा उठाएंगे मिलकर हम आवाज उठाएंगे करवा चौथ का जो गुणगान करें कुछ इसकी महिमा तो बखान करें कुछ हमारे सवालात हैं उनका तो समाधान करें 25 अक्टूबर 2007

Thursday, October 18, 2007

कामयाबी

जब हम अपनों के नहीं हुए तो किसी और के क्या होंगे पूछ लो किसी कामयाब से किस्से यही बयां होंगे जवानी यहाँ बुढापा वहाँ भटकेंगे ता-उम्र यहाँ-वहाँ दूर के ढोल लुभाएंगे हम जहां में जहाँ होंगे जब हम अपनों के नहीं हुए... देस में आते थे परदेस के सपने परदेस में आते हैं याद वतन के अपने हम से ज्यादा confused दुनिया में और कहाँ होंगे जब हम अपनों के नहीं हुए ... जिन्होंने हमें सब दिया उन्हें हम क्या दे सकेंगे? इतना सब कुछ होते हुए क्या कुछ भी दे सकेंगे? मदद के वक़्त पर वो वहाँ तो हम यहाँ होंगे जब हम अपनो के नहीं हुए ... 22 अगस्त 2007

Wednesday, October 17, 2007

आत्मकथ्य

लिख नहीं पाता हूं राजी खुशी की दो-चार लाईने तक माँ-बाप को और लिख रहा हूँ लम्बे-लम्बे blog जिसे भेजता हूं रोज आप को Atoms की feed RSS की feed बो रही है क्रांति के seed सोचता हूँ मैं भी उजागर करूं एकाध आस्तीन के सांप को लिख नहीं पाता हूं… छपते ही किताब धूल खाती है जनाब छपते ही blog Aggregators जाते हैं जाग Bits और bytes के बीच छोड़ जाना चाहता हूं अपनी अमिट छाप को लिख नहीं पाता हूं… क्या-क्या खोया क्या-क्या पाया वक्त मुझे कहाँ ले आया बड़ी धूम से दर्शाता हूं blog पर हर एक पुण्य और पाप को लिख नहीं पाता हूं… 17 अक्टूबर 2007

Monday, October 15, 2007

कामना


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

अमीर और गरीब, राजा और रंक
सबके सब रह जाते हैं दंग
विधि का विधान कभी न रुका है
इसके आगे हर मस्तक झुका है
भर दे गर सागर कोई रो रो के
जानेवाले फिर भी न जाते हैं रोके

रात और दिन, सुबह और शाम
सूझता है बस काम ही काम
अपनो को छोड़ अपनाते हैं धंदे
थोड़ा सा ज्यादा अगर वो धन दे
जोड़ते हैं सोना चार चार पाई कर
जबकि सोना है बस एक चारपाई पर

पूरब और पश्चिम, उत्तर और दक्षिण
हम सब है एक, नहीं हैं भिन्न
तब तक ही बस दिल हमारा धड़के
जब तक है साथ सिर हमारे धड़ के
बात बात पर गर हम भड़के
मुद्दे उठेंगे नए एक रण के
क्या मिलेगा दुनिया को लड़ के?
गरीबों ने बस गवाएं हैं लड़के

ईश्वर से करे हम ऐसी कामना
बुरा हो हमसे कोई काम ना
आओ चलो कसम हम ले
आदमी आदमी पे करे न हमले
बने हम तुम कुछ ऐसे गमले
जो खुशीयां दे और हर हर गम ले
मेहमां हैं हम पल दो पल के
हंसे-हंसाए जब तक खुली हैं पलके
आंसू किसी के कभी न छलके
करे न काम कपट और छल के
हेंकड़ी न हांके ताकत और बल की
शरण में जाए ईश्वर के बल्कि

Friday, October 12, 2007

मेल-जोल

एक ही देश से आए हैं एक ही शहर में रहते हैं सपने हमारे एक हैं काम भी एक ही करते हैं जब हम इतने मिलते-जुलते हैं तो फिर कम क्यूं मिलते-जुलते हैं? नाक-नक़्श एक है वेश-परिवेश भी एक है गाना-बजाना एक है ज्ञान-ध्यान भी एक है खुशबू एक ही होती है जब टिफ़िन हमारे खुलते हैं जब हम इतने मिलते-जुलते हैं तो फिर कम क्यूं मिलते-जुलते हैं? जिम्मेदारियों का बोझ हैं दस परेशानियाँ रोज हैं हमसे बंधी किसी की आशा है तो किसी को मिली निराशा है हाँ दिल हमारे भी टूटते हैं इंसान हैं हम क्यूं भुलते हैं? जब हम इतने मिलते-जुलते हैं तो फिर कम क्यूं मिलते-जुलते हैं? खुशीयाँ तो हम बाँटते हैं ग़म क्यूं अकेले काटते हैं? शर्मनाक कोई दुःख नहीं दुःख क्यूं सब से छुपाते हैं? कांटे तो होंगे ही वहाँ जो बाग फ़लते-फ़ूलते हैं जब हम इतने मिलते-जुलते हैं तो आओ चलो फ़िर मिलते हैं 12 अक्टूबर 2007

Tuesday, October 9, 2007

मौसम


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

मौसम
राहुल उपाध्याय

पतझड़ के पत्ते
जो जमीं पे गिरे हैं
चमकते दमकते
सुनहरे हैं

पत्ते जो पेड़ पर
अब भी लगे हैं
वो मेरे दोस्त,
सुन, हरे हैं

मौसम से सीखो
इसमें राज़ बड़ा है
जो जड़ से जुड़ा है
वो अब भी खड़ा है
रंग जिसने बदला
वो कूढ़े में पड़ा है

घमंड से फ़ूला
घना कोहरा
सोचता है देगा
सूरज को हरा

हो जाता है भस्म
मिट जाता है खुद
सूरज की गर्मी से
हार जाता है युद्ध

मौसम से सीखो
इसमें राज़ बड़ा है
घमंड से भरा
जिसका घड़ा है
कुदरत ने उसे
तमाचा जड़ा है

Friday, October 5, 2007

Stalled Marriage

Stalled Marriage राहुल उपाध्याय Relationships एक dangerous street है जो कल तक प्रीत था आज बना culprit है Perfumes की gift Earrings की gift Cable के remote में हो गई हैं shift कड़वे घूंट ही अब birthday की treat हैं कभी नखरे उठाते थे कभी पाँव दबाते थे कभी-कभी रुठ जाने पर dozen flowers लाते थे आज बात बात पर किये जाते mistreat हैं रफ़्ता-रफ़्ता रिसते-रिसते रिश्ता बन जाता है बोझ तू-तू मैं-मैं होती है रोज झगड़े आदि होते हैं रोज दोनों में से कोई भी करता नहीं retreat है पहले करते थे wish आज घोलते है विष साथ-साथ रहते हैं पर जैसे aquarium में fish जिसकी walls में glass नहीं concrete है लिये थे फेरे खाई थी कसमें किये थे वादे निभाएंगे रसमें सिंदूर-मंगलसूत्र के साथ लापता marital spirit है