Sunday, October 28, 2007

कैसी होगी दीवाली?

जलेंगे दीपक सजेगा मकां हँसी-खुशी का होगा समां मिलेंगे लोग भूलेंगे रोग खाएंगे मिठाई लगाएंगे भोग आंखों में चमक, अधरों पे मुस्कान मीठी-मीठी बातें बोलेंगी ज़ुबां जलेंगे दीपक सजेगा मकां हँसी-खुशी का होगा समां फटेंगे फ़टाखें गुंजेगे धमाके गली-गली होंगे दोस्तों के ठहाके ये सब कुछ होगा वहाँ और हम-तुम होंगे यहाँ जलेंगे दीपक सजेगा मकां हँसी-खुशी का होगा समां काली रात ठंडी बरसात यहाँ होंगी हमारे साथ शायद हो दिसम्बर में यहाँ जो होगा नवम्बर में वहाँ जलेंगे दीपक सजेगा मकां हँसी-खुशी का ा होगा समां उदास न हो निराश न हो इस तरह हताश न हो अभी से जलाओ शमां जो जनवरी तक रहे जवां जलाओ दीपक सजाओ मकां हँसी-खुशी का बनाओ समां सिएटल 27 अक्टूबर 2007

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3 comments:

salil said...

क्या बात है राहुल-भाई! आपने "तमसो-म-ज्योतिर्गमय" के विचार को बड़े ही सहज-भाव से व्यक्त किया है इस कविता में!

salil said...
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salil said...
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