Thursday, January 31, 2013

अविश्वसनीय भारत

वो
उनकी 'बस' में
उनके बस में थी
और जब बे-'बस' हुई
तो और भी बेबस हुई
समाज के आकाओं को
जब सुपुर्द हुई

40 मिनट में पर्ची कटी थी
नाम क्या है?
उम्र क्या है?
साथ कौन है?
क्यूँ भिड़ा था?
इसका-तुम्हारा
क्या आँकड़ा है?

खून बहता है तो बहता रहे
घाव बढ़ता है तो बढ़ता रहे
फ़र्म तो भरना है, सो आप भरते रहें

बिन पैसे इलाज होता नहीं है
खैरात में काम होता नही है
डॉक्टर-नर्स को कुछ देना होगा
इसलिए आपसे कुछ लेना होगा

और जब बवाल हद से बड़ जाए
पासपोर्ट-प्लेन सब मिल जाए
पी-एम जाए एयरपोर्ट लिवाने
कवि लगे कविता सुनाने
मेरे देश के नेता सोना निगले
निगले हीरे मोती
चिंतन शिविर में राहुल चमका
यही है चिंता होती

ज्योति जली थी
जला के मिटा दी गई
जनता जगी थी
बहला के भटका दी गई
किसी न किसी मसले में
उलझा दी गई

क्रिकेट के लफ़ड़े
सीमाओं के झंझट
ओवैसी की बकबक
फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड्स
पद्मश्री पुरुस्कार

इन सब के बीच
दब गया हाहाकार
और छाने लगे
अविश्वसनीय भारत
के इश्तेहार

31 जनवरी 2013
सिएटल । 513-341-6798

Sunday, January 20, 2013

इंसान थे कल तलक


होमो सेपियन्स को 
होमो ईरेक्टस बनने में
हज़ार साल लगे थे
और इधर?
पीठ तोड़ कर बैठने में
फ़क़त चार दिन लगे हैं

ईमेल हो
गेम हो
या फ़ेसबुक की अपडेट हो
फोन हाथ में लिए
गर्दन झुका
सर झुका
पीठ तोड़े जा रहे हैं
पढ़े लिखे हो के भी
अंगूठा चला रहे हैं

इंसान थे कल तलक
आज एप बन गए हैं 
आप को छोड़ के 
ऐप  में खो गए हैं 

अच्छी खासी सूरत है
और सूरत बदल रहे हैं
इन्स्टाग्राम, फोटोकैम के
फ़िल्टर लगा रहे हैं

अपाईंटमेंट्स हैं इतने सारे
कि कैलेन्डर भर गया है
लेकिन एक भी नहीं ईवेंट 
जिसमें यार-दोस्त कहीं हो

काँटेक्ट्स हैं इतने सारे
कि अम्बार लग गया है
लेकिन एक भी नहीं काँटेक्ट जो
बिन काम कॉल करे कभी

कल तलक थे किसी के दिल में
आज भीड़ में खो गये हैं
इतने कटे हैं सबसे
कि शमशान हो गए हैं

रहते हैं हम शिखर पे
और अच्छी खासी बसर है
झरने हैं हर दिशा में
और कदम-कदम शजर है
लेकिन स्क्रीन की चमक-दमक का
हुआ कुछ यूँ असर है
कि नज़रों को नज़ारा एक भी
आता नहीं नज़र है

कल तलक थे जो बागबां
आज दीवारों से घिर गए हैं
दीवारों पे लिखते-लिखते
दीवारों में बंध गए हैं

===============
होमो सेपियन्स = homo sapiens
होमो ईरेक्टस = homo erectus
ईमेल = email
गेम = game
फ़ेसबुक = facebook 
अपडेट = update
एप = ape 
ऐप = app 
इन्स्टाग्राम = instagram
फोटोकैम = photo cam
फ़िल्टर = filter
अपाईंटमेंट्स = appointments
कैलेन्डर = calendar
ईवेंट = event
काँटेक्ट्स = contacts
शजर = पेड़
स्क्रीन = screen

Saturday, January 19, 2013

बुद्धिजीवियों की यह बिसात नहीं है


राहुल से जो उम्र में बड़े हैं
सबके सब आज कूढ़ रहे हैं

आखिर किस बात का उन्हें ग़म है यारो
कि
वो उम्र में छोटा है
और ओहदा बड़ा है?
कि वो किसी का बेटा है
और कोई उसकी माँ है?
कि उसे किसी ने न रोका
न कोई माई का लाल अड़ा है?
सब अफ़रा-तफ़री में
हो रहा है?
प्रजातंत्र का मटियामेट
हो रहा है?

उनसे मुझे एक बात है कहनी
कि
जब कांग्रेस ने इंदिरा गाँधी चुनी थी
राजीव के सर टोपी रखी थी
आप ने ही तो इन्हें वोट दिया था
बार-बार निर्वाचित किया था

और आज अगर राहुल पसंद नहीं है
तो अगली बार इन्हें वोट न देना
फिर भी अगर ये जीत गए तो
जनता को कोई दोष न देना
सही मायनों में प्रजातंत्र यहीं है
बुद्धिजीवियों की यह बिसात नहीं है

19 जनवरी 2013
सिएटल । 513-341-6798

चेहरे पे आ जाती चमक है


दार्जलिंग की वादियों में
आसमान फट चुका था
गर-बरस के थम चुका था
कुछ बादल 
रुई के फोहों से 
इधर-उधर भटक रहे थे
दिल में अरमां मचल रहे थे
शाम सर्द थी
बदन सुलग रहे थे

मोटी चोटी गुंथी हुई थी
ज़िंदगी कितनी सुलझी हुई थी
तुम थी, मैं था और समा था
चिंता-फ़िकर का न कोई पता था

घंटे नहीं
कुछ पल ही थे गुज़रें
लेकिन ताज़ा ऐसे
जैसे कल ही थे गुज़रें

आज चिंता है
आज फ़िकर है
लेकिन याद में बसी
कुछ ऐसी इतर है
कि
घोर घटा हो
घोर तिमिर हो
चारों ओर 
छिड़ा समर हो
याद आते ही
बदल जाती शकल है
चेहरे पे 
आ जाती चमक है

19 जनवरी 2013
सिएटल । 513-341-6798
==========
इतर = इत्र

Tuesday, January 15, 2013

ऑल-इण्डिया-रेडियो

लोगों को सपने आते हैं
मुझे गाने आते हैं


कुछ दिनों से
दिल ऑल-इण्डिया-रेडियो हो गया है
गाता है
गुनगुनाता है
अजीब-अजीब से गाने
(गाने क्या, गानों के टुकड़े)
सुनाता चला जाता है


(जैसे टुकड़ा #1:
तुम रूठा न करो मेरी जाँ मेरी जान निकल जाती है
तुम हँसती रहती हो तो इक बिजली सी चमक जाती है


टुकड़ा #2:
रोज़ आती हो तुम ख़यालों में
ज़िंदगी में भी मेरी आ जाओ
बीत जाए न ये सवालों में
इस जवानी पे कुछ तरस खाओ


टुकड़ा #3:
पूछे कोई कि दिल को कहाँ छोड़ आये हैं
किस किस से अपना रिश्ता-ए-जाँ जोड़ आये हैं


टुकड़ा #4:
न देंगे हम तुझे इलज़ाम बेवफ़ाई का
मगर गिला तो करेंगे तेरी जुदाई का)


रेडियो होता
तो कान मरोड़ के
स्टेशन बदल देता
इधर-उधर की
कुछ खबरें सुन लेता


लेकिन दिल और दिमाग की
सुई कैसे घुमाऊँ?
वो एक
जिसे मैं भूला नहीं पाया
कैसे भुलाऊँ?


15 जनवरी 2013
सिएटल । 513-341-6798

Sunday, January 13, 2013

याचना

हे भगवन!
इतनी बड़ी दुनिया में
किस आईकॉन पे मैं क्लिक करूँ
ताकि हम और तुम क्लिक हो सकें
युगों-युगों के बंधन तोड़ के
एक दूसरे से जुड़ सकें


कैसे मैं खूद को रिबूट करूँ
ताकि सारे विकार मिट जाए
केश सारा क्लियर हो जाए
मन के पूर्वाग्रह छट जाए


ये दुनिया तेरी
ये सिस्टम तेरा
फिर क्यूँ न एक
विज़न भी हो
पाप हो तो
पॉप-अप भी हो
सपोर्ट का
कोई नम्बर भी हो
ऑनलाईन हो
ऑफ़लाईन हो
हेल्प का कोई प्रोविज़न भी हो


यूँ बार-बार
हमें रिसाईकल न कर
मोटा-पतला-छोटा न कर
जो हो गया सो हो गया
यूँ बार-बार
हमें दफ़ा न कर
काम क्या है
प्रयोजन क्या है
कुछ तो हमें बताया भी कर


13 जनवरी 2013
सिएटल । 513-341-6798

==================
आईकॉन = icon
क्लिक = click
रिबूट = reboot
केश = cache
क्लियर = clear
सिस्टम = system
विज़न = vision
पॉप-अप = pop-up
सपोर्ट = support
ऑनलाईन = online
ऑफ़लाईन = offline
हेल्प = help
प्रोविज़न = provision
रिसाईकल = recycle

Saturday, January 5, 2013

मैं कोई ईसा नहीं


मैं कोई ईसा नहीं
जो दूँ दुआएँ सलीब से
रखूँ राबता उम्र भर
और करूँ दोस्ती रक़ीब से

बहुत चाहा बनूँ फ़कीर
मैं भी गाँधी-कबीर सा
बुरा हो शुभकामनाओं का
जो मिली मुझे हबीब से

न कपड़ें फटे थे
न कार थी टूटी
लेकिन लब पे आई शिकायतें
तो लगने लगे वो गरीब से

दिल्ली की नारी जो कहे
चलती उसी पे सरकार है
छपने लगे इन दिनों
किस्से कैसे-कैसे अजीब से

'गर मानों
तो ये एक रचना है
वरना हैं शब्द
बिखरें बेतरतीब से

5 जनवरी 2012
सिएटल । 513-341-6798

=============
सलीब - सूली
राबता = सम्बन्ध, सम्पर्क
रक़ीब = प्रतिद्वंदी
हबीब = मित्र



Tuesday, January 1, 2013

शुभकामनाएँ


मैं
साल की कृत्रिम सीमाओं को नहीं मानता हूँ
और न ही इस पचड़े में पड़ना चाहता हूँ
कि साल में 365 दिन होते हैं या 365 और एक चौथाई
और न हीं इस द्वंद में फ़ंसना चाहता हूँ
कि साल एक जनवरी को बदलता है या चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को

मैं तो बस इतना चाहता हूँ
कि आपके जीवन का हर पल
सुहाना हो
होंठों पे गीत हो
जो किसीको सुनाना हो
ईश्वर आपको इतनी शक्ति दें
कि
झूठ बोलना न पड़े
सच कड़वा न लगे
और जब जितना मिले
उसमें घर चलाना
बुरा न लगे

आपका शुभेच्छु
राहुल

1 जनवरी 2013
सिएटल । 513-341-6798