होमो सेपियन्स को
होमो ईरेक्टस बनने में
हज़ार साल लगे थे
और इधर?
पीठ तोड़ कर बैठने में
फ़क़त चार दिन लगे हैं
ईमेल हो
गेम हो
या फ़ेसबुक की अपडेट हो
फोन हाथ में लिए
गर्दन झुका
सर झुका
पीठ तोड़े जा रहे हैं
पढ़े लिखे हो के भी
अंगूठा चला रहे हैं
इंसान थे कल तलक
आज एप बन गए हैं
आप को छोड़ के
ऐप में खो गए हैं
अच्छी खासी सूरत है
और सूरत बदल रहे हैं
इन्स्टाग्राम, फोटोकैम के
फ़िल्टर लगा रहे हैं
अपाईंटमेंट्स हैं इतने सारे
कि कैलेन्डर भर गया है
लेकिन एक भी नहीं ईवेंट
जिसमें यार-दोस्त कहीं हो
काँटेक्ट्स हैं इतने सारे
कि अम्बार लग गया है
लेकिन एक भी नहीं काँटेक्ट जो
बिन काम कॉल करे कभी
कल तलक थे किसी के दिल में
आज भीड़ में खो गये हैं
इतने कटे हैं सबसे
कि शमशान हो गए हैं
रहते हैं हम शिखर पे
और अच्छी खासी बसर है
झरने हैं हर दिशा में
और कदम-कदम शजर है
लेकिन स्क्रीन की चमक-दमक का
हुआ कुछ यूँ असर है
कि नज़रों को नज़ारा एक भी
आता नहीं नज़र है
कल तलक थे जो बागबां
आज दीवारों से घिर गए हैं
दीवारों पे लिखते-लिखते
दीवारों में बंध गए हैं
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होमो सेपियन्स = homo sapiens
होमो ईरेक्टस = homo erectus
ईमेल = email
गेम = game
फ़ेसबुक = facebook
अपडेट = update
एप = ape
ऐप = app
इन्स्टाग्राम = instagram
फोटोकैम = photo cam
फ़िल्टर = filter
अपाईंटमेंट्स = appointments
कैलेन्डर = calendar
ईवेंट = event
काँटेक्ट्स = contacts
शजर = पेड़
स्क्रीन = screen
4 comments:
सच बात है! इंसान से ape बन जाना और आप का app में खो जाना मज़े के comparisons हैं!
बहुत खूब सच्चाई का आइना दिखाती रचना ...
vartmaan jeevan shaily ko bilkul sahi paribhashit kiya hai.angrezi shabdo ka chayan rachna ki aadhunik shaily prashnshniye hai.
Very nice and true in current days..
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