Thursday, October 30, 2014

कागज़ी दुनिया

कागज़ी दुनिया
कागज़ के लोग
कागज़ है तो वजूद है
वरना आप
सूखे दरख्त से चिपका
एक काँपता हुआ पत्ता है
जो न गिरे
न भरे
बस फड़फड़ाता रहे
इस आस में कि
कब जा के माटी में मिले

किसी न किसी से
कहीं न कहीं से
आपका सम्बन्ध होना ज़रूरी है
किसी गाँव, शहर या देश की
शिनाख्त होनी ज़रूरी है
जन्मतिथि तय करना बहुत ज़रूरी है

कहा जाता है कि
झूठ बोलना पाप है
लेकिन फिर भी हज़ारों
या कहूँ कि लाखों लोग
रोज़ बेधड़क झूठ बोल रहे हैं
जो ठीक से मालूम नहीं
उसे ताल ठोक के कह रहे हैं

माँ तक को याद नहीं कि
आप कब हुए थे तो आपकी क्या बिसात

माँ कहती है कि
सावन का महीना रहा होगा
जन्माष्टमी आने वाली थी
शायद द्वादशी रही होगी
मुझे अच्छी तरह से याद है
उसी रात पड़ोसी का कुत्ता मरा था
और उन दिनों बारिश ने बुरा हाल कर रखा था
सैलाना और शिवगढ़ के बीच बसों का आना जाना बंद हो गया था
तभी तू हुआ था
जा ले आ कोई पचास साल पुराना पंचांग
और लगा ले तू हिसाब

(कितनी दयनीय स्थिति है कि
कितने अजन्मे देवताओं के (देवियों के क्यों नहीं?)
जन्मदिन हमें अच्छी तरह से याद है
और उन्हें हम धूम-धाम से मनाते हैं
और अपने ही परिजनों के जन्मदिन या तो पता नहीं होते या उन्हें हम भूल जाते हैं)

इसी कागज़ के टुकड़े से
कागज़ी सफ़र शुरू होता है

सारा ज्ञान
सारी सरस्वती
हर्फ़ों में समाई हुई है
सफ़ेद पन्नों पर
काले अक्षर हम पढ़ते जाते हैं
कागज़ काले करते जाते हैं
हरे कागज़ कमाते जाते हैं
कुछ काले हो जाते हैं
तो उन्हें सफ़ेद करने के चक्कर में
कुछ और कागज़ी कार्यवाही करने लग जाते हैं

कागज़ी दुनिया
कागज़ के लोग
कागज़ है तो वजूद है
वरना आप भूत हैं

30 अक्टूबर 2014
सिएटल । 513-341-6798

Monday, October 27, 2014

उत्सव आते हैं, उत्सव जाते हैं


उत्सव आते हैं
उत्सव जाते हैं
शुभकामनाओं के संदेश
कट-पेस्ट कर दिए जाते हैं

कब, कहॉं, किसपे क्या विपदा पड़ी
इससे किसीको कोई सरोकार नहीं
कब किसका उद्धार हुआ
किसीको कुछ पता नहीं
कब किसकी कौनसी समस्या का निवारण हुआ
इसे जानने-समझने की भी कोई ज़रूरत नहीं

पहले
पन्द्रह-बीस दिन पहले ही
संदेशे भेज दिए जाते थे
और मिल भी जाया करते थे

और अब?
मजाल है जो
दो दिन पहले भी मिल जाए
जनाब, जिस दिन पर्व होगा
उसी दिन मिलेगा
ताकि कहीं गलती से भी आप
एक दिन पहले
या एक दिन बाद
खुश न हो लें

पहले जब संदेशे भेजे जाते थे
सामनेवाला बड़ी मेहनत करता था
सोच-समझ कर कार्ड ख़रीदता था
एक अच्छी सी क़लम लेकर
अपने हाथों से आपका नाम लिखता था
रंग-बिरंगे लिफ़ाफ़ों पर
त्योहारी डाक-टिकट लगाकर
पोस्ट करता था

फिर डिजीटल युग आया
लेकिन तब भी सामनेवाला
अपने सैकड़ों कॉंटेक्ट्स में से
आपका नाम चुनकर
कम से कम
टू, सीसी या बीसीसी में
जोड़ता तो था

अब तो ये आलम है कि
शुभकामनाएँ दीवार पर चिपका दी हैं
जिसे देखना है वो देख ले
वरना हमें कौनसी गरज पड़ी है
आपको शुभकामनाएँ देने की

उत्सव आते हैं
उत्सव जाते हैं
शुभकामनाओं के संदेश
कट-पेस्ट कर दिए जाते हैं

27 अक्टूबर 2014
सिएटल । 513-341-6798

Monday, October 6, 2014

'जोक' पे 'जोक' सुनाते चलो

'जोक' पे 'जोक' सुनाते चलो
देश की लुटिया डूबोते चलो
राह में आए जो वोटर सभी
सब को उल्लू बनाते चलो
 
एक तरफ़ है ऑटो-रिक्शा
दूजी तरफ़ मंगलयान हमारा
दोनों में नहीं कोई बराबरी
पर ये बराबरी करवाए
सेव से संतरे की तुलना कराते चलो
 
जब कभी भी भाषण मारे
निर्यात के ही लगाए नारे
निर्यात से भला किसका भला हुआ
निर्यात श्रमिक को निचोड़े
देश को बंग्लादेश बनाते चलो
 
अमरीका आए, सब पे छाए
ब्रेन-ड्रेनियों का 'ब्रेन-वाश' किया
'मेक इन इण्डिया' नारा इनका
'बोर्न इन इण्डिया' बाहर भेजना इनको
'ब्रेन-ड्रेन' बढ़ाते चलो
 
6 अक्टूबर 2014
सिएटल । 513-341-6798
(मोदीजी के मेडिसन स्क्वेयर गार्डन में दिए गए भाषण से प्रेरित, भरत व्यास से क्षमायाचना सहित)
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जोक = joke
ब्रेन-ड्रेन = brain-drain
ब्रेन-वाश = brain-wash
मेक इन इण्डिया = make in India
बोर्न इन इण्डिया = born in India