Tuesday, March 31, 2020

आँखों में आँखें डाल के

आँखों में आँखें डाल के
आता है जो क़रार 
व्हाट्सैप की दुनिया में 
कहाँ है वो मेरे यार

दहशत की ज़िन्दगी में 
अरमां तो फ़ना होने ही थे
जीते जी मरने का 
नाम ही है दूजा प्यार

क़त्ल करते थे जो मेरा कभी
घरों में बन्द हैं आज
मेरी मौत मेरे ही हाथों
लिखी है लक्ष्मण रेखा पार

मोहब्बत में दम होता
तो मोहब्बत का नाम भी होता
और यूँ न होता तेरा-मेरा
पृथक-पृथक संसार 

किसी एक की ये बात नहीं है
सबका एक ही है हाल
क्या मज़हब और क्या माशूक़ 
सबके बन्द हैं द्वार 

किसकी क़िस्मत किससे अच्छी 
समझ न पाए कोई
जो गुज़र गए वो सुखी हुए
या बचे-खुचे परिवार

शायर हूँ, बदनाम भी
पर क्यूँ डालूँ हथियार
पिक्चर अभी बाक़ी है
जाऊँगा न मान के हार

राहुल उपाध्याय । 31 मार्च 2020 । सिएटल

Sunday, March 29, 2020

हवा साफ़ है

हवा साफ़ है
बच्चे साथ हैं
चिड़ियों की चहचहाट है
न दिन है, न रात है
चौबीसों घण्टे 
व्हाट्सैप पर 
चुटकुलों की बौछार है
मौज मस्ती करने का
यह नया अंदाज़ है

ऑटो-डिपाज़िट है 
ऑटो-विथड्रॉल है
फ़ोन तो कोई आता नहीं 
मिलने का का क्या सवाल है
आधुनिकीकरण का
हासिल ये परिणाम है

मिडिल क्लास की पिकनिक है
बाक़ी की लग गई वाट है
अमीर के डूब गए स्टॉक्स
ग़रीब की मिट गई आय है
बदलते समय का 
यह नया आयाम है

राहुल उपाध्याय । 29 मार्च 2020 । सिएटल

Friday, March 13, 2020

मन करता है मैं आनन्द बन जाऊँ

मन करता है
मैं आनन्द बन जाऊँ
ख़ुशियाँ बाँटूँ
हर्ष-उल्लास लाऊँ 
उत्साह जगाऊँ 
मर के अमर हो जाऊँ

फिर सोचता हूँ
कि सबका टायमर तो एक ही है 
यदि सब आनन्द बन गए
तो डॉक्टर कौन बनेगा?
इलाज कौन करेगा?
उसे खाना कौन खिलाएगा
उसे दफ़्तर कौन पहुँचाएगा?
उसका घर कौन बनाएगा?
उसके बच्चों को कौन पढ़ाएगा?
फ़र्नीचर कौन बनाएगा?
कार कौन बनाएगा?
बस कौन चलाएगा?

सच तो यही है कि
आनन्द जो बनते हैं
वे वेले होते हैं
निठल्ले होते हैं
ऊँचे आसन पर बैठकर
वही ज्ञान बाँट सकते हैं कि
ज़िन्दगी लम्बी नहीं 
बड़ी होनी चाहिए

राहुल उपाध्याय । 12 मार्च 2020 । सिएटल

Wednesday, March 11, 2020

दूध का दूध

दूध का दूध
वॉटर का वॉटर हो गया
मन्दिर में भगवान नहीं 
यह तथ्य उजागर हो गया

सुन्दरकाण्ड का पाठ हो
या हो सत्यनारायण कथा
सब के सब हैं किट्टी पार्टी
जहाँ चहचहाएँ विमला-कमला-लता

सिमरन, संगत, साधु से भी
नहीं होता कोई लाभ
कोरोना के रोग का भी
डॉक्टर ही ढूँढ रहे इलाज

यज्ञ, जप और हवन ने भी
डाल दिए हथियार
आज के बाद इन सबको
दूर से करो नमस्कार

कर्मकाण्ड हो या भक्तिभाव 
सब के सब बेकार
कोरोना की इस सीख को
कभी न भूलो यार

राहुल उपाध्याय । 11 मार्च 2020 । सिएटल

Friday, March 6, 2020

होंठों पे नक़ाब रहता है

होंठों पे नक़ाब रहता है
जहाँ सेनिटाईज़र ले के बंदा चलता है
हम उस विश्व के वासी है
जिस विश्व में कोरोना रहता है

मेहमां जो हमारा होता है
वो ख़तरे से भरा होता है
न जाने कहाँ से हो के आया
थोबड़े पे कहाँ लिखा होता है

दूर से ही करे नमस्कार उसे
चलता-फिरता टाईम बाम्ब लगता है

कुछ लोग जो ज़्यादा जानते है
फ़ॉरवर्ड करके ही वो मानते हैं
ये वेले बैठे व्हाट्सैपवाले
हर मर्ज़ का इलाज जानते है

कोरोना क्या कोरोना के बाप से भी
निपटने का इन्होंने ठेका ले रखा है

जो जिसको सूझा किया उसने
खुद को ही नज़रबन्द किया कुछ ने
कुछ शहर ही छोड़ के भाग गए
तो पिकनिक का मज़ा लूटा कुछ ने

मन्दिरों में भी लग गए ताले अब
अब भगवान से भरोसा उठता है 

(शैलेन्द्र से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 6 मार्च 2020 । सिएटल

Wednesday, March 4, 2020

टीवी जिसे कहते हैं

टीवी जिसे कहते हैं
दु:खों का कटोरा है
हिंसा की दीं कभी ख़बरें 
तो कभी दंगों को निचोड़ा है

कोराना-सा कोई वायरस
इमरजेंसी का कोई आलम 
हर वक़्त का रोना तो 
बेकार का रोना है

चैनल का रिपोर्टर तो
आदत से है लाचार
'गर गुलशन भी वह देखे
तो कहे काँटों का बिछाना है

सी-एन-एन हो कि आज तक
सब बढ़-चढ़ के डराते हैं
जैसे दुनिया का अंत 
बस आज ही होना है

घण्टों-घण्टों की कवरेज 
फिर भी न कुछ हासिल
ले-दे के बस अंत में
हाथ ही तो धोना है

(निदा फ़ाज़ली से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 4 मार्च 2020 । सिएटल

Tuesday, March 3, 2020

मेरे शहर आया एक नन्हा वायरस

मेरे शहर आया एक नन्हा वायरस
चीन से प्लेन पे हो के सवार

उसके हाथों में हैं हम सबके प्राण
उसके नाम से ही काँपे हम और आप
जब हटेगा, जब मिटेगा वो
तब जा के आएगी साँस में साँस 

उसके आने से मेरे जीवन में
उड़ गया चैन, छीन गया है क़रार 
हाथ धो कर भी जी नहीं भरता
चाहे धोऊँ उसे हज़ारों बार   

व्हाट्सैप पे मिले तो पूछूँ मैं
क्यूँ है ख़फ़ा, क्यूँ तू इतना ख़ूँख़ार?
क्या बिगाड़ा है हमने तेरा जो
कर रहा वार पे वार बेशुमार 

(साहिर से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 3 मार्च 2020 । सिएटल

Sunday, March 1, 2020

हाथ धो कर जो पीछे पड़ा है

हाथ धो कर जो पीछे पड़ा है
हाथ धो कर उससे निजात पाओ
लोहा ही लोहे को काटता है
डॉक्टर ने कहा उपाय यही है

कर्मकाण्ड में विश्वास है जिनको
कहते ऋषि-मुनि का श्राप यही है
जपो निरन्तर हनुमत बीरा
हर मर्ज़ का इलाज यही है

एक दिन ऐसा आएगा
इंसान इंसान से कतराएगा
नास्त्रेदमस का नाम जो हैं जानते 
कहते लिखा उसने साफ़ यही है

जितने मुँह उतनी बातें 
इसकी-उसकी-किसकी माने?
नक़ाब चढ़ाए, घर सील करें?
बचने की क्या अब राह यही है?

संचार के माध्यम हैं कुछ इतने पक्के
कि किसी को किसी से मिलने की चाह नहीं है
सुबह-शाम व्हाट्सैप पे करें गुड मार्निंग
कोरोना के युग का सच मात्र यही है

बाज़ार से आटा-चावल-दाल हैं गायब
सब के घर के भंडार भरे हैं
कल को जब प्रलय आएगा
भूखें न मरें बस प्रयास यही है

राहुल उपाध्याय । 1 मार्च 2020 । सिएटल