Tuesday, March 31, 2020

आँखों में आँखें डाल के

आँखों में आँखें डाल के
आता है जो क़रार 
व्हाट्सैप की दुनिया में 
कहाँ है वो मेरे यार

दहशत की ज़िन्दगी में 
अरमां तो फ़ना होने ही थे
जीते जी मरने का 
नाम ही है दूजा प्यार

क़त्ल करते थे जो मेरा कभी
घरों में बन्द हैं आज
मेरी मौत मेरे ही हाथों
लिखी है लक्ष्मण रेखा पार

मोहब्बत में दम होता
तो मोहब्बत का नाम भी होता
और यूँ न होता तेरा-मेरा
पृथक-पृथक संसार 

किसी एक की ये बात नहीं है
सबका एक ही है हाल
क्या मज़हब और क्या माशूक़ 
सबके बन्द हैं द्वार 

किसकी क़िस्मत किससे अच्छी 
समझ न पाए कोई
जो गुज़र गए वो सुखी हुए
या बचे-खुचे परिवार

शायर हूँ, बदनाम भी
पर क्यूँ डालूँ हथियार
पिक्चर अभी बाक़ी है
जाऊँगा न मान के हार

राहुल उपाध्याय । 31 मार्च 2020 । सिएटल

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