Sunday, June 30, 2013

उत्तर-पूरब, दक्षिण-इक्वेटर

जो इक्वेटर में रहा
इक वैटर ही रहा


जो दक्षिण में रहा
दबाया हर क्षण ही गया


पूरब वाला भूतपूर्व में रहा
त्रेता-द्वापर के गुण गाता रहा
कभी शल्यचिकित्सा की दुहाई दी
तो कभी पुष्पक की डींग भरता रहा


उत्तर वाला उत्तरोत्तर बढ़ता रहा
सफ़लता की सीढ़ी चढ़ता ही रहा


ये दुनिया सारी गोल मगर
हर 'गोल' में है उत्तर का सफ़र


उत्तर न हो तो अनुत्तरित प्रश्न रहें
दुनिया में विकास हो न सके


उत्तर में ही उत्तर मिलते हैं
बंद अकल के ताले खुलते हैं


उत्तर-पूरब, दक्षिण-इक्वेटर
इन सबमें है उत्तर बेहतर


30 जून 2013
सिएटल ।
513-341-6798
 

Saturday, June 22, 2013

चाँद मिलता नहीं सबको संसार में

आज चाँद पूरा होगा
(अधुरा कब था?)
आज चाँद बड़ा होगा
(छोटा कब था?)
आज चाँद हमसे सबसे ज़्यादा करीब होगा

और मुझमें इतना ज्ञान आया कहाँ से?
विज्ञान से


 वरना
हमें क्या
चाँद निकले तो निकले
न निकले तो न निकले
दिखे तो ठीक
न दिखे तो ठीक
छोटा है या बड़ा
पास है या दूर
हमें इससे कोई सरोकार नहीं है

सागर की लहरें उछलती हो तो उछलें
हमने तो समंदर की ओर देखना तक छोड़ दिया है
जब से हवा से बातें करने लगे हैं
वायुयान में सफ़र करने लगे हैं
और वहाँ भी
ताकि कोई विघ्न न पड़े
चाँद-सूरज बाधा न बने
खिड़की पर पर्दा गिरा देते हैं
और एक छोटे से पर्दे पर
हा-हा-ही-ही
और नाच गाना देखते रहते हैं
तिलस्मी विडियो-गेम्स खेला करते हैं

चाँद का होना न होना
कोई मायने नहीं रखता है
हमारे लिये

22 जून 2013
सिएटल ।

513-341-6798

Thursday, June 20, 2013

केदारनाथ


तूफ़ान आया
आ कर बरस गया
पानी में डूबा शहर
पानी को तरस गया

उफ़ान नदी का
उतर गया
आँखों में
समंदर ठहर गया

इस में भी उसका हाथ होगा
कुछ लेन-देन का हिसाब होगा
समझाते हैं अपने आप को
ढूंढते हैं अपने पाप को

तूफ़ान हो या कोई क़हर हो
खतरे का कोई पहर हो
कोंसते हैं अपने आप को
सहते हैं हर अभिशाप को

कब मुक्ति हो इस पापी की
कब दया हो सर्वव्यापी की

Sunday, June 16, 2013

दूर रहकर न करो बात

जल-प्रपात
रमणीक है
मनोहारी है
लेकिन दूर से ही अच्छा लगता है

नीला सागर
लुभाता है
बुलाता है
लेकिन तट से ही लगता अच्छा है

लहू में लथपथ
बिलबिलाता बेटा
जन्म के वक़्त ही लगता अच्छा है

प्रतिद्वंदी हो
या प्रतिपक्षी नेता
मरने के बाद ही लगता अच्छा है

क्या अच्छा है
और क्या बुरा
सब समय-स्थान के साथ बदलता रहता है

16 जून  2013
सिएटल । 513-341-6798

Saturday, June 15, 2013

नानक न बन सके

जिसने भी कैलेंडर बनाया है
बहुत सोच समझ के बनाया है
ताकि कोई फिर
गलती से भी
तेरा-तेरा न कह सके
नानक न बन सके

15 जून 2013
सिएटल । 513-341-6798

Wednesday, June 12, 2013

कुदरती हरियाली

दो चीजे जब मिलती हैं
तो कुछ न कुछ तो नया पैदा होता है

सड़क से गटर
गटर से फ़ुटपाथ
फ़ुटपाथ से घर
घर से बालकनी
बालकनी से मुंडेर

हर जगह
जहाँ-जहाँ भी जोड़ है
प्रकृति से ओत-प्रोत है

लेकिन
हम अपनी मनपसंद के
फल, फूल और एक छायादार पेड़ को
पालने पोसने में
इतने स्वार्थी बन जाते हैं
कि
कुदरती हरियाली को
मिटा देते हैं
जड़ से उखाड़ देते हैं

और तो और
आगे
फिर कभी
उग न पाए
राऊंड-अप
और वीड-किलर्स
छिड़क देते हैं

हम पर
अपनी पसंद-नापसंद का भूत
कुछ इस कदर हावी है
कि
किसी और का होना तक
खटकने लगता है

दो जिस्म भी जब मिलते हैं ...

12 जून 2013
सिएटल । 513-341-6798

Friday, June 7, 2013

नितांत अकेलापन

लाइट के लाल होते ही
स्क्रीन खुल जाती है
अंगुठा हिलने लगता है
और बिट्स और बाईट्स 
उपर-नीचे
तैरने लग जाते हैं

बाहर की दुनिया
क्या सचमुच
इतनी नीरस और उबाऊ है
कि 
हम अपने 
चिर-परिचित
सीमित
दायरों में
रोमांच
खोजने
लग जाते हैं?

मेजबान की नज़र हटते ही
स्क्रीन खुल जाती है
अंगुठा हिलने लगता है
और बिट्स और बाईट्स 
उपर-नीचे
तैरने लग जाते हैं

हमें
जीते-जागते इंसान को छोड़कर
उससे नज़रें बचा कर
265 दोस्तों का सर्कस देखना 
ज्यादा अच्छा लगता है

सामने बैठे इंसान से
मुस्करा कर
दो बोल बोलने के बजाय
किसी दीवार पर
"LOL"
"fantastic"
"miss you"
"wish you were here"
लिखना 
ज्यादा अच्छा लगता है

बिस्तर से सुबह उठते ही
स्क्रीन खुल जाती है
अंगुठा हिलने लगता है
और बिट्स और बाईट्स 
उपर-नीचे
तैरने लग जाते हैं

क्या करें!
आदत पड़ जाती है
उम्र ढल जाती है
मॉडल बदल जाते हैं
प्लान बदल जाते हैं
एक नहीं, दो नहीं,
चार-चार स्मार्टफोन घर में हो जाते हैं
पहले ही कम बोलते थे
अब मरघट सा छा जाता है
घर में ही टेक्स्ट भेजे जाने लगते हैं
निगाहें झुक जाती हैं
सर लटक जाते हैं

और एक दिन
जब बैटरी चुक जाती है
चार्जर भी जवाब दे जाता है
सर जब उठता है
तो अकेलापन ही अकेलापन
नितांत अकेलापन ही नज़र आता है

7 जून 2013
सिएटल । 513-341-6798

पहेली 40

आती है देर से और जाती है जल्दी
इसके बिना हम हो पाते न 'हेल्दी'
(हल्दी सी हो तो लगती है 'डर्टी')

मुस्कान भी रहती आधी-अधूरी
'बेकर' की बेकिंग भी हो जाती बेकार
कार तो होती
पर अमीन सयानी की न होती जय-जयकार

बताओ जल्दी आखिर कौन सा ये राज़
तीखा-मीठा कुछ भी लगे नहीं स्वाद
सीटी बजाने में भी जिसका है बड़ा हाथ

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इस पहेली को हल करने में कठिनाई हो तो मेरी अन्य पहेलियाँ भी देख लें. शायद कुछ मदद हो जाए.

Tuesday, June 4, 2013

अरमान थे अरमानी के

अरमान थे 'अरमानी' के
और डूब गया गुरबानी में
जीवन जीना कितना आसान
समझ न सका जवानी में


नाहक ही हक मैंने खोया
भरी जवानी बस्ता ही ढोया
रात-रात भर उल्लू सा जागा
माया के पीछे ही भागा


इससे तो अच्छा इश्क़ मैं करता
हर किसी को प्यार से तकता
जो मिलता उसे अपना कहता
हर हाल में, हर बात पे हँसता


जब नहीं है जग तेरा या मेरा
फिर क्यूँ बना मैं टेढ़ा-मेढ़ा?
जो होता है क्यूँ होने ना दूँ
बात-बात पे क्यूँ करूँ बखेड़ा?


कि ये ज़मीं मेरे नाम पे कर दो
इस एकाउंट में कुछ पैसे भर दो


नानक कहते थे सब तेरा-तेरा
मैं कहूँ बस मेरा-मेरा
ज़मीं-एकाउंट की बात तो छोड़ो
चम्मच-कटोरी पे भी नाम है मेरा


कभी अरमान थे 'अरमानी' के
अब डूब गया हूँ गुरबानी में
भोग-विलास से दूर अब भागूँ
सुकूं ढूंढूँ गुड़धानी में


4 जून 2013
सिएटल ।
513-341-6798

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अरमानी = Armani

Saturday, June 1, 2013

Sensex में sense नहीं

Sensex में sense  नहीं
और tensions intense नहीं

यूरो का यूँ रोना भी
करता हमें tense नहीं

बढ़ता ही जाता है investment
खींचता कोई reins नहीं

दुनिया है उम्मीद पे कायम
बदलता कोई lens नहीं

महीने महीने जो कटे
कहते हैं 401k, कहते expense नहीं

1 जून 2013
सिएटल । 513-341-6798