Friday, March 28, 2008

भगवान

https://youtu.be/HfwFsLm15Tk हम सुबह शाम भगवान को सजा देते हैं न जाने किस भूल की उसे सज़ा देते हैं ईश्वर जो कि अजर अमर है उसे पत्थर में पनाह देते हैं सब अपनी मनमानी मूरत गढ़ते हैं उसने हमें बनाया हम उसे बना देते हैं फ़ुरसत नहीं हैं जिन्हे मिंटों की मन्दिरों में घंटे लगा देते हैं मना के मनगढ़ंत जनमदिन और तीज त्योहार बात बात पर हम अपना हक़ जता देते हैं

अहसास

अहसास होता है जिसका हरदम
हर वक़्त जिसका साया है
क्यू न अब तक मुझे
वो कहीं मिल पाया है

वेद, पुराण, बुद्ध और ईसा
सब ने यहीं बताया है
जिसे मैं छू पाता नहीं
उसे मैंने ही कहीं छुपाया है

न जाने किस भूल को
हम भूल बैठे हैं
हज़ारों पेगम्बरों के बाद भी
याद नहीं कुछ आया है

गोया याद नहीं है कुछ भी
पर उसकी याद ने बहुत सताया है
यही मुझे गिला है उससे
क्यू न दीवाना मुझे बनाया है

जब तक ये होश है बाकी
जब तक मेरा सरमाया है
तब तक चलेगा ये सफ़र
जीते जी कौन इसे तय कर पाया है

मिलने की अभिलाषा

देखता हूँ उसे रोज़
जाते हुए दफ़्तर
आते हुए घर

देखता हूँ उसे रोज़
लेकिन रुकता नहीं 
है कभी आँफ़िस की झंझट
तो कभी परिवार के बंधन

सोचता हूँ
एक दिन
उतरूँ अपनी गाड़ी से
चल के जाऊँ उस पगडंडी से
समेट लूँ उसकी खुशबू अपनी सांसों में
निहारूँ औंधें पड़े गगन को

लेकिन नहीं 
अभी थोड़ा और कमाना है
सुंदर सा घर बनाना है
अपनो को सताना है
गैरों को बताना है

देखता हूँ उसे रोज़
जाते हुए दफ़्तर
आते हुए घर

राहुल उपाध्याय | 28 मार्च 2008 | सिएटल

m&m

One touch and you would melt
Those were the days

You are a fountain of youth
Very colorful
Very sweet
Very bright

On the other hand
I am a diabetic
And must maintain a safe distance

What a pity
Without a warm hug
You will still be nice
But as cold as a cube of ice

Seattle,
March 28, 2008

I suck

There was a time when I could write
There was a time when I could bite

Now
My teeth are dull
My words are mellow

I suck.

Seattle,
March 28, 2008

Thursday, March 27, 2008

मोल-भाव

सौदापरस्त दुनिया में अक्सर ऐसा ही है होता
कोई बेचता है कविता तो कोई खरीदता है श्रोता

सस्ता हो सौदा या महंगा हो सौदा
सौदा किसी भी नाम से होता है सौदा

कोई झुकाता है सर तो कोई पकड़ता है पद
ताकि आज नहीं तो कल उसे मिल जाए पद

कोई खरीदता है पद तो कोई बेचता है पद
पाने के बाद फ़िर नहीं कोई छोड़ता है पद

पद वाले छोड़ देते हैं लिखना पद और छंद
नई विचारधारा के लिए पट कर देते हैं बंद
हमेशा आगे कर देते हैं अपने भाई और बंद
नगर-नगर गाते हैं कि समाज में फ़ैला है गंद

समझना हो 'गर भारत-पाकिस्तान का द्वन्द्व
बनाए आप एक संगठन और बनाए पद चंद
हिलेरी और ओबामा को भी मात दे देंगे
पद लोभी जिनके मुख कल तक रहते थे बंद



राहुल उपाध्याय | 27 मार्च 2008क्ष | सिएटल
===================
Glossary:
पद = 1. feet 2. title 3. stanza
द्वन्द्व = fight, due

Wednesday, March 26, 2008

Q.E.D.

चूँकि उपभोक्ता हूँ मैं
क्या इस कारण जनता हूँ मैं?
या चूँकि जनता हूँ मैं
इस कारण उपभोक्ता हूँ मैं?

हवा-पानी
पेड़-पौधें
चाँद-सितारें
ये सब आए कैसे?
और हैं किसके सहारे?
सोचने लगा
तो समझ में आया
कि सच पूछो तो
मात्र उपभोक्ता है हम
और एकमात्र जनता है वो

पूजते हैं उसे
मानते हैं उसे
बार-बार हम
पुकारते हैं उसे
सोचने लगा
तो समझ में आया
कि सच पूछो तो
एकमात्र राजा है वो
और उसकी जनता है हम

जनता है वो
जनता है हम

Q.E.D.

सिएटल,
26 मार्च 2008
===========
Glossary
Q.E.D. = quod erat démōnstrandum (which was to be shown or demonstrated; or in High School slang, question easily done)
उपभोक्ता = 1. consumer
जनता = 1. masses 2. to produce, to procreate

Friday, March 21, 2008

मिल-जुल के खूब मनाओ होली

न हिंदू है, न मुस्लिम है
न holy थी, न holy है
एक holiday थी, एक holiday है
होली रंगो की आंखमिचौली है

गम वहाँ भी थे, गम यहाँ भी हैं
खुश वहाँ भी थे, खुश यहाँ भी हैं

रंग वहाँ भी थे, रंग यहाँ भी हैं
चश्मा बदल जो देखोगे कभी
साफ़ नज़र आएगे रंग सभी

हरे यहाँ के नोट है
हरा है greencard
हरे भरे पेड़ हैं
हरा है सारा yard

न red-tape का सिरदर्द है
न लाल-पीले होते मर्द हैं
न black में टिकटे लेते हैं
न balck में गैस खरीदते हैं


life यहाँ पर hard है
पर बहुत मधुर reward है

जीवन जीने के ये basic fundae
खुश रहो तो हर दिन fun-day

'फ़िकर not' की खाओ गोली
मिल-जुल के खूब मनाओ होली

सिएटल,
21 मार्च 2008

Wednesday, March 19, 2008

मात्र मात्रा का अंतर

गरिमा

कुछ लोग हमारे देश में
कहते हैं आवेश में
कि अंग्रेज़ी ही बेस्ट है
हिंदी नही श्रेष्ठ है

करते वो बड़ी एक भूल है
जो समझ बैठे इसे मात्र भाषा
भूल गए कि हिंदी ही है एकमात्र भाषा
जिसे करोड़ों कहते हैं अपनी मातृभाषा

इसमें शक्ति है और ओज है
घर घर में बोली जाती रोज है
दीवाली की पावन ज्योत है
होली के रंगो से ओत-प्रोत है

इसमें फ़िल्में भी है और शोध भी
इसमें गरिमा भी है और विनोद भी

विनोद

गीता पर मैंने हाथ रखा
गीता के बाप ने धर दिया

श्रद्धा के साथ मंदिर गया
श्रद्धा के भाई ने पीट दिया

चोटी को जब मैं छूने लगा
जोर से एक थप्पड़ पड़ा

आशा की मैंने जब बात की
पत्नी ने दो दिन तक न बात की

कई बार कवि सम्मेलनों में
कविता सुनते सुनते मैं सो जाता हूँ
कभी कविता के साथ अगर मैं सो गया
तो पत्नी मेरा क्या हाल करेगी
ये सोच के ही मैं डर जाता हूँ

इन पंक्तियों में आप स्वयं मात्रा बदले और मन ही मन आनंद ले

होली की रात होली पर एक कविता पढ़ी थी
दूसरे दिन सुबह देखा तो वहाँ राख पड़ी थी

होली का माहौल था
सारे बदन पर गुलाल थी
बहुत धोई, बहुत धोई
पर अगले दिन तक गुलाल थी

सिएटल,
19 मार्च 2008
होली है भई होली है, बुरा न मानो होली है
===================================
Glossary:
मात्र = merely
मात्रा = 1. short and long variety of vowel/swar 2. quantity
आवेश = passion
एकमात्र = the only
मातृभाषा = mother tongue
शक्ति = power
ओज = lustre
ज्योत = flame
ओत-प्रोत = full to the brim
शोध = research
गरिमा = dignity
विनोद = humor
धर = planted (as in a slap)
चोटी = 1. peak 2. pony tail
पढ़ी = read
पड़ी = kept
माहौल = atmosphere

मनमोहनी मनभावनी

मिलती है सुबह शाम मुझे
जैसे मिलते हैं सुबह शाम
स्वप्न से जगाती है मुझे
स्वप्न में ले जाती है वो
महसूस तो होती है
लेकिन छू उसे सकता नहीं 

चलती है साथ-साथ मेरे
जैसे हवा चले साथ मेरे
छेड़ती है, खेलती है
लेकिन पकड़ उसे सकता नहीं 

रहती है साथ-साथ मेरे
जैसे सांस रहे साथ मेरे
आती-जाती है कई बार
लेकिन रोक उसे सकता नहीं 

बसती है जो जहन में मेरे
मिलेगी इस जहां में नहीं 
पलती है कविता में मेरी
मिलेगी दास्तां में नहीं 
मनमोहनी मनभावनी
मनमीत जीवनसंगिनी
नाम उसके कई हैं

लेकिन बता उसे सकता नहीं 

कभी यहाँ तो कभी कहीं
लोगो ने कई बाते कही
खरी खोटी झूठी सही
हर तरह की बातें सही
प्यार की बात है
जो समझ गया
वो समझ गया
नासमझ समझता नहीं 

राहुल उपाध्याय | 19 मार्च 2008 | सिएटल

====================
Glossary:
जहन = mind
जहां = world
दास्तां = a story, a tale
कहीं = somewhere
कही = said
सही = 1. correct, true, valid 2. to bear, to endure

Sunday, March 16, 2008

मंदिर

पत्थर कुछ सुनता नहीं 
दिल कुछ कहता नहीं 
जाता हूँ मंदिर
लेकिन मन वहाँ लगता नहीं 

मिलते हैं लोग
देते हैं ढोग
भजते हैं भजन
या करते हैं ढोंग
ये तो वे ही जाने
मैं कुछ कह सकता नहीं 
जाता हूँ मंदिर
लेकिन मन वहाँ लगता नहीं 

मिलते हैं पुजारी
जिनकी जुबान दुधारी
दान-दक्षिणा ले कर
दोह रहे गाय दुधारी
गीता का है ज्ञान
लेकिन आचरण से झलकता नहीं 
जाता हूँ मंदिर
लेकिन मन वहाँ लगता नहीं 

मिलती है मूर्ति
एकटक घूरती
मैं तो वहीं था
श्रद्धा कहीं दूर थी
प्राण-प्रतिष्ठित हैं 
लेकिन सांस कोई भरता नहीं 
जाता हूँ मंदिर
लेकिन मन वहाँ लगता नहीं 

राहुल उपाध्याय | 16 मार्च 2008 | सिएटल
==================
ढोग = bow before a diety
ढोंग = pretend
जुबान = tongue
दोह = to milk a cow
दुधारी = 1. double edged 2. milk producing cow 3. cash cow

Friday, March 14, 2008

मैं कवि हूँ

मैं कवि हूँ 

कोई किरदार नहीं 
कि एक कुर्ते-पजामें में सिमट जाऊँ 

 मैं कवि हूँ 
कोई सलाहकार नहीं  
कि तुम्हे जीवन जीने की राह दिखाऊँ 

मैं कवि हूँ 
कोई मददगार नहीं  
कि तुम्हारा दु:ख-दर्द मिटाता जाऊँ 

मैं कवि हूँ 
कोई खानसामा नहीं  
जो menu के मुताबिक 
कभी मीठा 
कभी खट्टा 
तो कभी चटपटा 
Item पेश करता जाऊँ 

 मैं कवि हूँ 
कविता मेरा शौक है, मेरा पेशा नहीं  
और तनिक भी शोक नहीं  
कि इसमें पैसा नहीं   

मैं कवि हूँ 
कविता मेरा व्यवसाय नहीं  
शब्दों से खेलता हूँ 
शब्दों की खाता नहीं  
इन्हें बेच कर 
खोलना मुझे बैंक खाता नहीं   

मैं कवि हूँ 
मेरे शब्द बहुरुपी हैं  
मैं भी बहुरुपिया हूँ 
बातें ज़रुर बनाता हूँ 
उनसे बनाता नहीं रुपया हूँ 

 मैं कवि हूँ 
कभी दुनिया की नहीं परवाह की 
जब जो अच्छा लगा उस पर वाह की 

मैं कवि हूँ 
सच कहने से घबराता नहीं  
जानता हूँ कि जिस दम घुटने टेक दूँगा  
उस पल से मेरा दम घुटने लगेगा 

मैं कवि हूँ 
जब भी कहता हूँ 
सच ही कहता हूँ 
लेकिन मैं 'मेरा' ही सच कहता हूँ 
ये आवश्यक तो नहीं कि हमारे-तुम्हारे विचार मिले 
और ये भी उद्देश्य नहीं कि इसके लिए बधाई मिले 

मैं कवि हूँ 
जब भी कहता हूँ 
सच ही कहता हूँ 
लेकिन मैं 'आज' का ही सच कहता हूँ 
मुमकिन है कल मैं खुद ही अपनी बात से पलट जाऊँ 

समय बहता है
मैं भी उसके साथ बह जाऊँ 
आज यहाँ हूँ
कल कहीं और चला जाऊँ 
 तुम लकीर के फ़कीर मत बनना 
मेरे शब्दों से चिपके मत रहना 

मैं कवि हूँ 
मेरा खुद का कोई ठिकाना नहीं  
मेरा कोई भी शब्द अंतिम नहीं  

राहुल उपाध्याय | 14 मार्च 2008 | सिएटल

मेरे दिल की बात

सोचता हूँ तुम्हें थोड़ा और संवार दूँ
लेकिन डरता हूँ कहीं बिगड़ न जाओ तुम

मेरी नज़रों के सामने
पली-बढ़ी हो तुम
कल तक मेरे दिल में थी
आज मेरे सामने हो तुम

सोचता हूँ तुम्हें थोड़ा और संवार दूँ

लेकिन डरता हूँ कहीं बिगड़ न जाओ तुम

तुम्हें जी भर कर देखूँ
हाथ बढ़ा कर तुम्हें छू लूँ
तुम्हारे माथे पर बिंदी लगा दूँ
तुम्हारी शान में चार चाँद लगा दूँ
तुम्हारे कदमों में अपना नाम लिख दूँ
अपने होंठों से तुम्हारा रोम-रोम चूम लूँ
तुम्हें सर से पाँव तक आभूषणों से अलंकृत कर दूँ

सोचता हूँ तुम्हें थोड़ा और संवार दूँ
लेकिन डरता हूँ कहीं बिगड़ न जाओ तुम

जो दिल में है वो सब कह दूँ
तुम्हें अपने आगोश में ले कर सो जाऊँ
नींद खुलने पर तुम्हें अपने पास ही पाऊँ
जागते-सोते बस तुम्हें और तुम्हें ही पाऊँ
ख्वाबों में भी तुम आओ और मैं तुम्हें सजाता जाऊँ

मेरे दिल की धड़कनें कुछ तेज होगी
जब सब के सामने तुम आओगी
और हर एक का मन बहलाओगी
तब तुम मेरी नहीं रह जाओगी
लेकिन मैं तुम्हें याद करता रहूगा
और तुम्हें बार बार दोहराता रहूगा
कभी अकेले में
तो कभी महफ़िल में
लेकिन तुम्हें फिर कभी संवार न पाऊँगा

सोचता था तुम्हें थोड़ा और संवार दूँ

लेकिन डरता था कहीं बिगड़ न जाओ तुम

कह नहीं सकता
किसमें ज्यादा त्रासदी है
इसमें कि
तुम मेरे सामने हो
और मैं तुम्हें संवार नही सकता
क्यूंकि तुम अब किसी एक की नहीं हो
या फिर इसमें कि
दिल चीर कर एक और मसौदा निकालना
उसे अपने हाथों पालना-पोसना
उसे एक नई शक्ल देना
उसे कविता का नाम देना
और उसे ज़माने को सौंप देना

सोचता था तुम्हें थोड़ा और संवार दूँ

लेकिन डरता था कहीं बिगड़ न जाओ तुम

राहुल उपाध्याय | 14 मार्च 2008 | सिएटल

Thursday, March 13, 2008

Blogger ज़फ़र

न किसी के blog पर linked हूँ
न किसी की list में favorite हूँ
जो किसी का ध्यान न पा सके
मैं ऐसी chain-mail unread हूँ

न कोई मुझको ping करे
न कोई मुझ से chat करे
दूर दूर मुझ से सब रहे
जैसे मैं virus की threat हूँ

मेरा domain भी मुझसे छीन गया
मेरे ads पर किसी ने न click किया
जो Nigeria से रोज आती है
मैं वो property unclaimed हूँ

कोई blog पढ़ने आए क्यूँ?
कोई comments लिख के जाए क्यूँ?
जो कभी internet से न connect हो
मैं वो एक computer sad हूँ

मेरी emails सारी unread हैं
मेरी posts सारी ignored हैं
जो पैदा होते ही मर गया
मैं ऐसा email thread हूँ

सिएटल,
13 मार्च 2008
(बहादुर शाह ज़फ़र से क्षमा याचना सहित)
[Please, कम से कम आप तो comment देते जाओ! अल्लाह के नाम पर दे दे! भगवान तुम्हे खुश रखे! तुम्हारा DSL connection कभी न टूटे!]

मिलते ही dollar दिल हुआ दीवाना US का

मिलते ही dollar दिल हुआ दीवाना US का
dollar जोड़ना बन गया तराना ज़िंदगी का

पूछो ना दौलत का असर, हाय न पूछो, हाय ना पूछो - 2
मौका मिलते ही हो गया, citizen US का
dollar जोड़ना बन गया तराना ज़िंदगी का
मिलते ही dollar दिल हुआ दीवाना US का

दस्तें ही न लग जाए कहीं, पीते ही पानी, पीते ही पानी -2
घर का पानी पी सके ना, दुर्भाग्य ये उस का
dollar जोड़ना बन गया तराना ज़िंदगी का
मिलते ही dollar दिल हुआ दीवाना US का

सिएटल,
13 मार्च 2008
(शकील बदायुनी से क्षमा याचना सहित)

Wednesday, March 12, 2008

महत्व सुदामा होने का

सुदामा तुम बहुत भाग्यशाली थे
इसलिए नहीं कि
कृष्ण तुम्हारे सहपाठी थे
बल्कि इसलिए कि
वो वातावरण बहुत अनुकूल था
नि:शुल्क बोर्डिंग स्कूल था
शिक्षा प्राप्त होते ही नौकरी करो
ऐसा कोई न उसूल था

सुदामा तुम बहुत भाग्यशाली थे
इसलिए नहीं कि
कृष्ण तुम्हारे सहपाठी थे
बल्कि इसलिए कि
बहुत धैर्यवाली तुम्हारी घरवाली थी
जो तुम्हे कभी नहीं सताती थी
जितना मिले उतने में घर चलाती थी

सुदामा तुम बहुत भाग्यशाली थे
इसलिए नहीं कि
कृष्ण तुम्हारे सहपाठी थे
बल्कि इसलिए कि
तुमने उत्तम शिक्षा तो पाई थी
पर कमाई एक भी न पाई थी
न गाड़ी थी न घोड़ा था
न कोई जायदाद ही तुमने जुटाई थी
फिर भी पत्नी ने खरी-खोटी नहीं सुनाई थी

सुदामा तुम बहुत भाग्यशाली थे
इसलिए नहीं कि
कृष्ण तुम्हारे सहपाठी थे
बल्कि इसलिए कि
तुम्हारे सास-ससुर बहुत सभ्य थे
जो ताने कभी न कसते थे
जबकि एक कौड़ी की कमाई नहीं
और बच्चे पैदा होते रहते थे

सुदामा तुम बहुत भाग्यशाली थे
इसलिए नहीं कि
कृष्ण तुम्हारे सहपाठी थे
बल्कि इसलिए कि
सरकार बहुत दयालु थी
पैतृक सम्पत्ति पर तुमसे
कभी कर नहीं वसूलती थी
तुम्हारे माथे पर कोई
भार भी नहीं वो सौंपती थी

सुदामा तुम बहुत भाग्यशाली थे
इसलिए नहीं कि
कृष्ण तुम्हारे सहपाठी थे
बल्कि इसलिए कि
तुम्हे अपनी पत्नी पर इतना विश्वास था
कि कभी तुम्हें छोड़ नहीं वो सकती थी
द्वारका में लम्बे अरसे तक कृष्ण के कारनामें तुम सुनते रहे
पर एक पल भी तुम्हे पत्नी की चिंता नहीं सताती थी

सुदामा तुम बहुत भाग्यशाली थे
इसलिए नहीं कि
कृष्ण तुम्हारे सहपाठी थे
बल्कि इसलिए कि
वो युग बड़ा सयाना था
Career का नहीं कोई बहाना था
आज की धारणा तो यह है कि
Give a man a fish; you have fed him for today.
Teach a man to fish; and you have fed him for life.
आज का युग होता तो
कृष्ण इस तरह महल-जेवरात
तुम्हे दान में नहीं दे सकते थे

सुदामा तुम बहुत भाग्यशाली थे

राहुल उपाध्याय | 12 मार्च 2008 | सिएटल


आ लौट के आजा NRI

आ लौट के आजा NRI
तुझे रुपये बचाने हैं
तेरी net worth रही है गिर
तुझे रुपये बचाने हैं

दिल्ली नही
हैदराबाद ही सही
कही तो डेरा जमा ले
Wipro नही
Infosys ही सही
कही तो पैसा कमा ले
ये घड़ी न आए फिर
तुझे रुपये बचाने हैं
आ लौट के आजा NRI

एक हाथ से dollar
एक हाथ से रुपया

दोनो हाथों से धन ही बटोरा
आज इस देश में
कल उस देश में
हर जगह है भीख का कटोरा
तेरी इज़्ज़त न जाए गिर
तुझे रुपये बचाने हैं
आ लौट के आजा NRI

सिएटल,
12 मार्च 2008
(भरत व्यास से क्षमा याचना सहित)

Monday, March 10, 2008

मनाओ होली, मनाओ St Patrick's Day

यहाँ और वहाँ में क्या है फ़र्क?
पेश हैं कुछ ताजा तर्क

वहाँ के लोग बनाए घर
यहाँ के builders बनाए house
वहाँ के बिल पाले चूहें
यहाँ के Bill बेंचे mouse

वहाँ के लोग करे missed call
यहाँ के लोग करे miss call

यहाँ का President अभी तक male
वहाँ की President एक female


यहाँ है plane, वहाँ है रेल
यहाँ है burger, वहाँ है भेल

यहाँ है blow-dry, वहाँ है तेल
वहाँ है ठेला, यहाँ है sale

वहाँ है आंगन, यहाँ है yard
वहाँ है रुपया, यहाँ है card

वहाँ का हीरो, यहाँ है cool
वहाँ की बंकस, यहाँ है bull

यहाँ है Jesus, वहाँ है शंकर
यहाँ है salad, वहाँ है कंकर

यहाँ है दूध, वहाँ है पानी
यहाँ है 'Babe', वहाँ है 'जानी'


यहाँ है pickup, वहाँ है खच्चर
यहाँ है traffic, वहाँ है मच्छर

वहाँ है पैसा, यहाँ हैं cents
यहाँ है dollar, वहाँ हैं saints

यहाँ हैं men, वहाँ हैं gents
वहाँ है साड़ी, यहाँ हैं pants

वहाँ हैं पंखे, यहाँ है heater
यहाँ है मील, वहाँ किलोमीटर

वहाँ है बाल्टी, यहाँ है shower
वहाँ था husband, यहाँ है नौकर

वहाँ है भाई, यहाँ है mob
यहाँ GPS, वहाँ 'भाई साब!'

यहाँ है rest room, वहाँ है खेत
यहाँ है baseball, वहाँ क्रिकेट

वहाँ है bowling, यहाँ है pitching
यहाँ है tanning, वहाँ है bleaching

यहाँ है blond, वहाँ है संता
वहाँ पटाखें, यहाँ है Santa

वहाँ नमस्ते, यहाँ है Hi
यहाँ है Pepsi, वहाँ है चाय

यहाँ का left, वहाँ का right
वहाँ की lift, यहाँ की ride

वहाँ का यार, यहाँ है Dude
वहाँ है cement, यहाँ है wood


यहाँ है dieting, वहाँ है घी
यहाँ है 'Aha', वहाँ है 'जी'

वहाँ का engineer, यहाँ है nerd
यहाँ का yoghurt, वहाँ है curd

यहाँ है donuts, वहाँ श्रीखंड
वहाँ ठंडाई, यहाँ है ठंड

यहाँ weekend, वहाँ है Sunday
वहाँ है होली, यहाँ St Patrick's Day

मनाओ होली, मनाओ St Patrick's Day
मारो home run, मारो छक्के
करो freak out, चक दो फट्टे

यहाँ-वहाँ में फ़र्क तो ढूंढ़ा
हर फ़र्क में विनोद ही ढूंढ़ा

यहाँ है वन, वहाँ है वन,
जहाँ है वन, वहीं heaven

न कोई pass, न कोई fail
जहाँ न अपना, वहीं है jail
बनाए अपने, बड़ाया मेल
उठाए phone, भेजी mail

न कोई गलत, न कोई सही है
खट्टा लगा तो समझा दही है
जीवन जीने की रीत यहीं है
मैं जहाँ हूँ, स्वर्ग वहीं है


सिएटल,
10 मार्च 2008

==============================
Glossary
St. Patrick's Day = March 15, 2008
होली = March 22, 2008
बिल = burrow, house of mice
Bill = a common name in US
Mouse = computer accessory
Missed call = a phone call that just rings to notify that you have been called but does not give you an opportunity to pick it up
भेल = as in Bhel-puri, a common snack/chat item in Mumbai
Blow-dry = drying the hair with a blow-dryer
तेल = oil used in hair
ठेला = a small cart used by street hawkers
Sale = several retail events highlighting deep discounts
Card = credit card
हीरो = As in,"बहुत, हीरो बन रहे हो?"
Cool = As in, "Don't try to be so cool."

बंकस = talking non-sense, in Tapori language - a Mumbai lingo
कंकर = small stone pieces found while eating 'daal' or lentils
पानी = water mixed in milk by the milkman
Pickup = a small truck with a low-sided open body, used for deliveries and light hauling
खच्चर = mule, beast of burden
Traffic = piles of vehicles, a major nuisance during rush hour commute
मच्छर = flies, a major nuisance while sleeping
Men = sign for male urinals in India
Gents = sign for male urinals in India
भाई = as in Munna Bhai, a person running a mafia
Mob = as in Godfather, Goodfellas, Untouchables
GPS = Global Positioning System
भाई साब = as in, "भाई साब, मास्टर दीनानाथ का मकान कहाँ है?"

Rest room = a better name for toilets in US
खेत = open fields, a better place for toilets in India
Blond = as in blond jokes
संता = as in Santa-Banta jokes
पटाखें = fire crackers, a major deal for kids at Diwali
Santa = white bearded burly guy in red suit, a major deal for kids at Christmas
Left = left hand driving
Right = right hand driving
Lift = "Can I give you a lift?"
Ride = "Can I give you a ride?"
श्रीखंड = a sweet dish made with curd (Gujarat, Maharashtra)
ठंडाई = a cool refreshing drink made around Holi
Home run = equivalent of sixer in cricket
छक्के = equivalent of home run in baseball
Freak out = with great enthusiasm
चक दो फ़ट्टे = go all the way
विनोद = humor
वन = forest
मेल = blend, mingle, फ्रेंडशिप
===========================

Here is literal translation for those who need it:

Here, a plane, there, a rail
Here, a burger, there, a Bhel

There, aa.ngan, here a yard
There, rupee, here a card

There a hero, here is cool
Their bankas, here is bull

There paisa, here cents
There sari, here pants

There fan, here heater
Here mile, their kilometer

There bucket, here shower
There husband, here lawn mower

There bhai, here mob
Here GPS, there Bhai Saab

Here bowling, there pitching
Here tanning, their bleaching

Here blond, there Santa
There firecrarckers, here Santa

There Namaste, here Hi
Here Pepsi, there chai

Here left, there right,
There lift, here ride

There Yaar, here Dude
There cement, here wood

Here dieting, there ghee
Here "Aaha," there "Ji"

There engineer, here nerd
There yoghurt, here curd

Here a thief, there a "Chor"
There "Kaam", here a chore

Here a web, there a net
There friend, here a date
Here weekend, there Sunday
There Holi, here St. Patrick's day

Celebrate Holi, celebrate St. Patrick's day
Go all the way, chak de phaTTe
Hit a home run, hit a sixer
Drink some lassi, drink some beer

मृगतृष्णा

वो एक पत्थर
जिस पर आँखें गड़ी थी
जिससे हमारी उम्मीदें जुड़ी थी
जैसे का तैसा बेजान पड़ा था
जैसा किसी कारीगर ने गढ़ा था

रुकते थे सब
कोई ठहरता नहीं  था
जैसा था सोचा
ये तो वैसा नही था
था मील का पत्थर
ये तो गंतव्य नहीं था

चाँद से भी ऐसे ही उम्मीदें जुड़ी थी
चाँद पर भी ऐसे ही आंखे गड़ी थी

आज मात्र एक मील का पत्थर
तिरस्कृत सा पड़ा है पथ पर

सिएटल,
10 मार्च 2008
================================
Glossary
मृगतृष्णा = mirage
गंतव्य = destination
उम्मीदें = hopes
गढ़ा = shaped
मात्र = only
तिरस्कृत = neglected, rejected
पथ = path

Friday, March 7, 2008

मगर… #3

कभी मधुर कभी दुभर
रोता बस दुखड़े मगर

कहे जो मरजी वो कर
छोड़ कर मर जी मगर

नीचे न जाऊं चढ़ू उपर
ज़िंदगी एक जीना मगर

पल पल पलती है उमर
पल नहीं जीते हैं मगर

पानी जीवन पानी क़हर
फूल खिले रहते मगर

हर तरफ़ बहती लहर
सब नहीं तरते मगर

भक्त वक़्त से बेख़बर
भजे सवेरे शाम मगर

न मानो तो एक पत्थर
मानो तो एक नींव मगर

रवि के लगाता मैं चक्कर
मानो तो परिक्रमा मगर

सब रवि पर हैं निर्भर
रब नहीं कहते मगर

एक हम हैं एक ईश्वर
हैं अनेक चेहरे मगर

सब की पहचान नश्वर
नाम हैं राजा रंक मगर

हमें-तुम्हे भी होता फ़क्र
हम अलग रहते मगर

देखा जब देखा शहर
देखा नहीं इंसा मगर

शाम गई और निखर
नया था चश्मा मगर

रात रात ही जाग कर
उल्लू सीधे होते मगर

रोज कस के बांधू कमर
मन नहीं बंधता मगर

क्या हकीम क्या डाक्टर
पीर नहीं समझे मगर

हर कोई है चारागर
प्यार से देखे मगर

होता राहुल राज-कुंवर
होता शायर कौन मगर

सिएटल,
6 मार्च 2008
=======================
Glossary
जीना = 1. live life 2. staircase
रहते = 1. continues 2. stays, settles
मगर = 2. but 3. crocodile
शाम = 1. evening 2. Krishna
इंसा = 1. mankind 2. like this one
उल्लू = owl
उल्लू सीधा करना = to get your (and only yours) things done
पीर =पीड़ा, pain
चारागर =care giver

Thursday, March 6, 2008

Mail और Little 'r'

कह कह के सब गए हार
Please, please, use little 'r'

सब ने सब को लेकिन भेजा
भेज भेज के सब खा गए भेजा

हमने तो सोचा था
एक अच्छी सुविधा है मेल
इसकी बदौलत
सब का हो जाएगा मेल

मगर जैसे जैसे
बड़ी मैल की मात्रा
सोचने लगा क्यों है
मैल में 'ऐ' की बड़ी मात्रा?

तब समझ में आया
सारा इसका खेल
मैल नहीं कराती मेल
मैल तो बस भेजती है मैल

Little r, little r लाख दबाया
मगर फ़र्क कुछ भी न पाया
Unix होती तो शायद कुछ होता
Windows में तो mouse ही काम में आया

झट से मैंने delete button दबाया
तब जा के चैन की सांस ले पाया

सिएटल,
6 मार्च 2008
==========================
Glossary
Little 'r' = Reply to sender only
Big 'R' = Reply to all
भेजा = 1. sent 2. brain
मैल = 1. email 2. dirt
मात्रा = 1. quantity 2. vowel sound (short/long)

Tuesday, March 4, 2008

बधाई

लिखी कविता मिली बधाई
कवि के चेहरे पर मुस्कान आई

जलते थे घर, बिलखते थे लोग
कवि ने उसमें दिया ये योग
बैठ के ज्वलंत एक कविता बनाई
लिखी कविता मिली बधाई
कवि के चेहरे पर मुस्कान आई

ताज के बाहर भूखी थी बच्ची
ताज के अंदर कविता थी अच्छी
मिल-जुल के कवियों ने दावत उड़ाई
लिखी कविता मिली बधाई
कवि के चेहरे पर मुस्कान आई

बुरा है शासन, बुरे हैं नेता
कहते थे लेकिन, कवि निकले अभिनेता
शासकीय इनाम के लिए झोली फ़ैलाई
लिखी कविता मिली बधाई
कवि के चेहरे पर मुस्कान आई

ग़म हो, खुशी हो या हो कवि देता दुहाई
पाठक हो, श्रोता हो, सब बस देते बधाई
कवि की बात कोई अमल में न लाई
लिखी कविता मिली बधाई
कवि के चेहरे पर मुस्कान आई

सिएटल,
4 मार्च 2008

महल एक रेत का

टूट गया जब रेत महल
बच्चे का दिल गया दहल
मिला एक नया खिलौना
बच्चे का दिल गया बहल

आया एक शिशु चपल
रेत समेट बनाया महल

बार बार रेत महल
बनता रहा, बिगड़ता रहा
बन बन के बिगड़ता रहा

रेत किसी पर न बिगड़ी
किस्मत समझ सब सहती रही

वाह री कुदरत,
ये कैसी फ़ितरत?
समंदर में जो आंसू छुपाए थे
उन्हें ही रेत में मिला कर
बच्चों ने महल बनाए थे

दर्द तो होता है उसे
कुछ नहीं कहती मगर

एक समय चट्टान थी
चोट खा कर वक़्त की
मार खा कर लहर की
टूट-टूट कर
बिखर-बिखर कर
बन गई वो रेत थी

दर्द तो होता है उसे
चोट नहीं दिखती मगर

वाह री कुदरत,
ये कैसी फ़ितरत?
ज़ख्म छुपा दिए उसी वक़्त ने
वो वक़्त जो था सितमगर!

आज रोंदते हैं इसे
छोटे बड़े सब मगर
दरारों से आंसू छलकते हैं
पानी उसे कहते मगर

टूट चूकी थी
मिट चूकी थी
फिर भी बनी सबका सहारा
माझी जिसे कहते किनारा

सिएटल,
4 मार्च २००८

============================
Glossary
दहल = shocked
चपल = playful
कुदरत = nature
फ़ितरत = tendency, inclination
सितमगर = perpetrator
रोंदते = to crush
माझी = boatman

मगर … #2

मेरा घर मेरा मगर
कोई नहीं मेरा मगर

कर लू थोड़ा और सबर
बची नहीं ज़िंदगी मगर

माना जिन्हे हमसफ़र
जाते थे कहीं और मगर

नदी में पड़ते हैं भंवर
जाने किसे बुलाते मगर

गले से मय जाए उतर
नशा क्यूं चड़ जाए मगर?

समय करे सब बराबर
रात दिन बना के मगर

घड़ी के कांटों का अंतर
मिट के भी रहता मगर

पैसा पूजा आठों पहर
मोल नहीं वक़्त का मगर

वादे से जो जाते मुकर
ख़ुद अधूरे होते मगर

चिंता है न किसी का डर
बन गया फ़कीर मगर

सब के सब जाते सुधर
हम तुम न होते मगर

नक़्शा बना एक सुंदर
देश नहीं बनता मगर

अक्स तेरा मेरे अंदर
तू कहाँ रहता मगर?

तेरे-मेरे से हर समर
सब तो है अपना मगर
 
न वज़न है ना बहर
कहे ग़ज़ल राहुल मगर

सिएटल,
4 मार्च 2008

Monday, March 3, 2008

मगर

मेरा घर मेरा मगर कोई नहीं मेरा मगर आया था मैं जिस डगर जाती नहीं वापस मगर भटका मैं दर-ब-दर नहीं मिली मंज़िल मगर यहीं कहीं जाऊँ ठहर बने कोई मेरा मगर प्यार की चाही नज़र लाखों मिले चेहरे मगर चार दिन का ये सफ़र कभी लगे लम्बा मगर सच हो जाते ख़्वाब अगर मैं नहीं मैं होता मगर होगी कभी सुहानी सहर रात फ़कत सोचा मगर सोचता था जाऊँगा घर पांव नहीं उठते मगर टूटा दिल, गया बिखर फिर हुआ पत्थर मगर क्या हुआ? क्या ख़बर? सच सभी कहते मगर जाने कहाँ कौन किधर? सब यहीं रहते मगर बस रहा मेरे भीतर मुझे नहीं मिलता मगर दुआएं भी करती असर बुत को ख़ुदा माना मगर दे दे अगर कोई ज़हर बंदा नहीं मरता मगर प्रेम नश्वर, प्रेम अमर बयां न होता जो मगर पेट मेरा जाता है भर भूख नहीं मिटती मगर किसे है किस की फ़िकर? हाल सब पूछते मगर हद से गया जो गुज़र चार कंधे पे गया मगर बन जाता मैं भी सदर जुदा होता सब से मगर अंजाम चाहे हो अधर हाथ मिले पहले मगर काम हो तो किस क़दर? दिल करे अगर मगर न वज़न है ना बहर कहे ग़ज़ल राहुल मगर सिएटल, 3 मार्च 2008

Sunday, March 2, 2008

कलंक

इम्तहान में इन्हें मिले ज्यादा कल अंक थे
कौन जानता था कि ये मेरे माथे के कलंक थे

इनके ही आगे-पीछे हम घूमते भटकते थे
'राजा बेटा, राजा बेटा' कहते नहीं थकते थे
आज ये कहते हैं कि 'माँ-बाप मेरे रंक थे'
कौन जानता था …

ये ठोकते हैं सलाम रोज किसी करोड़पति 'बिल' को
पर कभी भी चुका न सके मेरे डाक्टरों के बिल को
सफ़ाई में कहते हैं कि 'हाथ मेरे तंग थे'
कौन जानता था …

उंचा हैं ओहदा और अच्छा खासा कमाते हैं
खुशहाल नज़र मगर बहुत ही कम आते हैं
किस कदर ये हंसते थे जब घूमते नंग-धड़ंग थे
कौन जानता था …

चार कमरे का घर है और तीस साल का कर्ज़
जिसकी गुलामी में बलि चड़ा दिए अपने सारे फ़र्ज़
गुज़र ग़ई कई दीवाली पर कभी न वो संग थे
कौन जानता था …

देख रहा हूं रवैया इनका गिन गिन कर महीनों से
कोई उम्मीद नहीं बची है अब इन करमहीनों से
जब ये घर से निकले थे तब ही सपने हुए भंग थे
कौन जानता था …

जो देखते हैं बच्चे वही सीखते हैं बच्चे
मैं होता अगर अच्छा तो होते ये भी अच्छे
बुढ़ापे की लाठी में शायद बोए मैंने ही डंक थे
कौन जानता था …

सिएटल,
2 मार्च २००८

====================================
Glossary
कलंक = blemish
माथे = forehead
रंक = poor
तंग = tight, as in "budget is tight"
ओहदा = title, position
किस कदर = to what extent
संग = together
रवैया = behavior
करमहीन = good for nothing
भंग = broken
डंक = fangs