Wednesday, March 12, 2008

महत्व सुदामा होने का

सुदामा तुम बहुत भाग्यशाली थे
इसलिए नहीं कि
कृष्ण तुम्हारे सहपाठी थे
बल्कि इसलिए कि
वो वातावरण बहुत अनुकूल था
नि:शुल्क बोर्डिंग स्कूल था
शिक्षा प्राप्त होते ही नौकरी करो
ऐसा कोई न उसूल था

सुदामा तुम बहुत भाग्यशाली थे
इसलिए नहीं कि
कृष्ण तुम्हारे सहपाठी थे
बल्कि इसलिए कि
बहुत धैर्यवाली तुम्हारी घरवाली थी
जो तुम्हे कभी नहीं सताती थी
जितना मिले उतने में घर चलाती थी

सुदामा तुम बहुत भाग्यशाली थे
इसलिए नहीं कि
कृष्ण तुम्हारे सहपाठी थे
बल्कि इसलिए कि
तुमने उत्तम शिक्षा तो पाई थी
पर कमाई एक भी न पाई थी
न गाड़ी थी न घोड़ा था
न कोई जायदाद ही तुमने जुटाई थी
फिर भी पत्नी ने खरी-खोटी नहीं सुनाई थी

सुदामा तुम बहुत भाग्यशाली थे
इसलिए नहीं कि
कृष्ण तुम्हारे सहपाठी थे
बल्कि इसलिए कि
तुम्हारे सास-ससुर बहुत सभ्य थे
जो ताने कभी न कसते थे
जबकि एक कौड़ी की कमाई नहीं
और बच्चे पैदा होते रहते थे

सुदामा तुम बहुत भाग्यशाली थे
इसलिए नहीं कि
कृष्ण तुम्हारे सहपाठी थे
बल्कि इसलिए कि
सरकार बहुत दयालु थी
पैतृक सम्पत्ति पर तुमसे
कभी कर नहीं वसूलती थी
तुम्हारे माथे पर कोई
भार भी नहीं वो सौंपती थी

सुदामा तुम बहुत भाग्यशाली थे
इसलिए नहीं कि
कृष्ण तुम्हारे सहपाठी थे
बल्कि इसलिए कि
तुम्हे अपनी पत्नी पर इतना विश्वास था
कि कभी तुम्हें छोड़ नहीं वो सकती थी
द्वारका में लम्बे अरसे तक कृष्ण के कारनामें तुम सुनते रहे
पर एक पल भी तुम्हे पत्नी की चिंता नहीं सताती थी

सुदामा तुम बहुत भाग्यशाली थे
इसलिए नहीं कि
कृष्ण तुम्हारे सहपाठी थे
बल्कि इसलिए कि
वो युग बड़ा सयाना था
Career का नहीं कोई बहाना था
आज की धारणा तो यह है कि
Give a man a fish; you have fed him for today.
Teach a man to fish; and you have fed him for life.
आज का युग होता तो
कृष्ण इस तरह महल-जेवरात
तुम्हे दान में नहीं दे सकते थे

सुदामा तुम बहुत भाग्यशाली थे

राहुल उपाध्याय | 12 मार्च 2008 | सिएटल


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4 comments:

Anonymous said...

kaita ti achchi hai par bar bar es bat ko batyaya gaya ki mahilaye hee majboor kari hai apne patiyo ko jyada kamane ke liye par mera ye kahna hai ki sab ka ek jaisa swabhav nahi hota kisi bhi bat ko poori jati par aaropit karna theek nahi hai

Prem Chand Sahajwala said...

प्रेमचंद सहजवाला की तरफ़ से यह टिप्पणी - सुदामा का समाया अच्छा ज़रूर था पर एक भी कौडी न कमाना कोई महानता नहीं बल्कि अकर्मण्यता है. महिलाओं को निठल्ला आदमी भला कैसे अच्छा लगेगा. ख़ुद भी भूखी रहे और बच्चों या पति को भी न खिला पाए, यह कौन सी अच्छाई है. इससे वे महिलाएं अच्छी जो पति को लड़ झगड़ कर काम पर जाने को तैयार करती हैं. वैसे कविता काम अंदाज़ अच्छा है. कवि इसी शैली में काफ़ी अच्छा लिख सकते हैं. उनकी क्षमता स्पष्ट है.

Anonymous said...

सुदामा मेरा पति होता तो घर से निकाल देती और कृष्ण से शादी कर लेती मैं - शालू शर्मा

Anonymous said...

Very nice! Is kavita ki peheli lines ek si repeated hain is liye samjhna aasan laga. Krishan aur Sudama ke rishte par ek naya perspective sochne ko mila.

Pati-patni ki baat par: Sudama aur unki patni ka rishta shayad dil ka hoga. Kyoonki jab do logon ka rishta dil ka hota hai, to unke sukh-dukh alag-alag nahin hote.