मिलती है सुबह शाम मुझे
जैसे मिलते हैं सुबह शाम
स्वप्न से जगाती है मुझे
स्वप्न में ले जाती है वो
महसूस तो होती है
लेकिन छू उसे सकता नहीं
चलती है साथ-साथ मेरे
जैसे हवा चले साथ मेरे
छेड़ती है, खेलती है
लेकिन पकड़ उसे सकता नहीं
रहती है साथ-साथ मेरे
जैसे सांस रहे साथ मेरे
आती-जाती है कई बार
लेकिन रोक उसे सकता नहीं
बसती है जो जहन में मेरे
मिलेगी इस जहां में नहीं
पलती है कविता में मेरी
मिलेगी दास्तां में नहीं
मनमोहनी मनभावनी
मनमीत जीवनसंगिनी
नाम उसके कई हैं
लेकिन बता उसे सकता नहीं
कभी यहाँ तो कभी कहीं
लोगो ने कई बाते कही
खरी खोटी झूठी सही
हर तरह की बातें सही
प्यार की बात है
जो समझ गया
वो समझ गया
नासमझ समझता नहीं
राहुल उपाध्याय | 19 मार्च 2008 | सिएटल
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Glossary:
जहन = mind
जहां = world
दास्तां = a story, a tale
कहीं = somewhere
कही = said
सही = 1. correct, true, valid 2. to bear, to endure
Wednesday, March 19, 2008
मनमोहनी मनभावनी
Posted by Rahul Upadhyaya at 9:40 AM
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Labels: intense, relationship, valentine
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1 comments:
Bahut sundar, Rahul. Bahut sensitive kavita hai yeh.
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