टूट गया जब रेत महल
बच्चे का दिल गया दहल
मिला एक नया खिलौना
बच्चे का दिल गया बहल
आया एक शिशु चपल
रेत समेट बनाया महल
बार बार रेत महल
बनता रहा, बिगड़ता रहा
बन बन के बिगड़ता रहा
रेत किसी पर न बिगड़ी
किस्मत समझ सब सहती रही
वाह री कुदरत,
ये कैसी फ़ितरत?
समंदर में जो आंसू छुपाए थे
उन्हें ही रेत में मिला कर
बच्चों ने महल बनाए थे
दर्द तो होता है उसे
कुछ नहीं कहती मगर
एक समय चट्टान थी
चोट खा कर वक़्त की
मार खा कर लहर की
टूट-टूट कर
बिखर-बिखर कर
बन गई वो रेत थी
दर्द तो होता है उसे
चोट नहीं दिखती मगर
वाह री कुदरत,
ये कैसी फ़ितरत?
ज़ख्म छुपा दिए उसी वक़्त ने
वो वक़्त जो था सितमगर!
आज रोंदते हैं इसे
छोटे बड़े सब मगर
दरारों से आंसू छलकते हैं
पानी उसे कहते मगर
टूट चूकी थी
मिट चूकी थी
फिर भी बनी सबका सहारा
माझी जिसे कहते किनारा
सिएटल,
4 मार्च २००८
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Glossary
दहल = shocked
चपल = playful
कुदरत = nature
फ़ितरत = tendency, inclination
सितमगर = perpetrator
रोंदते = to crush
माझी = boatman
Tuesday, March 4, 2008
महल एक रेत का
Posted by Rahul Upadhyaya at 4:58 PM
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Labels: intense, nature, relationship, TG
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4 comments:
समंदर में जो आंसू छुपाए थे
उन्हें ही रेत में मिला कर
बच्चों ने महल बनाए थे
दर्द तो होता है उसे
कुछ नहीं कहती मगर
एक समय चट्टान थी
चोट खा कर वक़्त की
मार खा कर लहर की
टूट-टूट कर
बिखर-बिखर कर
बन गई वो रेत थी
दर्द तो होता है उसे
चोट नहीं दिखती मगर
आज रोंदते हैं इसे
छोटे बड़े सब मगर
दरारों से आंसू छलकते हैं
पानी उसे कहते मगर
टूट चूकी थी
मिट चूकी थी
फिर भी बनी सबका सहारा
माझी जिसे कहते किनारा
Mindboggling, very very intense. Incredible.
Bahut hi sundar kavita hai, Rahul. Very touching. Very profound.
simply touching rahul ji.
आपकी इस रचना में जाने अनजाने जो दॄष्टान्त उभर कर आये हैं, गहरा दर्शन दर्शाते हैं.वक्त की शिलाओं पर प्रयासों के प्रहार क्या संरचना करते हैं और संजीवित सपनों का क्या परिणाम होता है बड़ी खूबसूरती से उभर कर आता है. रचना को पढ़ते पढ़ते कुछ पंक्तियां सहसा याद आ गईं:-
यादों की बालू कर गीली
नयनों के गंगाजल से
बना लिया था एक घरौंदा
कुछ हट कर बीते कल से
द्वार द्वार पर शंख जड़े थे,
जड़ी सीपियीं आँगन में
लेकिन तूफ़ानों का क्या है
निभा गये फिर से दुश्मनी.
आपकी लेखनी नित नये सुमन खिलाती रहे.
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