Monday, March 10, 2008

मृगतृष्णा

वो एक पत्थर
जिस पर आँखें गड़ी थी
जिससे हमारी उम्मीदें जुड़ी थी
जैसे का तैसा बेजान पड़ा था
जैसा किसी कारीगर ने गढ़ा था

रुकते थे सब
कोई ठहरता नहीं  था
जैसा था सोचा
ये तो वैसा नही था
था मील का पत्थर
ये तो गंतव्य नहीं था

चाँद से भी ऐसे ही उम्मीदें जुड़ी थी
चाँद पर भी ऐसे ही आंखे गड़ी थी

आज मात्र एक मील का पत्थर
तिरस्कृत सा पड़ा है पथ पर

सिएटल,
10 मार्च 2008
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Glossary
मृगतृष्णा = mirage
गंतव्य = destination
उम्मीदें = hopes
गढ़ा = shaped
मात्र = only
तिरस्कृत = neglected, rejected
पथ = path

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2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

सुन्दर रचना है।

Anonymous said...

bahut sundar