वो एक पत्थर
जिस पर आँखें गड़ी थी
जिससे हमारी उम्मीदें जुड़ी थी
जैसे का तैसा बेजान पड़ा था
जैसा किसी कारीगर ने गढ़ा था
रुकते थे सब
कोई ठहरता नहीं था
जैसा था सोचा
ये तो वैसा नही था
था मील का पत्थर
ये तो गंतव्य नहीं था
चाँद से भी ऐसे ही उम्मीदें जुड़ी थी
चाँद पर भी ऐसे ही आंखे गड़ी थी
आज मात्र एक मील का पत्थर
तिरस्कृत सा पड़ा है पथ पर
सिएटल,
10 मार्च 2008
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Glossary
मृगतृष्णा = mirage
गंतव्य = destination
उम्मीदें = hopes
गढ़ा = shaped
मात्र = only
तिरस्कृत = neglected, rejected
पथ = path
Monday, March 10, 2008
मृगतृष्णा
Posted by Rahul Upadhyaya at 12:23 PM
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2 comments:
सुन्दर रचना है।
bahut sundar
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