अहसास होता है जिसका हरदम
हर वक़्त जिसका साया है
क्यू न अब तक मुझे
वो कहीं मिल पाया है
वेद, पुराण, बुद्ध और ईसा
सब ने यहीं बताया है
जिसे मैं छू पाता नहीं
उसे मैंने ही कहीं छुपाया है
न जाने किस भूल को
हम भूल बैठे हैं
हज़ारों पेगम्बरों के बाद भी
याद नहीं कुछ आया है
गोया याद नहीं है कुछ भी
पर उसकी याद ने बहुत सताया है
यही मुझे गिला है उससे
क्यू न दीवाना मुझे बनाया है
जब तक ये होश है बाकी
जब तक मेरा सरमाया है
तब तक चलेगा ये सफ़र
जीते जी कौन इसे तय कर पाया है
Friday, March 28, 2008
अहसास
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