लिखी कविता मिली बधाई
कवि के चेहरे पर मुस्कान आई
जलते थे घर, बिलखते थे लोग
कवि ने उसमें दिया ये योग
बैठ के ज्वलंत एक कविता बनाई
लिखी कविता मिली बधाई
कवि के चेहरे पर मुस्कान आई
ताज के बाहर भूखी थी बच्ची
ताज के अंदर कविता थी अच्छी
मिल-जुल के कवियों ने दावत उड़ाई
लिखी कविता मिली बधाई
कवि के चेहरे पर मुस्कान आई
बुरा है शासन, बुरे हैं नेता
कहते थे लेकिन, कवि निकले अभिनेता
शासकीय इनाम के लिए झोली फ़ैलाई
लिखी कविता मिली बधाई
कवि के चेहरे पर मुस्कान आई
ग़म हो, खुशी हो या हो कवि देता दुहाई
पाठक हो, श्रोता हो, सब बस देते बधाई
कवि की बात कोई अमल में न लाई
लिखी कविता मिली बधाई
कवि के चेहरे पर मुस्कान आई
सिएटल,
4 मार्च 2008
Tuesday, March 4, 2008
बधाई
Posted by Rahul Upadhyaya at 5:34 PM
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Labels: 24 वर्ष का लेखा-जोखा, bio, world of poetry
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1 comments:
जलते थे घर, बिलखते थे लोग
कवि ने उसमें दिया ये योग
बैठ के ज्वलंत एक कविता बनाई
लिखी कविता मिली बधाई
कवि के चेहरे पर मुस्कान आई
achchha katax kiya hai.
badhayee...
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