Wednesday, May 29, 2013

फ़िक्सिंग को फ़िक्स करो

आज नहीं, कल नहीं
साल-दो-साल से ये रोग नहीं


दुनिया में कोई नहीं
जिसे हुआ लोभ नहीं


लोगों की बात छोड़िए
हम भी तो निर्दोष नहीं


बेटा हो या बेटी हो
स्कूल में एडमिशन के लिए
डोनेशन देते वक्त
होता हमें क्षोभ नहीं


चाचा हो या मामा हो
किसी की भी सिफ़ारिश से
ट्रेन में हमें बर्थ मिले
तो करते हम विरोध नहीं


यहाँ तक कि
खुद की ही शादी में
लेन-देन के रिवाज़ का
किया प्रतिरोध नहीं


मगर फिर भी
नारे हम लगाएंगे
दुनिया को जताएंगे
सच पे चले हैं हम
दूध के धुले हैं हम


फ़िक्सिंग को फ़िक्स करो
स्पॉट को क्लीन करो
दुनिया की तमाम चोरी-चकारी
एक झटके में विलीन करो


29 मई 2013
सिएटल ।

513-341-6798

Friday, May 24, 2013

तब और अब

पहले बीट वो होती थी
जिसे कबूतर किया करते थे
आजकल बीट वो है
जिसपे बराती नाचा करते हैं


पहले ट्वीट का मतलब होता था
चिड़िया डाल पर चहक रही है
और आजकल ट्वीट का मतलब है
प्रियंका मॉल में मटक रही है


पहले फोन होता था फोन करने के लिए
आजकल फोन होता है यू-ट्यूब देखने के लिए


पहले नेट वो होता था
जिसमें शेर फ़ंस जाता था
और चूहा उसे बचाता था
आजकल नेट वो है
जिसमें माऊस हमें फ़ंसाता है
और बचाने वाला कोई नहीं!


24 मई 2013
सिएटल ।
513-341-6798

Monday, May 20, 2013

Theory of Evolution

अब सब घरों से एंटीने उतर चुके हैं
कूप-मण्डूक के लिए कुँआ ही ब्रह्माण्ड है
और अब हमारे लिए हमारी हथेली में ही ब्रह्माण्ड है

सोचता हूँ
डार्विन की
थ्योरी ऑफ़ ईवाल्यूशन में
विश्वास करूँ या नहीं?

20 मई 2013
सिएटल । 513-341-6798

मेरा सुख-दु:ख

कल एक सौ सात था
तो दिल को करार था


आज एक सौ छत्तीस है
तो दिल ग़मगीन है


आँकड़ें भी अजीब हैं
आँकते आँकते
हमें ही
कर देते
तब्दील है


मेरा ही खून है
और मुझसे करता नहीं बात है
सुई की नोक से
कागज़ की पत्ती पर उतर कर
एल-सी-डी स्क्रीन को कह देता अपनी बात है


और मैं भी बेवकूफ़ हूँ
कि अपने ही सुख-दु:ख का
ख़ुद को नहीं अहसास है
जो खून कहे
उसी को
अपने सुख-दु:ख का
मान लेता मापदण्ड हूँ


20 मई 2013
सिएटल । 513-341-6798

Friday, May 17, 2013

जहाँ इन्द्रधनुष होता है

जहाँ इन्द्रधनुष होता है
वहाँ कुछ नहीं होता है


सिर्फ़ एक दॄष्टिकोण है
जिससे
पानी की बूंदों में
रोशनी का खेल
परिलक्षित
होता है


इसीलिए कहता हूँ
जहाँ हो
वहीं रहो
वरना
पास जाओगे
तो
भीगोगे
और ये रमणीक दृश्य भी खो दोगे


ये दुनिया हसीं
ये मधुबन भला
फिर क्यूँ हम दौड़ें
वैकुण्ठ को भला?


17 मई 2013
सिएटल । 513-341-6798

पहेली 39

एक करे है कूहू-कूहू
एक से करें हम कुक

एक है कोमल भाव की
एक से मिटे है भूख

दोनों में है अंतर बहुत
लेकिन सामंजस्य भी है खूब

एक का नाम है लिख दिया
दूजा आप लें बूझ

दूसरे का नाम न बतलाऊँगा
कोय लाख दागे बंदूक

इस पहेली को हल करने में कठिनाई हो तो मेरी अन्य पहेलियाँ भी देख लें. शायद कुछ मदद हो जाए.

Wednesday, May 15, 2013

इंसान की हार

आज जबकि सारी प्रार्थनाएँ स्वीकार हो चुकी हैं
लगता है कि इंसान की ही हार हो गई है


न चींटियाँ हैं
न मच्छर हैं
न साँप हैं
न बिच्छू हैं


न शेर हैं
न चीते हैं
न हाथी हैं
न भालू हैं


जिधर देखो
उधर
इंसानों की बस्ती है


और तो और
इंसान भी
अब इंसानों से तंग आकर
इंसानों से दूर
झील की ओर
या
पहाड़ों की ओर
मुँह करने वाले
घर बनाने में ही
सुख पाने लगा है


हाँ
यदा-कदा
नई पीड़ी को
चिड़ियाघर में
रंग-बिरंगी तितलियाँ
दिखा लाता है
और
घर की चार-दीवारी में
फ़्लैट स्क्रीन पर
नेशनल जियोग्राफ़ी के
हाई-डेफ़िनिशन कैमरे से
सेरंगेटि के जानवरों से
परिचय करा देता है


इंसान को अब
इंसान  भी
दरिंदे नज़र आने लगे हैं


जेलें भरने लगी हैं
दीवारें बढ़ने लगी हैं
सीमाएँ खींचने लगी हैं
फ़ेंस घिरने लगी हैं
पर्दे गिरने लगे हैं


सूरज छोड़
इंसान को
एडिसन की रोशनी भाने लगी है


न गौरैया हैं
न तोते हैं
न मोर हैं
न कोयल हैं


आज जबकि सारी प्रार्थनाएँ स्वीकार हो चुकी हैं
लगता है कि इंसान की ही हार हो गई है


15 मई 2013
सिएटल ।
513-341-6798
 

Sunday, May 12, 2013

मैं अपनी माँ से दूर

मैं अपनी माँ से दूर अमेरिका में रहता हूँ
बहुत खुश हूँ यहाँ मैं उससे कहता हूँ

हर हफ़्ते
मैं उसका हाल पूछता हूँ
और अपना हाल सुनाता हूँ

सुनो माँ,
कुछ दिन पहले
हम ग्राँड केन्यन गए थे
कुछ दिन बाद
हम विक्टोरिया-वेन्कूवर जाएगें
दिसम्बर में हम केन्कून गए थे
और जून में माउंट रेनियर जाने का विचार है

देखो न माँ,
ये कितना बड़ा देश है
और यहाँ देखने को कितना कुछ है
चाहे दूर हो या पास
गाड़ी उठाई और पहुँच गए
फोन घुमाया
कम्प्यूटर का बटन दबाया
और प्लेन का टिकट, होटल आदि
सब मिनटों में तैयार है

तुम आओगी न माँ
तो मैं तुम्हे भी सब दिखलाऊँगा

लेकिन
यह सच नहीं बता पाता हूँ कि
20 मील की दूरी पर रहने वालो से
मैं तुम्हें नहीं मिला पाऊँगा
क्यूंकि कहने को तो हैं मेरे दोस्त
लेकिन मैं खुद उनसे कभी-कभार ही मिल पाता हूँ

माँ खुश है कि
मैं यहाँ मंदिर भी जाता हूँ
लेकिन
मैं यह सच कहने का साहस नहीं जुटा पाता हूँ
कि मैं वहाँ पूजा नहीं
सिर्फ़ पेट-पूजा ही कर पाता हूँ

बार बार उसे जताता हूँ कि
मेरे पास एक बड़ा घर है
यार्ड है
लाँन में हरी-हरी घास है
न चिंता है
न फ़िक्र है
हर चीज मेरे पास है
लेकिन
सच नहीं बता पाता हूँ कि
मुझे किसी न किसी कमी का
हर वक्त रहता अहसास है

न काम की है दिक्कत
न ट्रैफ़िक की है झिकझिक
लेकिन हर रात
एक नए कल की
आशंका से घिर जाता हूँ
आधी रात को नींद खुलने पर
घबरा के बैठ जाता हूँ

मैं लिखता हूँ कविताएँ
लोगो को सुनाता हूँ
लेकिन
मैं यह कविता
अपनी माँ को ही नहीं सुना पाता हूँ

लोग हँसते हैं
मैं रोता हूँ

मैं अपनी माँ से दूर अमेरिका में रहता हूँ
बहुत खुश हूँ यहाँ मैं उससे कहता हूँ

Sunday, May 5, 2013

न तुम हमें जानो

न तुम हमें जानो
न हम तुम्हें जानें
मगर लगता है कुछ ऐसा
मेरा दुश्मन मिल गया

ये आरोप सच या झूठ है?
किसे खोजने की भूख है?
सुनाने लगे हैं तुम्हें नर्क की सज़ा
जज बन गये हैं सब बदगुमां

देशभक्ति ओड़ के हम
चले लाज छोड़ के हम
कहने लगे हैं तुम्हें ना जाने क्या
चुन-चुन के देते हैं तुम्हें गालियां

(मजरूह सुल्तानपुरी से क्षमायाचना सहित)
5 मई 2013
सिएटल । 513-341-6798

Saturday, May 4, 2013

खुशी

खुशी का कोई रंग नहीं
खुशी का कोई रूप नहीं
न शक्ल है
न वक़्त है
बस यकबयक होती व्यक्त है

बुरा हो ग्रीटिंग कार्ड्स का
रंग बिरंगे उपहार का
जिनमें
खुशी के रंग
हरे, पीले, लाल ही होते हैं
झुग्गी झोपड़ियों में भी
खुशी हो सकती है
इससे साफ़ ईंकार करते हैं

हो स्विस के पर्वत
या पहलगाम के फूल
उन तक ही नहीं सीमित है
उल्लास का नूर

खुशी
एक खुशबू है
खुशबू की याद है
जो क़ैद में भी किसी को
कर देती आज़ाद है

4 मई 2013
सिएटल । 513-341-6798

Wednesday, May 1, 2013

सृष्टि का निर्माण

कल सारे शहर को छोड़ मेरे घर बर्फ़ीली प्रभात हुई
और कुछ अरसा पहले लिखी कविता याद मुझे अकस्मात हुई
 
ग्लोबल वार्मिंग के लिए जो हमें देते हैं दोष
उनके प्रति दर्शित कराती है ये मेरा आक्रोश
 
सृष्टि का निर्माण सुनो bug-free नहीं है
तभी तो निर्माता को मिली degree नहीं है

कहीं है समंदर तो कहीं पर है जंगल
कहीं है बरफ़ तो कहीं है मरुस्थल
जहाँ एक भी पेड़ की inventory नहीं है
सृष्टि का निर्माण …

करता है क्या कुछ पता नहीं है
चाहता है क्या वो भी पता नहीं है
उसके ठौर-ठिकाने की directory नहीं है
सृष्टि का निर्माण …

कभी सतयुग बनाता है तो कभी कलयुग बनाता
खुद ही बचाता है और खुद ही सताता
consistent performance की history नहीं है
सृष्टि का निर्माण …

कराता है गड़बड़ और फिर भेजता है अवतार
मानो हो जैसे ये कांग्रेस या बुश की सरकार
जिसमें moral conscious नाम की ministry नहीं है
सृष्टि का निर्माण …

नये version में बंदर आदमी बन गए हैं
साथ में उल्लू के भी कुछ गुण आ गए हैं
upgrade की progress खास satisfactory नहीं है
सृष्टि का निर्माण …

आज से दो हज़ार साल पहले उसने भेजा था 'बेटा'
अगली release की प्रतीक्षा में अभी तक ज़माना है बैठा
लगता है subject matter पर उसकी mastery नहीं है
सृष्टि का निर्माण …

सुना है उसके infinite हैं powers
उसके ही इशारे से खिलते हैं flowers
पर मेरे दर्द की दवा की dispensary नहीं है
सृष्टि का निर्माण …

जो होना चाहिए था वही तो हो रहा है
जो विधाता ने ठानी थी वही तो हो रहा है
global warming की भी जिम्मेदार industry नहीं है
सृष्टि का निर्माण …

धरती पर प्रलय तो आएगा एक दिन
सूरज भी भस्म हो जाएगा एक दिन
प्रकाश की ये perpetual battery नहीं है

सृष्टि का निर्माण …

हम आए कहाँ से हमें जाना कहाँ है?
bug ने भूलाया हमें सब कुछ यहाँ है
सीधी सी बात है कोई mystery नहीं है
सृष्टि का निर्माण …

सिएटल,
21 अप्रैल 2008
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Glossary:
सृष्टि = nature, world
निर्माण = construction
निर्माता = creator
Bug-free = with no errors
Degree = an honorary recognition of achievement.
मरुस्थल = desert
बेटा = 1. son 2. A beta version is the first version released outside the organization or community that develops the software, for the purpose of evaluation or real-world black/grey-box testing.
Inventory = a catalog
ठौर-ठिकाने = wherabouts
प्रलय = apocalypse, any universal or widespread destruction or disaster