आज जबकि सारी प्रार्थनाएँ स्वीकार हो चुकी हैं
लगता है कि इंसान की ही हार हो गई है
न चींटियाँ हैं
न मच्छर हैं
न साँप हैं
न बिच्छू हैं
न शेर हैं
न चीते हैं
न हाथी हैं
न भालू हैं
जिधर देखो
उधर
इंसानों की बस्ती है
और तो और
इंसान भी
अब इंसानों से तंग आकर
इंसानों से दूर
झील की ओर
या
पहाड़ों की ओर
मुँह करने वाले
घर बनाने में ही
सुख पाने लगा है
हाँ
यदा-कदा
नई पीड़ी को
चिड़ियाघर में
रंग-बिरंगी तितलियाँ
दिखा लाता है
और
घर की चार-दीवारी में
फ़्लैट स्क्रीन पर
नेशनल जियोग्राफ़ी के
हाई-डेफ़िनिशन कैमरे से
सेरंगेटि के जानवरों से
परिचय करा देता है
इंसान को अब
इंसान भी
दरिंदे नज़र आने लगे हैं
जेलें भरने लगी हैं
दीवारें बढ़ने लगी हैं
सीमाएँ खींचने लगी हैं
फ़ेंस घिरने लगी हैं
पर्दे गिरने लगे हैं
सूरज छोड़
इंसान को
एडिसन की रोशनी भाने लगी है
न गौरैया हैं
न तोते हैं
न मोर हैं
न कोयल हैं
आज जबकि सारी प्रार्थनाएँ स्वीकार हो चुकी हैं
लगता है कि इंसान की ही हार हो गई है
15 मई 2013
सिएटल । 513-341-6798
लगता है कि इंसान की ही हार हो गई है
न चींटियाँ हैं
न मच्छर हैं
न साँप हैं
न बिच्छू हैं
न शेर हैं
न चीते हैं
न हाथी हैं
न भालू हैं
जिधर देखो
उधर
इंसानों की बस्ती है
और तो और
इंसान भी
अब इंसानों से तंग आकर
इंसानों से दूर
झील की ओर
या
पहाड़ों की ओर
मुँह करने वाले
घर बनाने में ही
सुख पाने लगा है
हाँ
यदा-कदा
नई पीड़ी को
चिड़ियाघर में
रंग-बिरंगी तितलियाँ
दिखा लाता है
और
घर की चार-दीवारी में
फ़्लैट स्क्रीन पर
नेशनल जियोग्राफ़ी के
हाई-डेफ़िनिशन कैमरे से
सेरंगेटि के जानवरों से
परिचय करा देता है
इंसान को अब
इंसान भी
दरिंदे नज़र आने लगे हैं
जेलें भरने लगी हैं
दीवारें बढ़ने लगी हैं
सीमाएँ खींचने लगी हैं
फ़ेंस घिरने लगी हैं
पर्दे गिरने लगे हैं
सूरज छोड़
इंसान को
एडिसन की रोशनी भाने लगी है
न गौरैया हैं
न तोते हैं
न मोर हैं
न कोयल हैं
आज जबकि सारी प्रार्थनाएँ स्वीकार हो चुकी हैं
लगता है कि इंसान की ही हार हो गई है
15 मई 2013
सिएटल । 513-341-6798
6 comments:
बेहद निराशाजनक है वर्तमान, भविष्य क्या होगा!
Artificial चीज़ें और चीज़ों की तस्वीरें ही हमारा सच बन गई हैं। एक दूसरे का सच्चा रूप - जिसमें कुछ अच्छाइयाँ और कुछ कमज़ोरियाँ होती हैं - हमें स्वीकार नहीं होता। आपकी बात सही है राहुलजी कि इसमें इंसान की हार ही है।
King Midas की कहानी थी कि उन्होंने वरदान मांगा कि वह जिस भी चीज़ को छू लें वह सोना हो जाए। जब प्रार्थना स्वीकार हो गई तो धीरे -धीरे हर फूल, हर पेड़, उनका खाना, पीने का पानी, और उनकी प्रिय बेटी भी सोने की बन गई। तब उन्हें एहसास हुआ कि मनचाहा वरदान पाना ही उनकी हार का कारण है। आज इंसान के साथ भी कुछ यही हो रहा है - आपने कविता में यह ठीक कहा है।
कविता में - गौरेया, मोर, तोते, और कोयल - सब बड़े प्यारे-प्यारे से नाम याद दिलाए हैं आपने! :)
बहुत अच्छा
बहुत अच्छा
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