Sunday, May 5, 2013

न तुम हमें जानो

न तुम हमें जानो
न हम तुम्हें जानें
मगर लगता है कुछ ऐसा
मेरा दुश्मन मिल गया

ये आरोप सच या झूठ है?
किसे खोजने की भूख है?
सुनाने लगे हैं तुम्हें नर्क की सज़ा
जज बन गये हैं सब बदगुमां

देशभक्ति ओड़ के हम
चले लाज छोड़ के हम
कहने लगे हैं तुम्हें ना जाने क्या
चुन-चुन के देते हैं तुम्हें गालियां

(मजरूह सुल्तानपुरी से क्षमायाचना सहित)
5 मई 2013
सिएटल । 513-341-6798

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1 comments:

Anonymous said...

नफ़रत की आग, नफरत करने वाले को पहले जलाती है। उनसे कहिए: "नफ़रत की लाठी तोड़ो, लालच का ख़ंजर फेंको, ज़िद्द के पीछे मत दौड़ो, तुम प्रेम के पँछी हो, देश प्रेमियों, आपस में प्रेम करो"