कल एक सौ सात था
तो दिल को करार था
आज एक सौ छत्तीस है
तो दिल ग़मगीन है
आँकड़ें भी अजीब हैं
आँकते आँकते
हमें ही
कर देते
तब्दील है
मेरा ही खून है
और मुझसे करता नहीं बात है
सुई की नोक से
कागज़ की पत्ती पर उतर कर
एल-सी-डी स्क्रीन को कह देता अपनी बात है
और मैं भी बेवकूफ़ हूँ
कि अपने ही सुख-दु:ख का
ख़ुद को नहीं अहसास है
जो खून कहे
उसी को
अपने सुख-दु:ख का
मान लेता मापदण्ड हूँ
20 मई 2013
सिएटल । 513-341-6798
तो दिल को करार था
आज एक सौ छत्तीस है
तो दिल ग़मगीन है
आँकड़ें भी अजीब हैं
आँकते आँकते
हमें ही
कर देते
तब्दील है
मेरा ही खून है
और मुझसे करता नहीं बात है
सुई की नोक से
कागज़ की पत्ती पर उतर कर
एल-सी-डी स्क्रीन को कह देता अपनी बात है
और मैं भी बेवकूफ़ हूँ
कि अपने ही सुख-दु:ख का
ख़ुद को नहीं अहसास है
जो खून कहे
उसी को
अपने सुख-दु:ख का
मान लेता मापदण्ड हूँ
20 मई 2013
सिएटल । 513-341-6798
3 comments:
कविता funny भी है और serious भी। हंसी आयी इस observation से कि खून अपनी बात आपको नहीं, LCD स्क्रीन को कहता है। :) और उसकी बात ही सबके सुख-दुःख का मापदण्ड बन जाती है। :)
मगर please बात को seriously लीजिए। आपने सही कहा है की "कल एक सौ सात था तो दिल को करार था, आज एक सौ छत्तीस है तो दिल ग़मगीन है..." ख़याल रखना बहुत ज़रूरी है।
आँकड़ों से नाता, ख़ून से रिश्ता, काहे मन समझ न पाया़़ :)
"मेरा ही खून है
और मुझसे करता नहीं बात है...
एल-सी-डी स्क्रीन को कह देता अपनी बात है..."
सही कहा आपने! आजकल अपना ख़ून LCD screen से ज़्यादा बात करता है।
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