जहाँ इन्द्रधनुष होता है
वहाँ कुछ नहीं होता है
सिर्फ़ एक दॄष्टिकोण है
जिससे
पानी की बूंदों में
रोशनी का खेल
परिलक्षित
होता है
इसीलिए कहता हूँ
जहाँ हो
वहीं रहो
वरना
पास जाओगे
तो
भीगोगे
और ये रमणीक दृश्य भी खो दोगे
ये दुनिया हसीं
ये मधुबन भला
फिर क्यूँ हम दौड़ें
वैकुण्ठ को भला?
17 मई 2013
सिएटल । 513-341-6798
वहाँ कुछ नहीं होता है
सिर्फ़ एक दॄष्टिकोण है
जिससे
पानी की बूंदों में
रोशनी का खेल
परिलक्षित
होता है
इसीलिए कहता हूँ
जहाँ हो
वहीं रहो
वरना
पास जाओगे
तो
भीगोगे
और ये रमणीक दृश्य भी खो दोगे
ये दुनिया हसीं
ये मधुबन भला
फिर क्यूँ हम दौड़ें
वैकुण्ठ को भला?
17 मई 2013
सिएटल । 513-341-6798
2 comments:
"ये दुनिया हसीं
ये मधुबन भला
फिर क्यूँ हम दौड़ें
वैकुण्ठ को भला?"
सही बात है! हम उस चीज़ से आकर्षित होते हैं जो दूर है। उसे पाने की चाह में कई बार यह देख ही नहीं पाते कि हमारे आस-पास की दुनिया भी तो कितनी सुन्दर है।
"परिलक्षित" और "रमणीक" शब्द आपकी कविताओं में पहली बार आये हैं - अच्छे लगे!
VERY CORRECT... GRASS IS ALWAYS GREENER ON THE OTHERSIDE.
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