Friday, November 30, 2018

दोस्ती होती

दोस्ती होती
तो मिलते-जुलते
दुश्मनी होती
तो एक दूसरे की बुराई करते

मोहब्बत होती
तो छुप-छुप के मिलते
नफ़रत होती
तो कभी मिलने की क़सम खाते

तो फिर है क्या?

वही जो उससे है
तुमसे है

रिश्ता है भी
और नहीं भी

तुम हो भी
और नहीं भी

छलक जाती हो
कभी सूर्योदय में
तो कभी सूर्यास्त में
कभी धूप में
तो कभी बरसात में
कभी दीप में
तो कभी अंधकार में

30 नवम्बर 2018
सिएटल

Monday, November 19, 2018

जब मैं पैदा हुआ

जब मैं पैदा हुआ
चाँद कुछ यूँ दिख रहा था
और सूरज यूँ

अब दिक़्क़त ये कि
यह मंज़र फिर 
जाने कब होगा

तो क्या ताउम्र इंतज़ार करूँ 
जन्मदिन के जश्न का?

जहाँ चाह
वहाँ राह

अब हर साल दो जश्न होते हैं
एक दीप जलाकर
जब चाँद वैसा ही दिखता है
दूजा मोमबत्ती बुझाकर
जब सूरज वैसा ही दिखता है

देवोत्थानी एकादशी, संवत 2075
(मेरा जन्मदिन)
सैलाना

Saturday, November 17, 2018

एक घंटा, दो घंटा, दो घंटा क्या चार

एक घंटा, दो घंटा, दो घंटा क्या चार
राहुल संगत व्हाट्सैप की जितनी मिले, मिले कम यार

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब
पल में प्रलय होएगी, अभी सेल्फी ले-भेज

सुख में टैक्सटिंग सब करे, दुख में करे कोय
जो दुख में टैक्सटिंग करे, मुसीबत माथे होय

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे लैपटॉप
बिन वाई-फ़ाई भगवान के, कछु काम आय

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया कोय
ढाई वीडियो यू-ट्यूब का, फ़ॉरवर्ड करे सो पंडित होय

(तुलसी-कबीर से क्षमायाचना सहित)
17 नवम्बर 2018
सैलाना

Thursday, November 8, 2018

ख़ानाख़राबी यह नहीं कि खाना ख़राब है

ख़ानाख़राबी यह नहीं कि खाना ख़राब है
सच तो यह है कि ज़माना ख़राब है

'करोड़पति' में सवाल कम, जवाब ज़्यादा हैं
फिर भी अमित हैं कि आज भी लाजवाब हैं

हमारा-तुम्हारा क्या, हम-तुम तो जी लेंगे
दिक़्क़त उनकी है, जिनका अरबों का हिसाब है

चम्पा-चमेली-जूही-रातरानी, सब सुन्दर हैं
फूलों का राजा तो जनाब बस एक गुलाब है

छपे, छपे, राहुल को इससे क्या
छप के भी धूल खाती किताब है

राहुल उपाध्याय | 8 नवम्बर 2018 | सैलाना
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ख़ानाख़राबी = बर्बादी, दुर्भाग्य 

Wednesday, November 7, 2018

राम आए नहीं

राम आए नहीं 
और नगर प्रज्वलित हो उठा
बात रोशनी की थी
और माचिसें चल गई

एक धोबी की दुत्कार से
कभी जाता था परिवर्तन 
आज पटाखों के शोर में 
पूरी की पूरी क़ौम दब गई

योगी हैं, सो सोचा
योग का प्रयोग ये करेंगे
आशा के विपरीत 
फूट पड़ गई

गठबंधन तो है
पर धर्म और शासन का
बात बनने के बजाय
और बिगड़ गई

सबका साथ
सबका विकास
नारा लगाते-लगाते
पार्टी कहाँ भटक गई

राहुल उपाध्याय | 7 नवम्बर 2018 | सैलाना

Sunday, October 28, 2018

रोम-रोम में उसका अहसास है

थोड़ी हँसी, थोड़ा ख़याल 
यही इश्क़ का सामान है
इश्क़ का आसमान
सबका समान है

ईमोजी है
ईमोजी में गुलाब है
उससे और मैं क्या माँगू 
जो करती इतना प्यार है

चमन है, भोर है, पत्तियों पर ओस है
इससे ज़्यादा ख़ूबसूरत जन्नत क्या होगी
यह हक़ीक़त है
जन्नत तो फ़क़त एक बहलाव है

दुनिया की तमाम मुसीबतों में भी
चैन की नींद सोता हूँ मैं
दवा दारू दुआ
बस कारण उसका दुलार है

मोहब्बतों से लबालब भरे
समंदरों से ओतप्रोत हूँ मैं 
फिर हिज्र क्या, और वस्ल क्या
रोम-रोम में उसका अहसास है

28 अक्टूबर 2018
सैलाना
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हिज्र = बिछड़ना 
वस्ल = मिलना