Friday, December 28, 2012

दु:ख का सुख

धमाके की खबर जैसे ही दिखी थी
तुरत-फ़ुरत एक कविता लिखी थी
लेकिन फिर भी देर हो चुकी थी
मुझसे पहले कुछ कवि लिख चुके थे

वाह-वाह सबकी लूट चुके थे
बहती गंगा में हाथ धो चुके थे
दु:ख को सुख में बदल चुके थे

दुनिया सारी उम्मीद पर टिकी है
कहीं न कहीं तो फिर विपदा गिरेगी
एक न एक दिन इसे भुनवा के रहूंगा
रेडियो, टी-वी सब ऑन रखूंगा
खबर मिलते ही टूट पड़ूंगा

विस्फोट होगा, धमाका होगा
मेरे लिए एक तमाशा होगा
मेरे अमर हो जाने का
सबसे अच्छा बहाना होगा

सबसे पहले मैं ही भेजूँगा
सब की बधाई पा के रहूंगा
देखो न कितने रंग भरे हैं
खून, चीथड़े, भेड़िये जैसे शब्द रचे हैं
कुछ से दहाड़ रहा है वीर-रस
तो कुछ से टपक रही है करुणा
अपनी संवेदनशीलता का
अपने काव्य शिल्प का
सबसे लोहा मनवा के रहूंगा
दु:ख को सुख में बदल कर रहूंगा

राष्ट्र-गान लिखा जा चुका है
वीर-रस का मौसम नहीं है
कोई युद्ध भी तो होता नहीं है
यही तो मौका बस एक बचा है
जो सारे राष्ट्र को अपील करेगा
बच्चा-बच्चा इसे 'फ़ील' करेगा
लिख कर इसे मैं अमर बनूंगा
दु:ख को सुख में बदल कर रहूंगा

Wednesday, December 26, 2012

मरे मिले करोड़

जितनी लम्बी चादर हो
उतने ही पांव पसार
यहीं पाठ पढ़ाया गया
जीवन में हर एक बार
पाई पाई गिन के
जब जब पाई पगार

दुनिया के हैं ढंग निराले
रीत इसकी बेजोड़
जब तक आदमी ज़िंदा रहे
रहे पांव सिकोड़
एक दिन जब जाने लगे
नाते सारे तोड़
बाजे-गाजे से विदा होए
लम्बी चादर ओड़

आत्मा जब तक साथ थी
लेते थे मुख मोड़
पार्थिव शरीर के सामने
खड़े हैं हाथ जोड़
यहीं दुनिया का दस्तूर है
यहीं इसका निचोड़
जीवन का कुछ मोल नहीं
मरे मिले करोड़

Tuesday, December 25, 2012

ऐ दुनिया, तेरे ग़मों का अहसानमंद हूँ मैं

ऐ दुनिया, तेरे ग़मों का अहसानमंद हूँ मैं
कि वस्ल के बाद भी उन्हें बेहद पसंद हूँ मैं


न होते ग़म, न वो ढूँढते खुशियाँ
ग़मों के कोट पे लगा पैबंद हूँ मैं


लेना सांस मैं छोड़ पाता नहीं हूँ
क्या करूँ वक़्त का बड़ा पाबंद हूँ मैं


न सपूत किशन, न राधा बहू है
मैं नंद सा नहीं, रहता सानंद हूँ मैं


लिखने को लिख सकता था शिवसेना पे मैं
पर मंदबुद्धि नहीं, बहुत अकलमंद हूँ मै.


25 दिसम्बर 2012
सिएटल । 513-341-6798

Monday, December 24, 2012

क्रिसमस

छुट्टीयों का मौसम है
त्योहार की तैयारी है
रोशन हैं इमारतें
जैसे जन्नत पधारी है

कड़ाके की ठंड है
और बादल भी भारी है
बावजूद इसके लोगों में जोश है
और बच्चे मार रहे किलकारी हैं

यहाँ तक कि पतझड़ की पत्तियां भी
लग रही सबको प्यारी हैं
दे रहे हैं वो भी दान
जो धन के पुजारी हैं

खुश हैं खरीदार
और व्यस्त व्यापारी हैं
खुशहाल हैं दोनों
जबकि दोनों ही उधारी हैं

भूल गई यीशु का जन्म
ये दुनिया संसारी है
भाग रही उसके पीछे
जिसे हो-हो-हो की बीमारी है

लाल सूट और सफ़ेद दाढ़ी
क्या शान से संवारी है
मिलता है वो माँल में
पक्का बाज़ारी है

बच्चे हैं उसके दीवाने
जैसे जादू की पिटारी है
झूम रहे हैं जम्हूरें वैसे
जैसे झूमता मदारी है

Friday, December 21, 2012

व्यक्ति पूजा

पार्टी नहीं जीती, जीते हैं मोदी
व्यक्ति पूजा की फ़सल फिर से गई है बो दी
लोकतंत्र की क़बर ऐसे गई है खोदी

गाँधी, नेहरु
माया, लालू
पूजते हैं कुछ
तो कुछ कहते इन्हें चालू
धीरे-धीरे आस्था इन सब में हमने खो दी
लोकतंत्र की क़बर ऐसे गई है खोदी

पिछले साठ साल से
पीढ़ी-दर-पीढ़ी
परिवार के लोग ही
चढ़े सत्ता की सीढ़ी
डाल दी कभी बेटी तो कभी बेटे की गोदी
लोकतंत्र की क़बर ऐसे गई है खोदी

Saturday, December 15, 2012

अपने-पराए

होता आतंकवादी तो
अभी तक बेड़ा कूच कर गया होता
और दूर-दराज का एक मुल्क
नेस्तनाबूद हो गया होता

उस मुल्क के धर्म की
उस मुल्क के आचार-विचार की
उस मुल्क के संस्कार की
कड़े शब्दों में भर्त्सना कर  दी गई होती

लेकिन
चूँकि
मामला अपने ही घर का है
सब बगले झाँक रहे हैं
और
सेकंड अमेंडमेंट की दुहाई दे रहे हैं

दूसरों को बुरा-भला कहना जितना आसान है
उतना ही मुश्किल है खुद को सुधारना

15 दिसम्बर 2012
सिएटल । 513-341-6798

Wednesday, December 12, 2012

श्रद्धांजली

रहते थे विदेश में
विदेश में पाया सम्मान

शंका नहीं है कौशल की
करता हूँ उन्हें प्रणाम
रच कर यह कविता - जिसमें उनका नाम

Tuesday, December 11, 2012

था, है और होगा

आप थे
तो
ख़्वाब थे
पुरज़ोर
मिज़ाज़ थे


अब आप नहीं है तो?
ख़्वाब सब सराब है
शराब सिर्फ़ आब है
गीत नि:शब्द साज़ हैं


आप के वियोग में
कहकशाँ भटक गए
आप ही के सोग में
दिन में तारें दिख गए


न नींद थी, न चैन था
न नींद है, न चैन है
न था तो मुझको चैन था
न है तो मैं बेचैन हूँ


माना कि वक्त सख्त है
सब्ज़ बाग ज़र्द है
पर हर वक्त का भी वक्त है
और होता एक दिन खत्म है


बाग जो उजड़ गए
पत्ते जो बिखर गए
दीप जो झुलस गए
एक दिन जलेगे वो
एक दिन मिलेंगे वो
एक दिन खिलेंगे वो


आएगा बसंत फिर
हो जाएगा बस अंत फिर
हमारे इस बिछोह का
योग के वियोग का
प्यार के विरोध का


11 दिसम्बर 2012
सिएटल । 513-341-6798

Saturday, December 1, 2012

लहू


हम और आप तो बस बात करते हैं पौरूष की
और उधर उनका सामना लहू से हर माह होता है

जब मिटते हैं सितारे टिमटिमाते हज़ारों
तब जाके कहीं पैदा आफ़ताब होता है

ये बनने की मिटने की हैं बातें कुछ इतनी अजीब
कि समझाए न समझ आए, बस खुद-ब-खुद अहसास होता है

जो करते हैं प्यार, वो होते हैं खास
उन्हीं के लिए तो लहूलुहान सूरज सुबह-ओ-शाम होता है

था उसमें भी कुछ, था मुझमें भी कुछ
वर्ना ऐसे ही थोड़े किसी का साथ किसी के साथ होता है

24 नवम्बर 2012
सिएटल । 513-341-6798

Monday, November 26, 2012

जन्म

जन्म के पीछे कामुक कृत्य है
यह एक सर्वविदित सत्य है

कभी झुठलाया गया
तो कभी नकारा गया
हज़ार बार हमसे ये सच छुपाया गया

कभी शिष्टता के नाते
तो कभी उम्र के लिहाज से
'अभी तो खेलने खाने की उम्र है
क्या करेंगे इसे जान के?'

सोच के मंद मुस्करा देते थे वो
रंगीन गुब्बारे से बहला देते थे वो

बढ़े हुए तो सत्य से पर्दे उठ गए
और बच्चों की तरह हम रुठ गए
जैसे एक सुहाना सपना टूट गया
और दुनिया से विश्वास उठ गया

ये मिट्टी है, मेरा घर नहीं
ये पत्थर है, कोई ईश्वर नहीं
ये देश है, मातृ-भूमि नहीं
ये ब्रह्मांड है, ब्रह्मा कहीं पर नहीं

एक बात समझ में आ गई
तो समझ बैठे खुद को ख़ुदा
घुस गए 'लैब' में
शांत करने अपनी क्षुदा

हर वस्तु की नाप तोल करे
न कर सके तो मखौल करे

वेदों को झुठलाते है हम
ईश्वर को नकारते है हम
तर्क से हर आस्था को मारते हैं हम

ईश्वर सामने आता नहीं
हमें कुछ समझाता नहीं

कभी शिष्टता के नाते
तो कभी उम्र के लिहाज से
'अभी तो खेलने खाने की उम्र है
क्या करेंगे इसे जान के?'

बादल गरज-बरस के छट जाते हैं
इंद्रधनुष के रंग बिखर जाते है

सिएटल,
26 नवम्बर
(मेरा जन्म दिन)

Friday, November 23, 2012

मेमोरी रिसेट


प्यार एक बार नहीं, कई बार हुआ है
लेकिन हर बार लगा जैसे पहली बार हुआ है

जन्म और पुनर्जन्म के बीच जो "मेमोरी रिसेट" बटन है
कुछ हद तक वही बटन शायद प्यार और पुनर्प्यार के बीच भी है
तभी तो
इंसान भूल जाता है
वफ़ा-जफ़ा के सारे किस्से
रूठने-मनाने के सारे प्रसंग
होंठों पे गीत
कानों में मिश्री
कदमों में पंख
और भूल जाता है कि
इन सब का 
एक दिन
होगा अंत

जो जन्मता है
वो मरता है
जो प्यारता है
वो ग़मता है

प्यार एक बार नहीं, कई बार हुआ है
लेकिन हर बार लगा जैसे पहली बार हुआ है

23 नवम्बर 2012
सिएटल । 513-341-6798
=====================
मेमोरी रिसेट = memory reset

Tuesday, November 20, 2012

दुआ है कि कोई दुआ करे मेरे लिए


दुआ है कि कोई दुआ करे मेरे लिए
मैं उनका बनूँ जो बने हैं मेरे लिए

खुद की दुआएं असर करती नहीं
खुद की खुदगर्जी बनी मुसीबत मेरे लिए

मैं फिरता रहा गली-गली मुसलसल
कोई मेरी गली आए बस मेरे लिए

सुने हैं सुरीले गीत सभाओं में मैंने
कोई तो हो जो गीत गाए मेरे लिए

मिलते हैं, हँसते हैं, खिलखिलाते हैं लोग
क्या इनमें से कभी कोई रोएगा मेरे लिए?

20 नवम्बर 2012
सिएटल । 513-341-6798

Monday, November 19, 2012

गलती दोहराने की गलती

जिनका हम सम्मान करते हैं
उनके प्रति आदर जताने के लिए
हम काम-धाम छोड़ के आराम करते हैं 


अव्वल तो कोई है ही नहीं जिसके पदचिन्हों पर चला जा सके
हाँ, स्वयंसेवकों के डर से भेड़चाल चलने को अवश्य तैयार रहते हैं


थे अच्छे या बुरे? है किसको पता
दिवंगत को सब आँख बंद करके प्रणाम करते हैं


राष्ट्रपिता, राज्यपिता, प्रांतपिता, धर्मपिता
न जाने क्या-क्या नाम दे कर, पिता के नाम को बदनाम करते हैं


ऐसा नहीं कि ऐसा पहले कभी हुआ नहीं
लेकिन गलती दोहराने की गलती क्यों बार-बार करते हैं?


19 नवम्बर 2012
सिएटल ।
513-341-6798

Thursday, November 15, 2012

तुम जहाँ खिलो वहाँ खुशहाली


तुम कितना रोई
तुम कितना सोई
तुम किसके ख़्वाब में
कितना खोई

इन सबका जवाब है
एक अलौकिक आभा में
जो छलक रही है
तुम्हारे कण-कण से
चम्मच हिलाते चूड़ी की खन-खन से
सीड़ियों से उतरते कदमों से
दुपट्टे के झिलमिलाते रंगों से
मोती से चमकते दाँतों से
सखियों की खुसफुसाती बातों से

तुम कहाँ रही
तुम कहाँ गई
तुम किसकी बाहों में
समा गई

ये बात नहीं है पूछने की
ये बात है बस समझने की

तुम एक नदी हो मदमाती
तुम एक कली हो मुस्काती
तुम जहाँ बहो वहाँ हरियाली
तुम जहाँ खिलो वहाँ खुशहाली

तुम किसी एक के साथ नहीं बंधती
तुम किसी एक की हो नहीं सकती

तुम एक नदी हो मदमाती
तुम एक कली हो मुस्काती
तुम जहाँ बहो वहाँ हरियाली
तुम जहाँ खिलो वहाँ खुशहाली ...

15 नवम्बर 2012
सिएटल । 513-341-6798

Tuesday, November 13, 2012

दीवाली की शुभकामनाएं

दीवाली की रात
हर घर आंगन 
दिया जले

उसने जो
घर आंगन दिया 
वो न जले


दिया जले
दिल न जले
यूंहीं ज़िन्दगानी चले


दीवाली की रात
सब से मिलो
चाहे बसे हो
दूर कई मीलों

शब्दों से उन्हे
आज सब दो
न जाने फिर
कब दो

दुआ दी
दुआ ली
यहीं है दीवाली

Saturday, November 10, 2012

प्यार क्या होता है?

मिलोगी कभी तो पूछूँगा मैं तुमसे
कि प्यार क्या होता है?


क्या प्यार वह होता है
जिसकी खातिर पेट्रेयस इस्तीफ़ा दे देता है?


या प्यार वह होता है
जो यश चोपड़ा की फिल्मों में होता है?


या प्यार वह होता है
जिसमें
चालीस साल की होने पर भी
एक औरत
एक बच्ची की तरह फूट-फूट कर रोती है
अल्हड़ की तरह हँसती है
एक युवती की तरह
कभी कनखियों से देखती है
तो कभी नज़रें झुका कर
अंगूठे से मिट्टी कुरेदती है?


या प्यार वह होता है
जिसमें
एक कवि
एन-आर-आई को छोड़
प्यार की परिभाषा खोजने लग जाता है?


मिलोगी कभी तो पूछूँगा मैं तुमसे ...

10 नवम्बर 2012
सिएटल ।
513-341-6798
=============
पेट्रेयस = Petraeus

खूबसूरत जज़बातों का अहसास

किसी की मूंगफली
किसी की चाट
किसी के खूबसूरत जज़बातों का अहसास


यही तो है जो
लेता है श्वास
रहता है साथ
मुझे तुमसे
देता है बांध


अहसासों का बांध
बांधता भी है
तो
यदा-कदा बहता भी है


बह के कभी
बन जाता है खार
बन जाता नहर
किसी वादी के कोने में जाता ठहर
ताकि
चावल उगें
फूल खिलें
किसी के सोए
अरमां जगें


किसी की मूंगफली
किसी की चाट
किसी के खूबसूरत जज़बातों का अहसास


यही तो है जो
लेता है श्वास ...


10 नवम्बर 2012
सिएटल ।
513-341-6798
==========
खार = न नदी, न नहर, इन दोनों से परे एक छोटा बहाव जो गाँव से हो कर गुज़रता है, और जिसमें बचपन में मैं खूब नहाया हूँ

Friday, November 9, 2012

भूनी हुई मूंगफ़लियाँ

आज दस्तानें पहनते ही शिमला की भूनी हुई मूंगफ़लियाँ याद आ गई
जो हम समर हिल से शिमला स्कूल जाते वक्त खाते जाते थे


समर हिल के एक टीले पर
एक बूढ़े के
झुर्रीदार हाथों से
गरमागरम मूंगफ़लियाँ खरीदी जाती थी
(पैसे तुम ही देती थी)
और सारे रास्ते खाई जाती थीं


न जाने छिलकों का क्या करते थे
शायद फ़ेंक ही देते होंगे
शाम को पैदल आते तो शायद वे बिखरे हुए मिल भी जाते
लेकिन लौटते वक्त तो
दौड़-भाग कर 5:25 की ट्रैन पकड़ ही लेते थे
वो भी बिना टिकट के
और फिर प्लेटफ़ार्म की दूसरी तरफ़ से उतर कर
पटरियाँ उलांघ कर गिडियन कॉटेज की ओर निकल जाते थे


अगले दिन भी छिलके कभी दिखे नहीं
या कहो कि देखे ही नहीं


जब साथ हो
और कहने को कोई बात हो
(एक नहीं, ढेर सारी बात हो)
तो कौन भला कचरे को देखता है?


9 नवम्बर 2012
सिएटल ।
513-341-6798

Sunday, November 4, 2012

सीमाओं का उल्लंघन

वो आते हैं
और आकर लौट जाते हैं
और हम सीमाओं में बंधे
यहीं के यहीं रह जाते हैं


न हम अयोध्या जा सकते हैं
न वो लंका में रह पाते हैं
न हम सीमाओं का उल्लंघन कर सकते हैं
न वो सीमाओं का उल्लंघन कर पाते हैं


माना कि ईश्वर की सत्ता है चारों तरफ़
लेकिन कुछ स्थान तो हैं जो अवश्य हैं भिन्न
तभी तो राम अयोध्या चले जाते हैं
और कृष्ण लौटकर फिर ब्रज नहीं आते हैं


कोई परमार्थ के प्रलोभन में फंसता है
तो कोइ कर्मार्थ के संयोजन में फंसता है


न हम सीमाओं का उल्लंघन कर सकते हैं
न वो सीमाओं का उल्लंघन कर पाते हैं


वो आते हैं
और आकर लौट जाते हैं
और हम सीमाओं में बंधे
यहीं के यहीं रह जाते हैं


4 नवम्बर 2012
सिएटल । 513-341-6798

Monday, October 29, 2012

मैं ईश्वर के बंदों से डरता हूँ


हर 'हेलोवीन' पे मैं दर पे कद्दू रखता हूँ

लेकिन क्रिसमस पे घर नहीं रोशन करता हूँ
क्यों?
क्योंकि मेरे देवता तुम्हारे देवता से अलग है
लेकिन हमारे भूत-प्रेत में न कोई अंतर है

सब क्रिसमस के पहले खरीददारी करते हैं
मैं क्रिसमस के बाद खरीददारी करता हूँ
क्यों?
क्योंकि सब औरों के लिए उपहार लेते हैं
मैं अपने लिए 'बारगेन' ढूँढता हूँ

सब 'मेरी क्रिसमस' लिखते हैं
मैं 'हेप्पी होलिडेज़' लिखता हूँ
क्यों?
क्योंकि सब ईश्वर पे भरोसा करते हैं
मैं ईश्वर के बंदों से डरता हूँ

========================
हेलोवीन = Halloween
बारगेन = Bargain
मेरी क्रिसमस = Merry Christmas
हेप्पी होलिडेज़ = Happy Holidays

Wednesday, October 24, 2012

भोजन भजन का

भोजन भजन का
और
यौवन जोगन का
बैरी है
देह की आग ने
भक्ति के मार्ग की
टांग
अक्सर तोड़ी है


कहने को तो
कहते हैं
कि इश्क भी पूजा है
लेकिन करने लगो
तो कहते हैं कि वहशी है


अब आप ही बताओ
कि बंदा करे तो क्या करे?
'गर पूजे तो पाखंडी
और न पूजे तो कहलाता अधर्मी है


हम-आप की बात होती
तो बात सम्हल भी जाती
लेकिन ये कौम-सम्प्रदाय की बातें
किसके सम्हाले सम्हली है?


चलो अच्छा ही हुआ
कि बच्चें हमारे नास्तिक निकले
वरना कौन उन्हें समझाता
कि क्या असली है और क्या नकली है?


24 अक्टूबर 2012
सिएटल ।
513-341-6798

Tuesday, October 23, 2012

मूर्ति पूजा


इन दिनों त्योहार का मौसम है. तो जाहिर है कि लोगबाग पूजा-पाठ के बारे में सोच रहे हैं. अमरीका में नई गृहस्थी जमाते वक्त फ़र्नीचर, टी-वी, अन्य आधुनिक उपकरणों का नम्बर पहले आता है. वो तो त्योहार के आसपास ध्यान आता है कि अरे लक्ष्मी-गणेश तो है ही नहीं. चलो लाला की दुकान से लेकर आते हैं. अब यहाँ हर चीज़ को लौटाने की सुविधा है सो लौटाने की आदत सी भी पड़ जाती है. दुकान में ज्यादा समय बर्बाद करने के बजाय पाँच-छ: पतलून ले आते हैं कि जो पसंद नहीं आई या फ़िट नहीं आई उसे 30 दिन के अंदर वापस कर देंगे.

इसी सुविधा और ग्राहक की आदत को देखते हुए शायद लाला जी की दुकान पर लिखा था कि भगवान वापस नहीं लिए जाएगे. बस उसी तख्ती को देख कर ये कविता बन गई.


बिक गया है जो
लुट गया है वो
तराना पुराना
हो गया है वो

पूजा जिनकी हो रही है आज
मंडप में जो कर रहे हैं राज
लाला की दुकान पर
बिक रहे थे वो
सुनार-कुम्हार के हाथों
पिट रहे थे वो

कौड़ियों के भाव
बिक जाते हैं जो
समृद्ध हमें करेंगे वो?
बिकना जिनके
मुकद्दर में हो
मोक्ष हमें दिलाएंगे वो?
पंडित के सुलाने से
सो जाते हैं जो
किस्मत हमारी जगाएंगे वो?
पलक झपकते ही
विसर्जित हो जाते हैं जो
भव सागर पार कराएंगे वो?

लालची का लोभ है
या प्रेमी का प्यार है
दुखियारे का दर्द है
या सतसंग का संस्कार है
शिल्पी का हुनर है
या भक्ति का चमत्कार है
दुनिया जिसे कहती हैं पत्थर
करती उसी का सत्कार है

आज एक और त्योहार है
लगा रिवाज़ों का बाज़ार है
हम भी उसमें जुट गए
जहाँ सबसे लम्बी कतार है

भरा हुआ भंडार है
सम्पदा जहाँ अपार है
गरीब से गरीब भी
वहाँ दे रहा उपहार है

बिक गया है जो
लुट गया है वो
तराना पुराना
हो गया है वो

Monday, October 22, 2012

ओबामा जीते या रामनी जीते, हमें क्या

ओबामा जीते या रामनी जीते, हमें क्या
ये मुल्क नहीं मिल्कियत हमारी
हम इन्हें समझे हम इन्हें जाने
ये नहीं अहमियत हमारी

तलाश-ए-दौलत आए थे हम
आजमाने किस्मत आए थे हम
आते हैं खयाल हर एक दिन
जाएंगे अपने घर एक दिन
ओबामा जीते या रामनी जीते, हमें क्या
बदलेगी नहीं नीयत हमारी
हम इन्हें समझे ...

ना तो है हम डेमोक्रेट
और नहीं है हम रिपब्लिकन
बन भी गये अगर सिटीज़न
बन न पाएंगे अमेरिकन
ओबामा जीते या रामनी जीते, हमें क्या
छुपेगी नहीं असलियत हमारी
हम इन्हें समझे ...

न डेमोक्रेट्स का प्लान
न रिपब्लिकन्स का वाँर
कर सकता है
हमारा उद्धार
ओबामा जीते या रामनी जीते, हमें क्या
पूछेगा नहीं कोई खैरियत हमारी
हम इन्हें समझे ...
हम जो भी हैं
अपने श्रम से हैं
हम जहाँ भी हैं
अपने दम से हैं
ओबामा जीते या रामनी जीते, हमें क्या
काम आयेगी बस काबिलियत हमारी     
हम इन्हें समझे ...

फूल तो है पर वो खुशबू नहीं
फल तो है पर वो स्वाद नहीं
हर तरह की आज़ादी है
फिर भी हम आबाद नहीं
ओबामा जीते या रामनी जीते, हमें क्या
यहाँ लगेगी नहीं तबियत हमारी
हम इन्हें समझे ...

Saturday, October 20, 2012

तुम्हारी यादें


तुमसे बेहतर हैं
तुम्हारी यादें
सच्चे-झूठे प्यार के वादें
रूठने-मनाने की अनगिनत बातें
वरना
आज
हम साथ होते
तो
बढ़ते वजन
और
घटते बालों 
के बीच
मोहब्बत
कब की खप चुकी होती 

तुम्हारी सांसें
जिसकी खुशबू मुझे नहला देती थी 
तुम्हारी आँखें
जो प्यार उड़ेला करती थी
तुम्हारी हँसी
जो निर्झर बहा करती थी
घर-गृहस्थी की दलदल में
कब की सूख चुकी होती

तुम होती तो
न यादें होती
न बातें होती
थकी-थकाई सी
रातें होती
सोते हम एक बिस्तर पर
पर दो तकियों के बीच
हज़ारों मील की
दूरी होती

20 अक्टूबर 2012
सिएटल । 513-341-6798

Friday, October 19, 2012

रियूनियन


गाँधी जी के देस में
रियूनियन के भेस में
पाँच-सितारा होटल में
छुरी-काँटें चलते हैं
लोग गले मिलते हैं
देश की दयनीय स्थिति पर
फिकरे कसा करते हैं

मध्यम वर्ग के
संभ्रांत परिवार के पूत
पढ़ते हैं
खटते हैं
मेहनत से आगे बढ़ते हैं
और फिर
न जाने किस कालकोठरी में
जाके खो जाते हैं

गाड़ी
बंगला
बीवी-बच्चों में ही
बंध के रह जाते हैं
और 
छुरी-काँटें चलाते-चलाते
देश की दयनीय स्थिति पर
फिकरे कसा करते हैं

19 अक्टूबर 2012
सिएटल । 513-341-6798

Thursday, October 18, 2012

पीले चमन में

पीले चमन में
काली सड़क पर
सरपट-सरपट
भागती है कार


पाँव के नीचे
पत्तों की आहट
सुने-सुनाएं
गुज़रा है युग


अब
कौन सुनेगा
और किसे सुनाएं?
इंसानों की
बस्ती में बसते हैं साए
(साए न होते
तो उनका नाम भी होता
उनका मुझसे
और मेरा उनसे
कुछ काम भी होता)


कल
एक ब्लोअर आएगा
और
इन्हें उड़ा ले जाएगा
कूड़े के डब्बे में
क़ैद कर जाएगा


कल
न पत्तें होंगे
न चमन होगा
बर्फ़ का एक
कफ़न होगा


और काली सड़क पर
सरपट-सरपट भागती रहेगी
मेरी कार


18 अक्टूबर 2012
सिएटल ।
513-341-6798



Sunday, October 14, 2012

विदेश में आए, वी-डेश हुए


विदेश में आए, वी-डेश हुए
सपने सारे यूँ डेंट हुए

सोचा था आ के खूब कमाएंगे हम
टेलेंट हैं जितने, कैश कराएंगे हम
बंधन-प्रतिबंध में कुछ यूँ फंसें
कि टेलेंट सारे लेटेंट हुए

आने की दिल में बड़ी चाह थी
कमाने की सूझी बस यही राह थी
माना कि फूलों संग काँटें भी होंगे
लेकिन ये क्या कि सारे बसंत बे-सेंट हुए

जीते हैं हम, लेकिन हैं हारे हुए
किस्मत से बदकिस्मती के मारे हुए
गाड़ी है, बंगला है, डॉलर भी है
लेकिन होने को औरों के सरवेंट हुए

14 अक्टूबर 2012
सिएटल । 513-341-6798
=========
वी-डेश = v- employee, the one who is hired as a contractor as opposed to a full time employee who gets full benefits
डेंट = dent
टेलेंट = talent
कैश = cash
लेटेंट = latent
बे-सेंट=without scent, without fragrance
सर्वेंट = servent

Friday, October 12, 2012

जया का जन्मदिन भी आता तो होगा


जया का जन्मदिन भी आता तो होगा
जश्न हो
खुशियाँ मने
जी में उसके भी आता तो होगा

लेकिन
दुनिया सदा चढ़ता सूरज ही पूजे
हैसियत देख के ही तौहफ़ा खरीदे
कामवाली को मिलते हैं पुराने कपड़ें
बॉस को मिलते हैं मिठाई के डब्बें

भरे को भरना पुराना रिवाज़ है
यही दुनिया है, यही समाज है

रामनवमी सदा मनती रही है
सीता के जन्म की कोई तिथि नहीं है

12 अक्टूबर 2012 । अमिताभ के 70वें जन्मदिन के जश्न के बाद
सिएटल । 513-341-6798
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जया = अमिताभ की पत्नी

Wednesday, October 10, 2012

सहरा ये दिल जब तुम्हारा हो गया

सहरा ये दिल जब तुम्हारा हुआ
रिश्ता और गहरा हमारा हुआ

रिश्ता तो है पर बे-नाम-ओ-शकल
सेहरा किसी का कब सहारा हुआ

शहरों की सहर के हैं रंग अलग
लाल-पीली बत्तियों का नज़ारा हुआ

सिरा-ए-सिराज-ए-ख़ुर्शीद मिलता नहीं
कब और कैसे वो अंगारा हुआ

सराबों के पीछे बहुत भागा हूँ मैं
शराब खराब है पर वही चारा हुआ

10 अक्टूबर 2012
सिएटल । 513-341-6798
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सहरा = desert
सेहरा = wreath worn by a groom
सहर = dawn
सिरा = beginning
सिराज = lamp
ख़ुर्शीद = sun
सराबों = mirages
चारा = remedy

Sunday, October 7, 2012

मानो तो एक नींव वही है


कब कौन क्या लिखता है
इसका सिरा कहाँ मिलता है

कब क्या कहाँ खिलता है
इसका सिरा कहाँ मिलता है

कब कौन कहाँ टिकता है
इसका सिरा कहाँ मिलता है

कब कौन किसपे मरता है
इसका सिरा कहाँ मिलता है

सिरा नहीं है, पर गिला नहीं है
जीवन जीने की कला यही है
न मानो तो एक पत्थर
मानो तो एक नींव वही है

7 अक्टूबर 2012
सिएटल । 513-341-6798
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सिरा=आरंभ

Friday, September 28, 2012

बारीश की बूंदें


मुझे आज भी याद है
शिमला के
सिसिल होटल के
सामने का गज़ीबो
जिसमें
स्कूल से आते वक्त
बारीश में भीगते हुए
हम घुसे थे दोनों

तुम्हारी मांग में 
कुछ बूंदें
अटक गई थी

मैंने चाहा था छूना
लेकिन उन्हें छुआ नहीं था

मुझे आज भी याद है
उन बूंदों की चमक
उस मांग की महक
उन बालों का तनाव
ठंड का बढ़ना
सांसों का चलना
और
मेरा-तुम्हारा कुछ न कहना

हम चुप थे
लेकिन 
अनभिज्ञ नहीं थे

या यूँ कह लो
कि अनभिज्ञ नहीं थे
इसीलिये चुप रहें थे

उस दिन तो
हम छतरी ले जाना भूल गए थे
लेकिन उस दिन के बाद से
हमने भूल के भी कभी
छतरी नहीं ली

बारीश की बूंदों का
तन से मिलन का
मज़ा ही कुछ और है

मुझे आज भी याद है ...

28 सितम्बर 2012
सिएटल । 513-341-6798

Thursday, September 27, 2012

तुम बिन जाऊँ कहाँ

तुम बिन जाऊँ कहाँ
कि दुनिया में आके
गया नहीं
कभी कहीं
तुमको त्याग के ...


बढ़े जब दाम पेट्रोल के
लुट गई दुनिया
खाए जब धक्के बसों के
मिट गई खुशियाँ
तुम क्या जानो
कि भटकता फिरा
मैं किस-किस गली
तुमको त्याग के ...


देखो मुझे सर से कदम तक
थुलथुल माँस हूँ मैं
जाना हो दो कदम भी तो
जाता हांफ़ हूँ मैं
तुम क्या जानो
कि सिसकता रहा
मैं किस-किस घड़ी
तुमको त्याग के ...


रह भी सकूँगा मैं कैसे
हो के तुमसे जुदा
धूप, बरसात और 'स्नो' से
कैसे लड़ूँगा भला
आना होगा मुझे तेरी शरण
साथी मेरी
सूनी राह के


(मजरूह सुल्तानपुरी से क्षमायाचना सहित - वीडियो)
27 सितम्बर 2012
सिएटल ।
513-341-6798
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स्नो = snow

Tuesday, September 25, 2012

जीत हुई सीहॉक्स की?

जीत हुई सीहॉक्स की?
सब के सब थे अवाक
बार-बार थे कह रहें
रेफ़री करो बर्खास्त

रेफ़री करो बर्खास्त
एन-एफ़-एल का कर रहें सत्यानाश
तीन हफ़्ते में दे दिये
कई निर्णय गलत निर्विवाद

निर्णय गलत निर्विवाद?
उन लोगों का कोई नहीं उपचार
जिन्हें हर मुकाबले का नतीजा
चाहिये पहले से तैयार

पहले से तैयार
ओबामा भी नहीं इसके हैं अपवाद
लाख कोशिश कर के देख लीजिये
केलिफ़ोर्निया से हारेंगे नहीं जनाब

हारेंगे नहीं जनाब
उड़ रहा गुप्त मतदान का उपहास
कहने को है डेमोक्रेसी मगर
पनप रहा फ़ंडरैसिंग का बाज़ार

25 सितम्बर 2012
सिएटल । 513-341-6798
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सीहॉक्स = seahawks
एन-एफ़-एल = NFL
डेमोक्रेसी = democracy
फ़ंडरैसिंग = fundraising

Monday, September 24, 2012

ढलान ढलने की

(1)
जो ढलता है
वो बनता नहीं
मिटता है
अपना अस्तित्व खोकर
एक साँचे में जा सिमटता है

वो देखो
सूरज को देखो
ढलता है
तो डूबता है
शर्म से लाल होकर
पहाड़ के पीछे जा छुपता है

(2)
जो ढलता है
वो ही बनता है
बाकी सब तो
बिखरा-बिखरा सा रहता है

ढलो
किसी साँचे में
सजो
किसी के माथे पे

जो ढलता है
वो ही सजता है
बाकी सब तो
खदान में बिखरा पड़ा रहता है

(3)
जो ढला नहीं
वो बना नहीं

जो बना नहीं
वो मिटा नहीं

जो मिटा नहीं
वो जिया नहीं

24 सितम्बर 2012
सिएटल । 513-341-6798

Saturday, September 22, 2012

परसेंट के चक्कर


ये 14 परसेंट टैक्स देते हैं
बाकी देते हैं अधिक
कह-कह के परेशान हैं
रेडियों-टीवी के पंडित

परसेंट के चक्कर में मार खा रहें हैं रामनी
रिपब्लिकन परेशान हैं, क्यूँ चुना इन्हें नॉमनी?
एक परसेंट के पास है, बाकी के पास है नो-मनी
47 परसेंट निर्भर हैं, बाकी के हैं बस रामजी

भला हो उन मतदाताओं का
जो आँकड़ों में करते हैं यकीन
जब जनता के पास धन नहीं
तो कहाँ से आए इतने रईस?

वेकेशन पे लोग जाते हैं
कांसर्ट्स में कूल्हें मटकाते हैं
होटलों में खाना खाते हैं
वाईन के पेग चड़ाते हैं
आई-फोन की मांग बढ़ाते हैं
आई-पेड खरीदते जाते हैं
पानी की जगह कोक पीते हैं
स्टारबक्स सुड़कते जाते हैं

और कहने को
अर्थव्यवस्थ खराब है
जनता दुखी और लाचार है

22 सितम्बर 2012
सिएटल । 513-341-6798
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नॉमनी = nominee
वेकेशन = vacation
कांसर्ट्स = concerts
वाईन = wine
आई-फोन = iPhone
आई-पेड = iPad
स्टारबक्स = Starbucks

Monday, September 17, 2012

आए दिन इतने बर्थडे आने लगे हैं


आए दिन इतने बर्थडे आने लगे हैं
कि हैप्पी बर्थडे तक बोलने में कोफ़्त होने लगी है
दुनिया तो दुनिया,
ख़ुद की ही ज़िंदगी बेमतलब होने लगी है
जिसे देखो दुनिया खोजने में लगा है
कभी पेरिस तो कभी लंदन से
चमकती बत्तीसी
हर वॉल पे सुशोभित होने लगी है
अच्छा ही होता
जो न जुड़ता मैं उनसे
उनकी हर अपडेट से
दिल में खलल होने लगी है
उनकी उंगलियों पे
आज भी मैं नाचता हूँ यारो
जागते-सोते
अंगूठे में हरकत होने लगी है
वफ़ाएं-जफ़ाएं
थीं किताबों तक ही सीमित
अब एक-एक करके
वो सच होने लगी है
17 सितम्बर 2012
सिएटल । 513-341-6798
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हैप्पी बर्थडे = Happy Birthday
वॉल = wall (wall on facebook)
अपडेट = update (status update on facebook)

Sunday, September 16, 2012

एक पहेली

बिन आँखों के दास ने
देखें पके-पकाए फल
न लिए फल
न छोड़े फल
अब आप ही बताओ
कैसे वो हुआ सफल?


Thursday, September 13, 2012

क़हर

पहले भी बरसा था क़हर
अस्त-व्यस्त था सारा शहर
आज फ़िर बरसा है क़हर
अस्त-व्यस्त है सारा शहर

बदला किसी से लेने से
सज़ा किसी को देने से
मतलब नहीं निकलेगा
पत्थर नहीं पिघलेगा
जब तक है इधर और उधर
मेरा ज़हर तेरा ज़हर

बुरा है कौन, भला है कौन
सच की राह पर चला है कौन
मुक़म्मल नहीं है कोई भी
महफ़ूज़ नहीं है कोई भी
चाहे लगा हो नगर नगर
पहरा कड़ा आठों पहर

न कोई समझा है न समझेगा
व्यर्थ तर्क वितर्क में उलझेगा
झगड़ा नहीं एक दल का है
मसला नहीं आजकल का है
सदियां गई हैं गुज़र
हुई नहीं अभी तक सहर

नज़र जाती है जिधर
आँख जाती है सिहर
जो जितना ज्यादा शूर है
वो उतना ज्यादा क्रूर है
ताज है जिनके सर पर
ढाते हैं वो भी क़हर

आशा की किरण तब फूटेंगी
सदियों की नींद तब टूटेंगी
ताज़ा हवा फिर आएगी
दीवारे जब गिर जाएंगी
होगा जब घर एक घर
न तेरा घर न मेरा घर

Sunday, September 9, 2012

बकने दो जिनको है बकना

चीख-चीख के कर रहें प्रतिद्वंदी वार पे वार
काम-धाम करते नहीं, कर रहें प्रचार
कर रहें प्रचार, कर के डॉलर की बौछार
जनता दर-दर ठोकर खाए, पाए न रोज़गार
और इनको बस लफ़्फ़ाजी सूझे, डायलॉग मारे हज़ार
डायलॉग मारे हज़ार, कहें कूल-कूल है बाहर से, अंदर से अंगार
ओबामा ही इकलौता आदमी, जो करेगा बेड़ा पार

2008 में जब थे पिछले चुनाव
2006 से ही लगे थे कैम्पैनिंग में बराक
सिनेटर थे बस नाम के, सिनेट से न था सरोकार
किताबें लिखना-भाषण देना, यही था इनका कारोबार

जिस महिला से इनकी हुई थी तू-तू मैं-मैं अनेक
जिस महिला से कह दिया की नीति तेरी अ-नेक
उसी महिला को आपने फिर बना दिया सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट
और आज उनके ही पति कर रहें इन्हें डिफ़ेंड

बुश हो, ओबामा हो, चाहे फिर वो हो क्लिँटन
बनना-बिगड़ना तो अपने ही हाथों में सज्जन
सब हैं एक ही थैली के चट्टे-बट्टे, सब का एक ही रंग
कोई नहीं इनमे से ला पाएगा हमारे जीवन में परिवर्तन

अपने ही हाथों में यारो, अपने जीवन की है डोर
बकने दो जिनको है बकना, होने दो जो होता है शोर
हम क्यूँ इनमें वक़्त गवाँए, हम क्यूँ इन्हें दे दें वोट
बकने दो जिनको है बकना, हम तो करते रहेंगे इग्नोर

सिएटल । 513-341-6798
9 सितम्बर 2012

Tuesday, September 4, 2012

अलसाते गीत

उम्र ढल चुकी है
श्वास शिथिल है
बालों पर भी रंग चढ़ चुके हैं
लेकिन निगाहें वहीं रूकी है
जिस डगर पर तुम मिली थी
कोमल भावनाएँ जब जगी थीं
आलिंगन आतुर तुम खड़ी थी
और घटाएँ छा रही थीं
उमंगें मंडरा रही थीं


न दिन का समय था
न रात हुई थी
बस जज़बात की
बरसात हुई थी


बड़ी देर तक हम चुप रहे थे
कहने को कुछ ढूँढ रहे थे


और मुझे कुछ सूझा नहीं
तो मैंने बस ये कह दिया था
"अच्छा बताओ तुम क्या सुनोगी
रेडियो सिलोन या विविध भारती?
ऑल इंडिया रेडियो की उर्दू सर्विस
या रेडियो नेपाल के अलसाते गीत?"


दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुर्सत के रात-दिन ...

सिएटल । 513-341-6798
4 सितम्बर 2012

 

Saturday, September 1, 2012

कर्ता और कारक

मैं हूँ एक भँवरा
और वो भी तो एक कली थी
हम दोनों की बातों में
कितनी रातें ढली थीं



आज भी वो मुझसे
पूछती है खोद-खोद के
किस कली को छेड़ा?
किस कली से बात की?
किस कली के ख़्बाब में
नींद उड़ी मेरे दिन-रात की?



क्या कहूँ मैं उसको?
और क्या छुपाऊँ उससे?
वो जो कभी मेरे
हर राज़ की हमराज़ थी



हम दोनों हैं ऐसे
जैसे एक जान दो तन हैं
किसी भी बात पे हममें
हुई नहीं अनबन है



बस एक बात है जिसपे
रहते हम असहमत हैं
कि
वो कली थी इसलिए
मुझमें भँवराहट हुई
या
मैं भँवरा था इसलिए
वो कली साकार हुई



सिएटल । 513-341-6798
1 सितम्बर 2012

Friday, August 31, 2012

हाथों के हाथ



जब कभी भी तुम हँसती हो
खुशी भी होती है
और दु:ख भी

खुशी इस बात की कि तुम खुश हो
हँसमुख हो
उन्मुक्त हो

और दु:ख इस बात का कि
तुम्हारा फूल सा चेहरा
मेरे हाथों में नहीं

जब कभी भी तुम आती हो
खुशी भी होती है
और दु:ख भी

खुशी इस बात की कि
तुम मेरे पास हो
तुम्हारी खुशबू
उड़ा रही मेरे होशोहवास है

और दु:ख?
दु:ख इस बात का कि
हाथों में हाथ नहीं

नैन से नैन मिलें
दिल से दिल मिलें
ये क्या कोई कम सौगात है?
और हम हैं कि
हाथों के हाथ
खा रहें मात हैं!

सिएटल । 513-341-6798
31 अगस्त 2012

Friday, August 24, 2012

Old Flame

न नई होती है
न पुरानी होती है
न बूढ़ी होती है
न जवान होती है
लौ तो लौ है
हर सिम्त दीपक की जान होती है

लौ न होती
तो मैं भी न होता
महज हड्डियों का
आडम्बर होता
लौ तो लौ है
आजीवन जीवन की पहचान होती है

देती है रोशनी
तो करती है राख भी
गाते हैं गुण जिसके
ग़ालिब और फ़िराक़ भी
लौ से है दुनिया
और लौ से ही दुनिया शमशान होती है

लौ से है जीवन
लौ से मरण है
लौ में ही तप के
बनते आभूषण हैं
मजनू का आदि
और मजनू का अंत
लैला की त्रैलोकिक मुस्कान होती है

सिएटल । 513-341-6798
24 अगस्त 2012

Tuesday, August 21, 2012

सयानी दुनिया






कुछ दिन हुए
एक चिड़िया यहाँ
आने लगी थी
खुशी के गीत
वो गाने लगी थी

सुनता था मैं
गुनगुनाता था मैं
खुशी से
फूला न समाता था मैं

देखो तो उसके सुकोमल पंख
बच्चों को गर्व से दिखलाता था मैं
वो उसका फुदकना
वो उसका चहकना
वो बार-बार उड़-उड़ के
उसका वापस पलटना

कितना खुशकिस्मत है
ये घर-आंगन हमारा
कि
चिड़िया यहाँ घर बसाने लगी है

और फिर एक दिन
नई चीज
पुरानी हो गई
रूमानी थी दुनिया
सयानी हो गई

वो घोंसले की गंदगी
वो चूजों की चक-चक
हमारे लिये परेशानी हो गईं

छत सड़ेगी
मरम्मत बढ़ेगी
एक न एक दिन
विपदा गिरेगी

जैसे भी हो
इन्हें दफ़ा करो
कहो:
कहीं और
जा के रहो

अब येलोस्टोन जा के
पंछी देखते हैं हम
दूरबीन-टेलिस्कोप की जहमत
उठाते हैं हम
उन्हें एस-एल-आर कैमरे में कैद कर के ले आते हैं हम
और
फ़ेसबूक की वॉल पे इतराते हैं हम

कुछ दिन हुए
एक चिड़िया
यहाँ आने लगी थी

सिएटल । 513-341-6798
21 अगस्त 2012

===============
येलोस्टोन = Yellowstone National Park
एस-एल-आर कैमरा = SLR Camera; Single-lens Reflex  Camera
वॉल = wall





Friday, August 10, 2012

भेड़ चाल


न समझा है
न जाना है
न ही मन से माना है
और बुन लिया कुछ ऐसा ताना-बाना है
कि सच और झूठ में फ़र्क करना मुश्किल है
देखते ही भीड़
हो जाते शामिल हैं
कि कुछ न कुछ तो वजह होगी
जो गा रही महफ़िल है
हरे राम
हरे राम
राम राम हरे हरे
हरे कृष्ण
हरे कृष्ण
कृष्ण कृष्ण हरे हरे

सिएटल । 513-341-6798
10 अगस्त 2012

Sunday, August 5, 2012

बिजली का होना, न होना

पिछले दिनों, जब भारत में बिजली नहीं थी
किसी के भी जीवन पर गिरी बिजली नहीं थी

स्कूल खुले थे
बच्चे हँसे थे
खाना पका था
बर्तन मंजे थे
कपड़े धुले थे
कपड़े सूखे थे
दुकानें खुलीं थीं
बसें चलीं थीं

फ़ेसबुक की अपडेट्स में भी न आई कमी थी
किसी की भी अपडेट में कोई शिकायत नहीं थी

निर्भरता ही नैनों में है नीर भरती
और दुनिया है कि समृद्धि का ढोंग रचती

सही मायनों में देखिए तो है बस वो ही आज़ाद
जो किसी बात पर भी किसी का है नहीं मोहताज

सिएटल । 513-341-6798
5 अगस्त 2012

Sunday, July 8, 2012

ये जो एन-आर-आई है

ये जो एन-आर-आई है
ये उनका है नाम
अरे माँ-बाप को जो
बस रोते हुए छोड़
चले जाए
बस जाए
पा जाए ग्रीन-कार्ड
रहने दो छोड़ो भी जाने दो यार
ये न कहो गद्दार ...
ये न कहो मक्कार ...

आँखें किसी से न उलझ जाए मैं डरता हूँ
यारों आई-आई-टी की गली से मैं गुज़रता हूँ
बस दूर ही से कर के सलाम
ये जो एन-आर-आई है ...

मिले अगर डॉलर तो ये धरम भी दे बेचे
भुट्टा सेंकने वाले बंदे बीफ़ को भी सेंके
खा-पी के बोले कण-कण में भगवान
ये जो एन-आर-आई है ...

गिरे अगर रुपैया तो खुशी से ये झूमें
मस्ती से पैग पीए, साठ का गुणा सीखें
लाख कमाए और सोचे करोड़ है पगार
ये जो एन-आर-आई है ...

(आनंद बक्षी से क्षमायाचना सहित)
सिएटल । 513-341-6798
8 जुलाई 2012
==============
ग्रीन-कार्ड = Green Card
आई-आई-टी = IIT
बीफ़ = beef, गाय का मांस

Wednesday, July 4, 2012

4 जुलाई

तीन रंग हैं लेकिन वो तिरंगा नहीं
ये टापू है लेकिन किनारा नहीं
कहने को सब
लेकिन कोई हमारा नहीं

बारूद में नहाती हैं सतरंगी रातें
बार्बेक्यू पे होती हैं बेतुकी सी बातें
जय-जय का गूंजता कहीं नारा नहीं

ऐसा नहीं कि हाथ हमने बढ़ाया नहीं
बढ़ के उन्हें गले लगाया नहीं
बस उन्होंने ही हमे कभी पुकारा नहीं

बंजारे हैं हम, बंजारे रहेंगे सदा
भटके हैं हम, भटके रहेंगे सदा
जो जड़ से न जुड़े उनका होता सहारा नहीं

सिएटल । 513-341-6798
4 जुलाई 2012

Sunday, June 17, 2012

मुझे सफ़ाई पसंद है

मुझे इस्तेमाल कर के फ़ेंक देना अच्छा लगता है
कितना साफ़-सुथरा सा हो जाता है घर
मैं औरों की तरह नहीं हूँ
कि घर में कबाड़ इकट्ठा किए जा रहे हैं
जैसे कि दूध खतम हो गया
तो बोतल में दाल भर ली
बिस्किट खतम हो गए
तो डब्बे में नमकीन भर लिया
अखबार पुराना हो गया
तो उससे किताब पर कवर चढ़ा लिया
या अलमारी में बिछा दिया

इतना भी क्या मोह?
कब तक पुरानी यादों को ढोता रहे कोई?

मुझे इस्तेमाल कर के फ़ेंक देना अच्छा लगता है
कितना साफ़-सुथरा सा हो जाता है घर
फ़ेंकता भी हूँ तो बड़े एहतियात के साथ
पर्यावरण की चिंता जो है
यहाँ कागज़
यहाँ काँच
यहाँ प्लास्टिक
और यहाँ माता-पिता
एक वक्त ये भी बहुत काम के थे
माँ दूध पिलाती थी
लोरी सुनाती थी
पिता गोद में खिलाते थे
कंधों पे बिठाते थे
और अब
माँ दिन भर छींकती है, कराहती है
पिता रात भर खांसते हैं, बड़बड़ाते हैं

मुझे इस्तेमाल कर के फ़ेंक देना अच्छा लगता है
कितना साफ़-सुथरा सा हो जाता है घर

Saturday, June 16, 2012

कलंक


इम्तहान में जिन्हें मिले ज्यादा कल अंक थे
कौन जानता था कि वे मेरे माथे के कलंक थे

जिनके आगे-पीछे हम घूमते भटकते थे
'राजा बेटा, राजा बेटा' कहते नहीं थकते थे
आज वे कहते हैं कि 'माँ-बाप मेरे रंक थे'
कौन जानता था …

ये ठोकते हैं सलाम रोज किसी करोड़पति 'बिल' को
पर कभी भी चुका न सके मेरे डाक्टरों के बिल को
सफ़ाई में कहते हैं कि 'हाथ मेरे तंग थे'
कौन जानता था …

ऊँचा है ओहदा और अच्छा खासा कमाते हैं
खुशहाल नज़र मगर बहुत कम आते हैं
किस कदर ये हँसते थे जब घूमते नंग-धड़ंग थे
कौन जानता था …

चार कमरे का घर है और तीस साल का कर्ज़
जिसकी गुलामी में बलि चढ़ा दिए अपने सारे फ़र्ज़
गुज़र ग़ई कई दीवाली पर कभी न वो मेरे संग थे
कौन जानता था …

देख रहा हूँ रवैया इनका गिन गिन कर महीनों से
कोई उम्मीद नहीं बची है अब इन करमहीनों से
जब ये घर से निकले थे तब ही सपने हुए भंग थे
कौन जानता था …

जो देखते हैं बच्चे वही सीखते हैं बच्चे
मैं होता अगर अच्छा तो ये भी होते अच्छे
बुढ़ापे की लाठी में शायद बोए मैंने ही डंक थे
कौन जानता था …

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Glossary
कलंक = blemish
माथे = forehead
रंक = poor
तंग = tight, as in "budget is tight"
ओहदा = title, position
किस कदर = to what extent
संग = together
रवैया = behavior
करमहीन = good for nothing
भंग = broken
डंक = fangs

Saturday, June 2, 2012

ये मेरा "रेट"-भक्त रक्त है



भारतीय कहूँ?
कि अमरीकन कहूँ?
कनाडियन कहूँ?
कि जर्मन कहूँ?
हैरां हूँ अपने आप को किस गुट से जुड़ा कहूँ?

ये मेरा "रेट"-भक्त रक्त है
इसे कम दाम ना देना
वरना ये वहाँ जा बसेगा
जहाँ पे ऊँचा दाम मिलेगा

इसे हिंदू मैं कहता था
मगर "मैक-डी" में खाता है
है अधर्मी मैं सोचूँ
मगर मंदिर भी जाता है
जहाँ तक हो सके इसको
हमेशा खाते देखा, खाते देखा, खाते देखा है

ये मेरा भूख-ग्रस्त रक्त है
इसे भूखा नहीं रखना
वरना ये "रूल्स" तोड़ देगा
कहीं भी जा के खा लेगा

ये है हिंदी-भाषी मैं सोचूँ
मगर बकता अंग्रेज़ी है
कहूँ अंग्रेज़ है लेकिन
सीखाए बच्चों को हिंदी
जहाँ तक हो सके इसको
"कन्फ़्यूज़्ड" होते देखा, होते देखा, होते देखा है

ये मेरा भ्रम-युक्त रक्त है
इसे भ्रमित नहीं कहना
वरना "जी-पी-एस" साथ लेगा
और "यू-टर्न" सात लेगा

ये है धनवान मैं सोचूँ
मगर रहता उधारी है
कमाया खूब है पैसा
मगर खेलता जुआ भी है
जहाँ तक हो सके इसको
हमेशा "स्टॉक्स" लेते देखा, लेते देखा, लेते देखा है

ये मेरा लोभ-ग्रस्त रक्त है
इसे स्टॉक्स हैं लेने
चाहे वो ग्रुपॉन ही क्यूँ न हो
चाहे वो फ़ेसबूक ही क्यूँ न हो

(शैलेन्द्र से क्षमायाचना सहित)
सिएटल । 513-341-6798
2 जून 2012
=============
रेट = rate, Hourly wages, वेतन
मैक-डी = McDonald's restaurant
रूल्स = rules, नियम
कन्फ़्यूज़्ड = confused, भ्रमित
जी-पी-एस = GPS
यू-टर्न = U-turn
स्टॉक्स = stocks, shares
ग्रुपॉन = Groupon
फ़ेसबूक = facebook


Monday, May 28, 2012

Memorial Day Weekend

देश की अर्थव्यवस्था खराब है
लाखों लोग बेरोज़गार हैं
घरों के गिरते दाम हैं
पेट्रोल के बढ़ते भाव है
क्या करे, क्या ना करें?
करते सब सोच-विचार हैं

कन्ज़र्वेशन की बात करेंगे
कार्बन-फ़ूटप्रिंट का हिसाब करेंगे

लेकिन चूंकि
तीन दिन का अवकाश है
सूरज भी मेहरबान है
लेकर अपनी मोटर-बोट
धन का,
ईंधन का,
झील का
सत्यानाश करेंगे

सिएटल । 513-341-6798
27 मई 2012
=========
कन्ज़र्वेशन = conservation
कार्बन-फ़ूटप्रिंट = carbon-footprint

Friday, May 25, 2012

सफ़ेदी की अब कौन बात करता है

कभी किसी के संग कुछ पल बिताए थे मैंने
आज उन्हें मैं तोल रहा हूँ

तब वो भी सफ़ेद थी
मैं भी सफ़ेद था
हम दोनों में
नहीं भेद था

आज मिले
तो जुदा है दोनों
अपने-अपने खूँटे से
बंधे हैं दोनों

रंग कई तरह के चढ़ गए हैं

सफ़ेदी की अब कौन बात करता है
रंगों की नुमाईश के दिन हैं

देखो मेरा हसबैंड तो देखो
कितना बड़ा इंजीनियर है वो
देखो मेरा बेटा न्यारा
करता कितने एक्ज़ाम्स वो क्लियर

सफ़ेदी की अब कौन बात करता है
रंगों की नुमाईश के दिन हैं ...

सिएटल । 513-341-6798
25 मई 2012
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हसबैंड = husband
एक्ज़ाम्स = exams
क्लियर = clear

Sunday, May 20, 2012

झुलसता हूँ मैं


झुलसता हूँ मैं
और तुम समझते हो कि
मैं छुट्टी कर गया

झूठ है कि
अमावस को मैं उगता नहीं
उगता तो हूँ
पर तुम्हें दिखता नहीं

और आज
जब दिखाई दे रहा हूँ
तो
तुम देख सकते नहीं
बड़े आए सच जानने वाले
तुम सच झेल सकते नहीं

झुलसता हूँ मैं
और तुम समझते हो कि...

सिएटल । 513-341-6798
20 मई 2012 (सूर्यग्रहण)