पार्टी नहीं जीती, जीते हैं मोदी
व्यक्ति पूजा की फ़सल फिर से गई है बो दी
लोकतंत्र की क़बर ऐसे गई है खोदी
गाँधी, नेहरु
माया, लालू
पूजते हैं कुछ
तो कुछ कहते इन्हें चालू
धीरे-धीरे आस्था इन सब में हमने खो दी
लोकतंत्र की क़बर ऐसे गई है खोदी
पिछले साठ साल से
पीढ़ी-दर-पीढ़ी
परिवार के लोग ही
चढ़े सत्ता की सीढ़ी
डाल दी कभी बेटी तो कभी बेटे की गोदी
लोकतंत्र की क़बर ऐसे गई है खोदी
व्यक्ति पूजा की फ़सल फिर से गई है बो दी
लोकतंत्र की क़बर ऐसे गई है खोदी
गाँधी, नेहरु
माया, लालू
पूजते हैं कुछ
तो कुछ कहते इन्हें चालू
धीरे-धीरे आस्था इन सब में हमने खो दी
लोकतंत्र की क़बर ऐसे गई है खोदी
पिछले साठ साल से
पीढ़ी-दर-पीढ़ी
परिवार के लोग ही
चढ़े सत्ता की सीढ़ी
डाल दी कभी बेटी तो कभी बेटे की गोदी
लोकतंत्र की क़बर ऐसे गई है खोदी
2 comments:
जैसे आपने पहले कविताओं में लिखा है कि हमें स्वामी का दीवाना बनना, बराक में मसीहा ढूँढना, पीढ़ी को सत्ता देना - बहुत अच्छा लगता है। व्यक्ति पूजा की tendency शायद human nature की है।
इस बार कविता horse's mouth से link नहीं करी आपने? :)
I dont think any thing is wrong int it... even in US ,,..people vote for a person....
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