जितनी लम्बी चादर हो
उतने ही पांव पसार
यहीं पाठ पढ़ाया गया
जीवन में हर एक बार
पाई पाई गिन के
जब जब पाई पगार
दुनिया के हैं ढंग निराले
रीत इसकी बेजोड़
जब तक आदमी ज़िंदा रहे
रहे पांव सिकोड़
एक दिन जब जाने लगे
नाते सारे तोड़
बाजे-गाजे से विदा होए
लम्बी चादर ओड़
आत्मा जब तक साथ थी
लेते थे मुख मोड़
पार्थिव शरीर के सामने
खड़े हैं हाथ जोड़
यहीं दुनिया का दस्तूर है
यहीं इसका निचोड़
जीवन का कुछ मोल नहीं
मरे मिले करोड़
उतने ही पांव पसार
यहीं पाठ पढ़ाया गया
जीवन में हर एक बार
पाई पाई गिन के
जब जब पाई पगार
दुनिया के हैं ढंग निराले
रीत इसकी बेजोड़
जब तक आदमी ज़िंदा रहे
रहे पांव सिकोड़
एक दिन जब जाने लगे
नाते सारे तोड़
बाजे-गाजे से विदा होए
लम्बी चादर ओड़
आत्मा जब तक साथ थी
लेते थे मुख मोड़
पार्थिव शरीर के सामने
खड़े हैं हाथ जोड़
यहीं दुनिया का दस्तूर है
यहीं इसका निचोड़
जीवन का कुछ मोल नहीं
मरे मिले करोड़
4 comments:
वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
http://madan-saxena.blogspot.in/
http://mmsaxena.blogspot.in/
http://madanmohansaxena.blogspot.in/
http://mmsaxena69.blogspot.in/
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार (28-12-2012) के चर्चा मंच-११०७ (आओ नूतन वर्ष मनायें) पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
आपकी कलम की लिखी साफ़-साफ़ बातें पाठकों को अच्छी लगती हैं! लिखते रहिये...
बहुत ही बढ़िया रचना ।
मेरी नई पोस्ट में आपका स्वागत है ।
ख्वाब क्या अपनाओगे ?
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