Monday, October 29, 2012

मैं ईश्वर के बंदों से डरता हूँ


हर 'हेलोवीन' पे मैं दर पे कद्दू रखता हूँ

लेकिन क्रिसमस पे घर नहीं रोशन करता हूँ
क्यों?
क्योंकि मेरे देवता तुम्हारे देवता से अलग है
लेकिन हमारे भूत-प्रेत में न कोई अंतर है

सब क्रिसमस के पहले खरीददारी करते हैं
मैं क्रिसमस के बाद खरीददारी करता हूँ
क्यों?
क्योंकि सब औरों के लिए उपहार लेते हैं
मैं अपने लिए 'बारगेन' ढूँढता हूँ

सब 'मेरी क्रिसमस' लिखते हैं
मैं 'हेप्पी होलिडेज़' लिखता हूँ
क्यों?
क्योंकि सब ईश्वर पे भरोसा करते हैं
मैं ईश्वर के बंदों से डरता हूँ

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हेलोवीन = Halloween
बारगेन = Bargain
मेरी क्रिसमस = Merry Christmas
हेप्पी होलिडेज़ = Happy Holidays

Wednesday, October 24, 2012

भोजन भजन का

भोजन भजन का
और
यौवन जोगन का
बैरी है
देह की आग ने
भक्ति के मार्ग की
टांग
अक्सर तोड़ी है


कहने को तो
कहते हैं
कि इश्क भी पूजा है
लेकिन करने लगो
तो कहते हैं कि वहशी है


अब आप ही बताओ
कि बंदा करे तो क्या करे?
'गर पूजे तो पाखंडी
और न पूजे तो कहलाता अधर्मी है


हम-आप की बात होती
तो बात सम्हल भी जाती
लेकिन ये कौम-सम्प्रदाय की बातें
किसके सम्हाले सम्हली है?


चलो अच्छा ही हुआ
कि बच्चें हमारे नास्तिक निकले
वरना कौन उन्हें समझाता
कि क्या असली है और क्या नकली है?


24 अक्टूबर 2012
सिएटल ।
513-341-6798

Tuesday, October 23, 2012

मूर्ति पूजा


इन दिनों त्योहार का मौसम है. तो जाहिर है कि लोगबाग पूजा-पाठ के बारे में सोच रहे हैं. अमरीका में नई गृहस्थी जमाते वक्त फ़र्नीचर, टी-वी, अन्य आधुनिक उपकरणों का नम्बर पहले आता है. वो तो त्योहार के आसपास ध्यान आता है कि अरे लक्ष्मी-गणेश तो है ही नहीं. चलो लाला की दुकान से लेकर आते हैं. अब यहाँ हर चीज़ को लौटाने की सुविधा है सो लौटाने की आदत सी भी पड़ जाती है. दुकान में ज्यादा समय बर्बाद करने के बजाय पाँच-छ: पतलून ले आते हैं कि जो पसंद नहीं आई या फ़िट नहीं आई उसे 30 दिन के अंदर वापस कर देंगे.

इसी सुविधा और ग्राहक की आदत को देखते हुए शायद लाला जी की दुकान पर लिखा था कि भगवान वापस नहीं लिए जाएगे. बस उसी तख्ती को देख कर ये कविता बन गई.


बिक गया है जो
लुट गया है वो
तराना पुराना
हो गया है वो

पूजा जिनकी हो रही है आज
मंडप में जो कर रहे हैं राज
लाला की दुकान पर
बिक रहे थे वो
सुनार-कुम्हार के हाथों
पिट रहे थे वो

कौड़ियों के भाव
बिक जाते हैं जो
समृद्ध हमें करेंगे वो?
बिकना जिनके
मुकद्दर में हो
मोक्ष हमें दिलाएंगे वो?
पंडित के सुलाने से
सो जाते हैं जो
किस्मत हमारी जगाएंगे वो?
पलक झपकते ही
विसर्जित हो जाते हैं जो
भव सागर पार कराएंगे वो?

लालची का लोभ है
या प्रेमी का प्यार है
दुखियारे का दर्द है
या सतसंग का संस्कार है
शिल्पी का हुनर है
या भक्ति का चमत्कार है
दुनिया जिसे कहती हैं पत्थर
करती उसी का सत्कार है

आज एक और त्योहार है
लगा रिवाज़ों का बाज़ार है
हम भी उसमें जुट गए
जहाँ सबसे लम्बी कतार है

भरा हुआ भंडार है
सम्पदा जहाँ अपार है
गरीब से गरीब भी
वहाँ दे रहा उपहार है

बिक गया है जो
लुट गया है वो
तराना पुराना
हो गया है वो

Monday, October 22, 2012

ओबामा जीते या रामनी जीते, हमें क्या

ओबामा जीते या रामनी जीते, हमें क्या
ये मुल्क नहीं मिल्कियत हमारी
हम इन्हें समझे हम इन्हें जाने
ये नहीं अहमियत हमारी

तलाश-ए-दौलत आए थे हम
आजमाने किस्मत आए थे हम
आते हैं खयाल हर एक दिन
जाएंगे अपने घर एक दिन
ओबामा जीते या रामनी जीते, हमें क्या
बदलेगी नहीं नीयत हमारी
हम इन्हें समझे ...

ना तो है हम डेमोक्रेट
और नहीं है हम रिपब्लिकन
बन भी गये अगर सिटीज़न
बन न पाएंगे अमेरिकन
ओबामा जीते या रामनी जीते, हमें क्या
छुपेगी नहीं असलियत हमारी
हम इन्हें समझे ...

न डेमोक्रेट्स का प्लान
न रिपब्लिकन्स का वाँर
कर सकता है
हमारा उद्धार
ओबामा जीते या रामनी जीते, हमें क्या
पूछेगा नहीं कोई खैरियत हमारी
हम इन्हें समझे ...
हम जो भी हैं
अपने श्रम से हैं
हम जहाँ भी हैं
अपने दम से हैं
ओबामा जीते या रामनी जीते, हमें क्या
काम आयेगी बस काबिलियत हमारी     
हम इन्हें समझे ...

फूल तो है पर वो खुशबू नहीं
फल तो है पर वो स्वाद नहीं
हर तरह की आज़ादी है
फिर भी हम आबाद नहीं
ओबामा जीते या रामनी जीते, हमें क्या
यहाँ लगेगी नहीं तबियत हमारी
हम इन्हें समझे ...

Saturday, October 20, 2012

तुम्हारी यादें


तुमसे बेहतर हैं
तुम्हारी यादें
सच्चे-झूठे प्यार के वादें
रूठने-मनाने की अनगिनत बातें
वरना
आज
हम साथ होते
तो
बढ़ते वजन
और
घटते बालों 
के बीच
मोहब्बत
कब की खप चुकी होती 

तुम्हारी सांसें
जिसकी खुशबू मुझे नहला देती थी 
तुम्हारी आँखें
जो प्यार उड़ेला करती थी
तुम्हारी हँसी
जो निर्झर बहा करती थी
घर-गृहस्थी की दलदल में
कब की सूख चुकी होती

तुम होती तो
न यादें होती
न बातें होती
थकी-थकाई सी
रातें होती
सोते हम एक बिस्तर पर
पर दो तकियों के बीच
हज़ारों मील की
दूरी होती

20 अक्टूबर 2012
सिएटल । 513-341-6798

Friday, October 19, 2012

रियूनियन


गाँधी जी के देस में
रियूनियन के भेस में
पाँच-सितारा होटल में
छुरी-काँटें चलते हैं
लोग गले मिलते हैं
देश की दयनीय स्थिति पर
फिकरे कसा करते हैं

मध्यम वर्ग के
संभ्रांत परिवार के पूत
पढ़ते हैं
खटते हैं
मेहनत से आगे बढ़ते हैं
और फिर
न जाने किस कालकोठरी में
जाके खो जाते हैं

गाड़ी
बंगला
बीवी-बच्चों में ही
बंध के रह जाते हैं
और 
छुरी-काँटें चलाते-चलाते
देश की दयनीय स्थिति पर
फिकरे कसा करते हैं

19 अक्टूबर 2012
सिएटल । 513-341-6798

Thursday, October 18, 2012

पीले चमन में

पीले चमन में
काली सड़क पर
सरपट-सरपट
भागती है कार


पाँव के नीचे
पत्तों की आहट
सुने-सुनाएं
गुज़रा है युग


अब
कौन सुनेगा
और किसे सुनाएं?
इंसानों की
बस्ती में बसते हैं साए
(साए न होते
तो उनका नाम भी होता
उनका मुझसे
और मेरा उनसे
कुछ काम भी होता)


कल
एक ब्लोअर आएगा
और
इन्हें उड़ा ले जाएगा
कूड़े के डब्बे में
क़ैद कर जाएगा


कल
न पत्तें होंगे
न चमन होगा
बर्फ़ का एक
कफ़न होगा


और काली सड़क पर
सरपट-सरपट भागती रहेगी
मेरी कार


18 अक्टूबर 2012
सिएटल ।
513-341-6798



Sunday, October 14, 2012

विदेश में आए, वी-डेश हुए


विदेश में आए, वी-डेश हुए
सपने सारे यूँ डेंट हुए

सोचा था आ के खूब कमाएंगे हम
टेलेंट हैं जितने, कैश कराएंगे हम
बंधन-प्रतिबंध में कुछ यूँ फंसें
कि टेलेंट सारे लेटेंट हुए

आने की दिल में बड़ी चाह थी
कमाने की सूझी बस यही राह थी
माना कि फूलों संग काँटें भी होंगे
लेकिन ये क्या कि सारे बसंत बे-सेंट हुए

जीते हैं हम, लेकिन हैं हारे हुए
किस्मत से बदकिस्मती के मारे हुए
गाड़ी है, बंगला है, डॉलर भी है
लेकिन होने को औरों के सरवेंट हुए

14 अक्टूबर 2012
सिएटल । 513-341-6798
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वी-डेश = v- employee, the one who is hired as a contractor as opposed to a full time employee who gets full benefits
डेंट = dent
टेलेंट = talent
कैश = cash
लेटेंट = latent
बे-सेंट=without scent, without fragrance
सर्वेंट = servent

Friday, October 12, 2012

जया का जन्मदिन भी आता तो होगा


जया का जन्मदिन भी आता तो होगा
जश्न हो
खुशियाँ मने
जी में उसके भी आता तो होगा

लेकिन
दुनिया सदा चढ़ता सूरज ही पूजे
हैसियत देख के ही तौहफ़ा खरीदे
कामवाली को मिलते हैं पुराने कपड़ें
बॉस को मिलते हैं मिठाई के डब्बें

भरे को भरना पुराना रिवाज़ है
यही दुनिया है, यही समाज है

रामनवमी सदा मनती रही है
सीता के जन्म की कोई तिथि नहीं है

12 अक्टूबर 2012 । अमिताभ के 70वें जन्मदिन के जश्न के बाद
सिएटल । 513-341-6798
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जया = अमिताभ की पत्नी

Wednesday, October 10, 2012

सहरा ये दिल जब तुम्हारा हो गया

सहरा ये दिल जब तुम्हारा हुआ
रिश्ता और गहरा हमारा हुआ

रिश्ता तो है पर बे-नाम-ओ-शकल
सेहरा किसी का कब सहारा हुआ

शहरों की सहर के हैं रंग अलग
लाल-पीली बत्तियों का नज़ारा हुआ

सिरा-ए-सिराज-ए-ख़ुर्शीद मिलता नहीं
कब और कैसे वो अंगारा हुआ

सराबों के पीछे बहुत भागा हूँ मैं
शराब खराब है पर वही चारा हुआ

10 अक्टूबर 2012
सिएटल । 513-341-6798
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सहरा = desert
सेहरा = wreath worn by a groom
सहर = dawn
सिरा = beginning
सिराज = lamp
ख़ुर्शीद = sun
सराबों = mirages
चारा = remedy

Sunday, October 7, 2012

मानो तो एक नींव वही है


कब कौन क्या लिखता है
इसका सिरा कहाँ मिलता है

कब क्या कहाँ खिलता है
इसका सिरा कहाँ मिलता है

कब कौन कहाँ टिकता है
इसका सिरा कहाँ मिलता है

कब कौन किसपे मरता है
इसका सिरा कहाँ मिलता है

सिरा नहीं है, पर गिला नहीं है
जीवन जीने की कला यही है
न मानो तो एक पत्थर
मानो तो एक नींव वही है

7 अक्टूबर 2012
सिएटल । 513-341-6798
=====
सिरा=आरंभ